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टैक्समैन के लिए खुलेगा अधिकारों का पिटारा

Last Updated- December 05, 2022 | 4:31 PM IST

सरकार ने संसाधन बढ़ाने के लिए 2008-09 के आम बजट में आय का आकलन करने के कई उपायों की घोषणा की है।


 अगर छानबीन के दौरान कोई व्यक्ति आय केस्रोत की स्पष्ट जानकारी नहीं दे सके  तो आयकर की धारा 292 सी के तहत कर अधिकारी को उस धन पर भी कर लगाने का अधिकार है।


इस उपाय को अब सर्वे के दौरान भी लागू किया जाएगा, जब केवल रिकार्डों की जांच होती है।


इसके तहत व्यक्ति को आयकर कार्यालय में बुलाया जाता है। अधिकारियों के मुताबिक सर्वे के दौरान अघोषित आय पर कर 1 जून 2002 से लागू किया जाएगा।


अधिकारियों का भी कहना है कि इन वर्षों में सर्वे के उन मामलों को फिर से खोला जा सकता है जिनमें कोई कार्रवाई नहीं की गई।


व्यक्तियों या कार्पोरेट द्वारा भरे गए गलत रिटर्न की संख्या कम करने और संग्रह बढ़ाने के लिए 08-09 के बजट में प्रथम दृष्टि से सांमजस्य की फिर से शुरूआत की है।


आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक आयकर विभाग के अधिकारी को बगैर पूर्व अनुमति के रिटर्न में सुधार का अधिकार मिल जाएगा।


धारा 143 के तहत यह संशोधन सबसे पहले 1989 में लाया गया था और इसे फिर 1995-96 में वापस ले लिया गया था। यह संशोधन 1 अप्रैल 2008 से प्रभावी होगा।


अभी अगर राशि कम हो और आयकर रिटर्न में गलती पाई जाती है और राशि कम होती है तो उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। अगर राशि बड़ी हो और इस तरह की गलतियां पाई जाती है तो उसे जांच के लिए आयकर आयुक्त के पास भेज दिया जाता है।


इस छानबीन की प्रक्रिया में आए हुए कुल मामलों में केवल 2 से 3 प्रतिशत मामले पर ही विचार हो पाता है। इसके अलावा आयकर विभाग के पास रिटर्न में सुधार का और कोई उपाय भी नहीं है।


इसी प्रकार आयकर मामले को कानूनी तरीके से हल करने के लिए भी इस बजट में धारा 254 में संशोधन किया गया है।


इसके तहत कोई भी ऐसा मामला जो 1 साल से लंबित है, उस पर कोई अपीली प्राधिकरण स्थगन आदेश नहीं लगा सकता है।


 इसकी सुनवाई के दौरान ही इसे इतना आसान बना दिये जाने की बात कही गई है ताकि आयकर विभाग और करदाता दोनों को मामले सुलझाने में भविष्य में कोई दिक्कत न हो।


चीजों को स्पष्ट करने के ख्याल से स्थगन का भी प्रावधान किया गया है लेकिन इस संदर्भ में समय-सीमा का ध्यान रखने पर जोर दिया गया है।


फिलहाल धारा 254(2 ए)के तहत किसी मामले में दायर मामले की सुनवाई आयकर प्राधिकरण को 4 वर्षों में करनी होती है। इस समय सीमा की गणना उस वित्तीय वर्ष से की जाती है, जब यह मामला दर्ज किया जाता है।



 

First Published - March 11, 2008 | 7:24 PM IST

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