अपने मुल्क में इधर कुछ सालों से मल्टी यूटिलिटी व्हीकल्स
वजह बेहद साफ सी है, ये कारें बस और ट्रेन से ज्यादा आरामदायक और सुविधाजनक हैं। पर क्या आप जानते हैं, इन कारों का भारत से जान–पहजान करने का श्रेय किसे जाता है? यह काम किया था टाटा सूमो ने।
वह दौर था
1994 का, जब कारों के बाजार में हर तरफ टाटा सूमो की ही चर्चा हो रही थी। उस समय इसका विकल्प केवल महिंद्रा की कमांडर और अरमाडा ही थी, जो नई–नई लॉन्च हुईं थीं। लेकिन सूमो उनसे 20 ही साबित हुई। वजहें कई थीं। सबसे बड़ी बात तो यह कि इसमें 10 आदमी बड़े आराम से बैठ सकते थे।
इसका लुक भी उस समय के मुताबिक काफी मॉडर्न था। साथ ही, इसके दमदार इंजन का तो कोई जवाब ही नहीं था। लोगों का ध्यान इसकी तरफ फौरन गया। मेरे पड़ोसी ने तो एक नही, दो–दो सूमो खरीद ली थे। इसी वजह से तो इसने रिकॉर्ड समय में एक लाख गाड़ियां बेचने का एक नया मुकाम हासिल कर लिया। इसने इस दौड़ में मारुति 800 जैसी कार को मात दी थी।
तब से लेकर अब तक वक्त काफी बदल चुका है। कई कारें लॉन्च हो चुकी है। जैसे महिंद्रा की बॉलेरो व स्कॉर्पियो
, टोयोटा की क्वालिस तथा इनोवा और शेवर्ले की टवेरा। प्रतिस्पध्र्दा गलाकाट हो चुकी है। ऐसी बात नहीं है कि टाटा मोटर्स ने सूमो को यतीम बच्चे की तरह छोड़ दिया था, लेकिन इस बात से भी इनकार किया जा सकता है कि सूमो का बुनियादी डिजाइन 1994 वाला ही था।
लेकिन अब आप यह बात नहीं कह सकते। टाटा मोटर्स ने सूमो को अब एक नए लुक के साथ बाजार में उतरा है। सूमो के इस मेकअप में उसने पूरे 300 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। ‘सूमो ग्रैंड‘ के नाम से पेश की गई इस कार को सूमो का बिल्कुल सही उत्तराधिकारी कहा जा सकता है।
एक नजर ही में यह कार आपके आंखों को भा जाएगी। सबसे बड़ी बात यह कि ‘ग्रैंडे‘ के साथ टाटा मोटर्स ने सूमो को टैक्सी या कैब के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली कार से एक ऐसी कार बनाने की कोशिश की है, जिसे हम शान से अपने दोस्तों को दिखा सकते हैं।
इस कार के हेडलैंप काफी कुछ जैनन पिकअप वैन की तरह लगता है। कार का ग्रिल भी बक्से की से बदलकर षट्कोण की तरह कर दिया गया है। इसकी वजह से ऐसा लगता है, जैसे कार मुस्कुरा रही हो। साथ ही, साइड पैनल में भी काफी बदलाव किया गया है। इसमें अब धातु की चादरों का इस्तेमाल किया गया है।
चक्कों के ऊपर वाले हिस्से को भी टाटा वालों ने काफी अच्छी तरह से उभारा है। जनाब इसके लिए रबड़ नहीं मेटल का इस्तेमाल किया गया है। बोनट भी काफी ऊंचा रखा गया है इस कार में। इससे एक तरह की भावना आती है, जिसे कार मालिक काफी पसंद करेंगे। वैसे, इस कार में सबसे बड़ा बदलाव व्हीलबेस को लेकर किया गया है। इसमें व्हीलबेस को बढ़ाकर 150 मिमी तक ले आया गया है।
इससे अंदर काफी जगह बन गई है। साथ ही, किनारों भी पहले की तरह नुकीले नहीं नजर आते। पीछे की लाइट्स में भी बदलाव किया गया है। इसे बदलकर अब वर्टिकलिटी में रखा गया है। पूरे में कहें तो बाहर से ग्रैंडे, पुराने सूमो की तरह प्रोडक्शन कार नहीं, बल्कि मॉडर्न कॉन्सेप्ट कार लगती है।
अंदर से यह कार कुछ–कुछ विक्टा की तरह लगती है। कम से कम, डैसबोर्ड को देख तो सूमो विक्टा की ही याद आती है।
वैसे, इसकी फिटिंग और फिनिशिंग विक्टा से काफी अच्छी है, लेकिन इस मामले में वह टोयोटा इनोवा से काफी पीछे है। सीट काफी आरामदायक है। साथ ही, इसमें आपको पैर फैलाने के लिए भी अच्छी–खासी जगह मिलेगी। इसकी एसी में भी काफी दम है। इसके अलावा, छह स्पीकरों वाले एल्पाइन सिस्टम तो आपको अपना दीवाना बनाकर छोड़ेगा।
इसकी चेसिस भी काफी मजबूत है। वैसे
, इसकी बुनियादी पुराना सूमो ही है, लेकिन बदलाव तो किए ही गए हैं। इसका सस्पेशन काफी अच्छा है, जबकि ब्रेक तो टाटा सफारी 2.2 की टक्कर के हैं। वैसे. इसका इंजन भी सफारी 2.2 वीटीटी डीकोर के तर्ज पर ही बनाया गया है।
लेकिन यह है असल इंजन से थोड़ा कमजोर। इसे 0 से 100 किमी प्रति घंटा की रफ्तार हासिल करने में पूरे 19 सेकेंड लग जाते हैं। इसमें 118 बीएचपी की ताकत है। इतनी ताकत शहर की सड़कों के लिए पर्याप्त है। हालांकि, इसे चलाने का असल मजा तो हाईवे पर आता है, जब यह कार हवा से बातें करती है।
जैसे ही आप चाभी घुमाएंगे, सूमो इंजन की वही पुरानी आवाज आपके कानें तक आएगी। वैसे, आवाज ज्यादा नहीं होती है। हालांकि, स्टियरिंग व्हील काफी अच्छा है, लेकिन इससे ज्यादा अपेक्षा न रखें। वैसे टाटा मोटर्स ने असल दांव खेला है कीमत पर। सूमो ग्रैंडे की कीमत रखी गई है, केवल 6.7 लाख रुपए।
लग्जरी वैरिएंट की भी कीमत 7.6 लाख रुपए के ही आस रखी गई है। लब्बोलुआबा यही है कि अगर कम कीमत में आपको अच्छा लुक, ठीक–ठाक इंजन और अच्छा इंटीरियर चाहिए, तो सूमो ग्रैंडे की तरफ जाएं।