मार्च 2021 में भारतीय बैंकिंग तंत्र का सकल फंसा हुआ कर्ज (जीएनपीए) कुल अग्रिम का 7.5 फीसदी था। प्रॉविजन के लिए राशि अलग करने के बाद शुद्ध एनपीए (एनएनपीए) 2.4 फीसदी था। अधिकांश बैंकों ने कोविड महामारी के असर को बहादुरी से झेल लिया जबकि अर्थव्यवस्था में गिरावट आई और ऋण पोर्टफोलियो 5.6 फीसदी की रिकॉर्ड धीमी गति से बढ़ा। यह तब हुआ जब नियामक ने कर्ज अदागयी को महीनों के लिए रोक दिया था और बैंकों को ऋण पुनर्गठन करने को कहा। भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट का अनुमान है कि मार्च 2022 तक बैंकों का जीएनपीए 9.80 फीसदी हो सकता है। यदि हालात ज्यादा बिगड़े तो यह 11.22 फीसदी तक जा सकता है।
यदि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में होने वाली आय को संकेतक माना जाए तो अधिकांश बैंक, खासतौर पर सरकार की बहुलांश हिस्सेदारी वाले बैंकों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। जून तिमाही में सूचीबद्ध बैंकों का सामूहिक शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 61 फीसदी बढ़ा है। सरकारी बैंकों का प्रदर्शन निजी बैंकों से बेहतर रहा है। सालाना आधार पर उनका शुद्ध लाभ 140 फीसदी बढ़ा और 5,847 करोड़ रुपये से वह 14,012 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा। निजी बैंकों का शुद्ध मुनाफा 28 फीसदी बढ़ा और वह 14,127 करोड़ रुपये से बढ़कर 18,083 करोड़ रुपये तक पहुंचा।
आंकड़ों में जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक की आय शामिल नहीं है जिसने जून 2021 में 104.95 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया जबकि एक साल पहले यह 7.3 करोड़ रुपये था। चूंकि आईडीबीआई बैंक का निजीकरण होने जा रहा है इसलिए मैंने उसे निजी बैंकों में शामिल किया है।
परिचालन लाभ के क्षेत्र में भी सरकारी बैंक बेहतर हैं। उनका परिचालन लाभ निजी बैंकों से करीब दोगुना होकर 16 फीसदी बढ़ा। सूचीबद्ध बैंकों का परिचालन लाभ जून 2021 में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा जो 12.24 फीसदी बढ़ा।
परिचालन लाभ में मामूली वृद्धि के बावजूद कुछ बैंकों का शुद्ध मुनाफा तेजी से इसलिए बढ़ सका क्योंकि फंसे हुए कर्ज के लिए प्रॉविजनिंग अपेक्षाकृत कम रही। जून तिमाही में प्रॉविजन और आकस्मिक व्यय 9 फीसदी घटा और 62,796 करोड़ रुपये से 56,964 करोड़ रुपये पर आ गया। निजी बैंकों के मामले में यह 7 फीसदी से कुछ अधिक घटा जबकि सरकारी बैंकों में यह करीब 11 फीसदी रहा।
प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात या बैंकों द्वारा फंसे कर्ज से नुकसान की भरपाई के लिए अलग की जाने वाली राशि में इजाफा नहीं हुआ है। मेरी पहुंच सभी बैंकों के कवरेज अनुपात तक नहीं हो सकी लेकिन जो उपलब्ध हुए उनमें आईडीबीआई 97.42 फीसदी के साथ उच्चतम स्तर पर है। इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात 90 फीसदी है। अन्य सभी सरकारी बैंकों में यह 80 फीसदी से अधिक है। यह बात बैलेंस शीट की मजबूती दिखाती है।
जून तिमाही में सरकारी बैंकों की शुल्क आय में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है जबकि निजी बैंकों के में यह 20.5 फीसदी रहा। जहां तक शुद्ध ब्याज आय की बात है तो निजी बैंक सरकारी बैंकों से बेहतर रहे हैं। जून तिमाही में उनकी शुद्ध ब्याज आय 10.6 फीसदी बढ़ी जो सरकारी बैंकों से करीब दोगुनी है।
बड़े बैंकों में स्टेट बैंक का ऋण जून में 5.8 फीसदी बढ़ा जबकि एचडीएफसी बैंक तथा आईसीआईसीआई बैंक में यह क्रमश: 14.4 फीसदी तथा 17 फीसदी बढ़ा। सभी सूचीबद्ध बैंकों में जून तिमाही में कोटक महिंद्रा बैंक के पास कम लागत वाले चालू और बचत खातों (कासा) की तादाद सर्वाधिक 60.2 फीसदी रही। केवल तीन अन्य बैंकों का कासा 50 फीसदी से अधिक रहा। ये हैं बैंक ऑफ महाराष्ट्र (53 फीसदी), आईडीबीआई बैंक (52.5 फीसदी) तथा आईडीएफसी फस्र्ट बैंक (करीब 51 फीसदी)। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक और एचडीएफसी बैंक में यह 45 फीसदी से अधिक और 50 फीसदी से कम रहा।
कम प्रॉविजनिंग की वजह फंसे कर्ज में कम वृद्धि भी है। सूचीबद्ध बैंकों का जीएनपीए 2.5 फीसदी कम हुआ। जून 2020 में यह 8.32 लाख करोड़ रुपये था और जून 2021 में यह 8.11 लाख करोड़ रुपये हो गया। यहां भी सरकारी बैंकों का प्रदर्शन निजी बैंकों से बेहतर रहा। उनका जीएनपीए 4.2 फीसदी कम हुआ जबकि निजी बैंकों का 3.3 फीसदी बढ़ा। एनएनपीए को देखें तो विरोधाभास और स्पष्ट है। इसमें आधा फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 2.52 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.53 लाख करोड़ रुपये हो गया। परंतु सरकारी बैंकों के शुद्ध एनपीए में 4 फीसदी कमी आई जबकि निजी बैंकों का एनएनपीए करीब 22 फीसदी बढ़ा। आईडीबीआई का जीएनपीए 22.71 फीसदी है जो सर्वाधिक है इसके बाद येस बैंक (15.6 फीसदी) का नंबर आता है।
किसी अन्य निजी बैंक का जीएनपीए दो अंक में नहीं है। सरकारी बैंकों की बात करें तो सेंट्रल बैंक (15.92 फीसदी) शीर्ष पर है जबकि छह बैंकों का जीएनपीए दो अंक में है। प्रॉविजनिंग के बाद चार बैंकों का एनएनपीए 5 फीसदी से अधिक है। ये हैं पंजाब नैशनल बैंक (5.84 फीसदी), येस बैंक (5.78 फीसदी), केंद्रीय बैंक (5.09 फीसदी) और साउथ इंडियन बैंक (5.05 फीसदी)। अधिकांश सरकारी बैंक जून तिमाही में अपना एनएनएपीए एक वर्ष पहले की तुलना में कम करने में कामयाब रहे। महामारी की दो लहरों के बावजूद कॉर्पोरेट ऋण अप्रभावित रहा। क्रेडिट सुइस की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉर्पोरेट परिसंपत्ति गुणवत्ता चक्र सुधार एनपीए सीमित रखने में मददगार रहा। ऐसा धातु और बिजली जैसे तनावग्रस्त क्षेत्रों के लाभमें सुधार की बदौलत हुआ। फिलहाल नियामकीय और सरकारी मदद के साथ बैंकिंग तंत्र ने हमें अपनी मजबूती से चौंकाया है।