किसी समय देश की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माता वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के बंद होने और उसकी परिसंपत्तियों के बिकने (परिसमापन) के आसार हैं क्योंकि कोरोनावायरस के कारण बोलीदाताओं की कंपनी में रुचि कम हो रही है।
कंपनी अपना 40,000 करोड़ रुपये का कर्ज नहीं लौटा पाई थी, इसलिए जून 2018 में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत उसके ऋण समाधान की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इस घटनाक्रम से परिचित सूत्रों के मुताबिक बैंक अधिकारियों ने 29 जुलाई को बैठक में कंपनी के परिसमापन को लेकर चर्चा की। सूत्र ने कहा, ‘इस मुद्दे पर ऋणदाताओं की समिति की अगली बैठक में फिर से चर्चा और मतदान होने के आसार हैं। पूरी दुनिया पर कोरोना के प्रहार और उसकी वजह से लगाए गए लॉकडाउन से पहले कंपनी को खरीदने के लिए दर्जनों बोलियां आई थीं। लेकिन अब बोलीदाता हालात का फिर से आकलन करने के लिए अपने कदम वापस खींच रहे हैं। बोलीदाता अपनी नकदी को बचाकर रखना और कोई अधिग्रहण नहीं करना चाहते हैं।’
अधिकारी ने कहा, ‘अगर कंपनी का परिसमापन हुआ तो बैंकों को अपनी बकाया राशि का पांच फीसदी से भी कम मिलेगा।’ सरकार ने कोविड महामारी के कारण नए मामलों के लिए दिवालिया प्रक्रिया रोक दी है, लेकिन पुराने मामलों को लेकर बातचीत जारी है। वीडियोकॉन की ब्राजील में तेल परिसंपत्तियां और यूरोप एवं चीन में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण इकाइयां हैं। कंपनी का बुरा दौर वर्ष 2012 में शुरू हुआ, जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसके और कुछ अन्य कंपनियों के 2जी तकनीक आधारित दूरसंचार लाइसेंस रद्द कर दिए। इसके लिए अदालत ने दूरसंचार मंत्रालय के 2008 में अवैध स्पेक्ट्रम आवंटित करने का हवाला दिया था। इस वजह से बहुत सी कंपनियां बंद हुईं, हजारों लोगों की नौकरियां चली गईं और बैंकों का कर्ज फंस गया।
इसके बाद पैतृक कंपनी वीआईएल भी अपनी कर्ज की लागत बढऩे से चरमराकर बैठ गई। एनसीएलटी ने जून 2018 में बैंकों की दिवालिया याचिका स्वीकार की थी। इसके बाद एनसीएलटी ने अगस्त 2019 में समूह की सभी 13 कंपनियों की कंपनी दिवालिया समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) को एकजुट करने की मंजूरी दे दी ताकि कंपनी को तेल एवं गैस और इलेक्ट्रॉनिक्स संयंंत्र की परिसंपत्तियों के लिए बोलियां मिल सकें। बैंकों ने एनसीएलटी प्रक्रिया के दौरान तर्क दिया था कि आईबीसी का मकसद परिसमापन नहीं बल्कि चालू कंपनी के रूप में वीआईएल का समाधान और उसे फिर से पटरी पर लाना है। बैंकों का मानना था कि अगर वीआईएल को एकीकृत बनाया जाता है तो सभी या वीआईएल समूह की परिसंपत्तियों की व्यापक समाधान योजना के तहत किसी बोलीदाता को पेेशकश की जा सकती है। इसके नतीजतन समूह की प्रत्येक कंपनी की अच्छी कीमत मिलेगा, जिसका सभी हितधारकों को फायदा मिलेगा।
