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चीनी संस्थान में तंगी से कड़वाहट

Last Updated- December 09, 2022 | 10:57 PM IST

देश में चीनी प्रौद्योगिकी के इकलौते शोध संस्थान राष्ट्रीय चीनी संस्थान पर वित्तीय संकट के बादल छाए हुए हैं। पिछले दो साल से संस्थान को शोध के लिए फंड की भारी किल्लत से जूझना पड़ रहा है।


इस संस्थान के संचालन की जिम्मेदारी केंद्रीय उपभोक्ता मामले,खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की है। यह संस्थान चीनी प्रौद्योगिकी से जुड़ी गतिविधियों पर शोध और प्रशिक्षण का संचालन करता है।

इसके अलावा यह संस्थान चीनी उत्पादन बढ़ाने के लिए इकाइयों को तकनीकी सहायता देता है। इसके साथ ही सरकार की सलाहकार संस्था का कार्य भी करता है। संस्थान को लेकर सरकार के उदासीन रवैये के खिलाफ संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों ने एक संगठन बनाया है।

यह संगठन संस्थान के कार्यों के लिए जल्द से जल्द सरकारी मदद की मांग कर रहा है। इस संगठन के अध्यक्ष ब्रहमानंद तिवारी और सचिव अखिलेश पांडेय ने बताया कि केंद्रीय सरकार ने बिना किसी कारण के संस्थान को मिलने वाले फंडों में 50 फीसदी की कटौती की है।

तिवारी ने बताया, ‘पहले हमें केंद्र सरकार से सालाना 10-11 करोड़ रुपये के साथ ही आकस्मिक जरूरत के लिए लगभग 1.2 करोड़ रुपये का फंड मिलता था। लेकिन अब इसे घटाकर 60 लाख रुपये ही कर दिया गया है।’

उन्होंने बताया कि हालात इतने खराब हैं कि नियमित कामकाज के लिए जरूरी स्टेशनरी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया है। संस्थान में कामकाज के लिए जितने कर्मचारियों की जरूरत हैं हमें उनकी संख्या के लगभग आधे कर्मचारियों से ही काम करना पड़ रहा है।

संसाधन के अभाव में प्रत्येक 12 रिक्त पदों पर मात्र एक नियुक्ति ही हो पाई है। यहां तक कि दिवंगत कर्मचारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति भी उनकी जगह नहीं की गई है। हर साल चीनी की पेराई करने वाली प्रायोगिक चीनी मिल इस साल अभी तक शुरू भी नहीं हो पाई है।

इस चीनी मिल पर निर्भर कर्मचारियों और किसानों के सामने रोजी-रोटी कमाने के  भी लाले पड़े हैं। प्रशिक्षण और प्रायोगिक कार्यों के लिए अपनी मिल रखने वाला यह देश का पहला संस्थान है। इसकी मिल की क्षमता रोजाना 100 टन चीनी क ा प्रसंस्करण करने की है।

इस संस्थान में कुल 7 शोध छात्र हैं। इन छात्रों को हर महीने लगभग 8,000 रुपये वेतन और 1200 रुपये रहने का खर्च देने की बात तय है। लेकिन पिछले चार महीनों से उन्हें एक भी रुपया नहीं मिला है।

संस्थान में होने वाले शोध पर हर साल लगभग 10 लाख रुपये का खर्च आता है। लेकिन अब इसे घटाकर 5 लाख रुपये ही कर दिया है। सबसे ज्यादा कटौती तो कार्यालय में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों की आपूर्ति में की गई है।

स्टेशनरी के लिए दिया जाने वाला फंड पहले 40 लाख रुपये मिलता था, लेकिन अब इसे घटाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है। पर संस्थान के अधिकारियों को यकीन है कि अतिरिक्त फंड को लेकर चल रही बातचीत के अच्छे परिणाम मिलेंगे।

संस्थान के निदेशक आर पी शुक्ला ने बताया कि पहले तो संस्थान के फोन और बिजली कनेक्शन भी कटने वाले थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होने जा रहा है।

First Published - January 23, 2009 | 8:54 PM IST

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