टेस्ला इंक के सीनियर अधिकारियों के एक समूह ने भारत में सप्लाई चेन को गहरा करने के लिए भारत का दौरा करने की योजना बनाई है। इस दौरे के दौरान वे भारत सरकार के अधिकारियों से मिलेंगे। दरअसल, टेस्ला चीन के बाद अपना मार्केट भारत में फैलाना चाहता है और उसी के लिए उनके अधिकारी दौरे पर आ रहे हैं।
मामले के जानकार लोगों के मुताबिक, टेस्ला के मॉडलों के लिए कंपोनेंट को भारत में कैसे प्राप्त किया जाए इसको लेकर टेस्ला अधिकारियों का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय के प्रतिनिधियों सहित सरकारी प्रतिनिधियों के साथ मिलने का कार्यक्रम है। यह यात्रा टेस्ला और भारत के रिश्तों को मजबूत बना सकती है।
गौर करने वाली बात है कि टेस्ला का अभी भारत में कोई खास कारोबार नहीं है। इसके पहले टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने भारत के हाई इंपोर्ट टैक्स और इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल पॉलिसी को खराब बताया था। जिसके जवाब में भारत ने टेस्ला को जवाब दिया था कि वे भारत में चीन से बनी कारें न बेचे।
संभावना है कि इस यात्रा में कंपनी के सी-सूट अधिकारी और मैनेजर शामिल होंगे। ये अधिकारी और मैनेजर टेक्सस बेस टेस्ला की सप्लाई चेन, प्रोडक्शन और बिजनेस डेवलपमेंट टीम का हिस्सा हैं। माना जा रहा है कि ये अधिकारी टेस्ला की तरफ से देश में उनकी कार पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने का निवेदन करेंगे।
अगर टेस्ला भारत के बने कंपोनेंट लेने का फैसला लेती है, तो वे प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे को जीत सकते हैं। क्योंकि पीएम मोदी भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते हैं। अभी तक मोदी सरकार ने टेस्ला को ज्यादा भाव नहीं दिया है। पिछले दिनों ही सरकार ने कहा था कि कंपनी चीन में बने अपने वाहनों को भारत में बेचने से परहेज करे। गौर करने वाली बात है कि भारत और चीन के बीच बॉर्डर को लेकर पिछले कुछ समय से तनातनी चल रही है।
एक ओर जहां टेस्ला को भारत में एंट्री करना मुश्किल हो गया है, इसके वैश्विक प्रतिद्वंद्वी जैसे मर्सिडीज-बेंज एजी ने स्थानीय रूप से असेंबल की गई कारों को बेचने की तरफ कदम उठाए हैं। वे दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश और उच्च विकास क्षमता वाले ऑटोमोबाइल बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग पर दांव लगा रहे हैं।
निश्चित रूप से, टेस्ला को अभी भी भारत में अपनी महंगी कार का बेस बनाने में वक्त लगेगा। मस्क पहले ही कह चुके हैं कि वह उन जगहों पर अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बिल्कुल नहीं लगाएंगे जहां उन्हें अपने वाहन पहले बेचने की अनुमित नहीं मिलती।
लेकिन टेस्ला सहित अमेरिकी कंपनियां तेजी से चीन के अलावा अपने अन्य बेस को तलाशने की जरूरत को समझ रही हैं। क्योंकि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच व्यापार तनाव कम होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। वैसे टेस्ला एप्पल से सीख ले सकती है। एप्पल ने भारत को एक वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग बेस के रूप में चुना है। यहां अब वह अपने वैश्विक स्मार्टफोन उत्पादन का 7% प्रोडक्शन करता है।