ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र की भारतीय कंपनियां तेल की कीमतों में लगी आग के बाद वैकल्पिक ऊर्जा के निर्माण के लिए आगे आ रही हैं।
रिलायंस, सुजलॉन और एनेरकॉन के अलावा विद्युत क्षेत्र की दिग्गज कंपनी टाटा पावर ने गुजरात में पवन और सौर दोनों से 1000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा तैयार करने के लिए अपनी योजनाओं का खुलासा कर दिया है।
इस प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पूरी परियोजना पर 7,000-10,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘इसमें से कम से कम 200 मेगावाट ऊर्जा सौर से होगी जिसके लिए कंपनी फोटोवोल्टेक सेल के उत्पादन के लिए एक नई इकाई की स्थापना करेगी।’ कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि ये योजनाएं शुरुआती दौर में हैं।
अधिकारियों के मुताबिक टाटा पावर गुजरात के कच्छ में 50 मेगावाट अक्षय ऊर्जा के निर्माण के लिए पहले से ही एक पायलट परियोजना को अंजाम दे रही है। कंपनी देश में सबसे बड़े फोटोवोल्टेक सेल के निर्माण के लिए बीपी सोलर के साथ पहले ही गठजोड़ कर चुकी है। दूसरी तरफ एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भी टाटा पावर के पवन ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण और संचालन के लिए वित्तीय मदद बढ़ा दी है।
सूत्रों के मुताबिक कंपनी ने प्रस्तावित परियोजना के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया है और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) सौंपने की तैयारी कर रही है। ये परियोजनाएं कच्छ में चलाए जाने की योजना है जहां मुंद्रा में यह कंपनी अपनी अल्ट्रा मेगा पावर पावर प्रोजेक्ट (यूएमपीपी) पहले से ही चला रही है। सूत्रों के मुताबिक इसके अलावा जामनगर भी पसंदीदा विकल्प है। जब इस बारे में टाटा पावर के एक अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
फोटोवोल्टेक उद्योग अक्षय ऊर्जा के बीच उच्च दीर्घकालिक क्षमताओं में से एक है। इससे पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने गुजरात के जामनगर में 20,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एक मेगा सोलर फोटोवोल्टेक (पीवी) सेल संयंत्र स्थापित करने के लिए दिलचस्पी दिखाई थी। इसके अलावा यूरो समूह की इकाई यूरो सोलर भी कच्छ इलाके में 100 मेगावाट की क्षमता वाली एक इकाई की स्थापना करने की योजना बना रही है।
यूरोपियन फोटोवोल्टेक इंडस्ट्री एसोसिएशन (ईपीआईए) के मुताबिक उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी से पीवी उत्पादन खर्च और मूल्य में पहले ही काफी कमी दर्ज की जा चुकी है। एक औद्योगिक विश्लेषक के मुताबिक भारत में पीवी उत्पादन खर्च 2001 में 30 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट था जो अब घट कर 15-20 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट रह गया है।