भारत वर्ष 2024 की पहली तिमाही में पहली बार अपने अपतटीय खनिज की नीलामी शुरू करेगा। इससे संसाधन के आधार को विविधीकृत और हरित ऊर्जा खनिजों को हासिल करने में मदद मिलेगी। यह जानकारी केंद्रीय खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी ने नैशनल जियोसाइंस डेटा रिपॉजिटरी के पोर्टल के उद्घाटन समारोह के दौरान दी।
सरकार की योजना 15 में से 10 अपतटीय ब्लॉकों में खनन के लिए मार्च में नीलामी शुरू करने की है। इस सिलसिले में खनन मंत्रालय अपतटीय खनन के लिए कानून और नियमन तैयार कर रहा है।
खनन मंत्रालय के सचिव वीएल कांथा राव ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘नीलामी के लिए 10-15 ब्लॉक तैयार है। शीघ्र ही परामर्श के लिए नियम-कायदे जारी किए जाएंगे।’ अभी मंत्रालय अंतर मंत्रालय परामर्श कर रहा है। इसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और आवश्यक मंजूरियों के संबंधित निकाय शामिल हैं।
सरकार ने अपटीय क्षेत्र खनन (विकास व विनियमन) अधिनियम 2002 को स्वीकृति मिलने के बाद अपतटीय ब्लॉक की नीलामी के लिए कदम उठाया है। यह अधिनियम 10 अगस्त को स्वीकृत किया गया था। इसके अलावा सरकार ने 20 महत्त्वपूर्ण खनिजों को नीलाम करने की प्रक्रिया 29 नवंबर को शुरू की थी।
महत्त्वपूर्ण खनिज सात राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में हैं। महत्त्वपूर्ण खनिजों को यह परिभाषा तय की गई है जो आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी हैं और उनकी आपूर्ति श्रृंखला विघटन के प्रति संवेदनशील है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने अपतटीय क्षेत्र में फैली रेत व बजरी में पॉलिमेटलिक नोड्यूल्स की पहचान की है, इन्हें मैंगनीज नोड्यूल्स के रूप में भी जाना जाता है। इनमें प्रमुख तौर पर लोह, मैगनीज, निकेल, तांबा और कोबाल्ट होते हैं। इसके अलावा अपतटीय क्षेत्र रेत और बजरी के भंडारगृह के रूप में भी कार्य करते हैं। रेत और बजरी निर्माण, तट को अच्छा रखने और भूमि सुधार परियोजनाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है।
इसके अलावा समुद्र की तलहटी रे दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व (आरईई) की भी खोज की गई है। तीन बड़े जल क्षेत्रों हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के जल में अपतटीय खनिज पाए जाते हैं। इन तीनों ने भारतीय प्रायद्वीप को घेर रखा है।
भारत अपतटीय क्षेत्र में अभियान की शुरुआत करके अपने अत्यधिक फैले विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में खनिज की खोज करेगा। यह क्षेत्र करीब 23.7 लाख वर्ग किलोमीटर (8,90,021 वर्ग मील) है। यह क्षेत्र तट से भारत की जल सीमा में 200 नौटिकल मील (370.4 किलोमीटर) तक है।
भारत के अपतटीय खनन में हाथ आजमाने के बाद राष्ट्र की स्पष्ट भूवैज्ञानिक क्षमता (ओबियस जियोलॉजिकल पोटेंशियल) का दायरा हालिया 6.88 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक बढ़ने की उम्मीद है। जनार्दन प्रसाद ने बताया, ‘नैशनल जियोकैमिकल मैपिंग (एनजीसीएम) के बाद ओजीपी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा है और इसके आगे बढ़ने की उम्मीद है।’
भारत के ईईजेड से रणनीतिक फायद प्राप्त होता है। ईईजेड से इलेक्ट्रिक वाहनों और हरित तकनीक के लिए आवश्वयक महत्त्वपूर्ण खनिजों को समुद्र की तलहटी से हासिल किया जा सकता है। तकनीकी और पर्यावरण चुनौतियों के कारण इन खनिजों को वाणिज्यिक तौर पर खोद निकालना चुनौतीपूर्ण है।