भारत में डीजल इंजन से आगे की सटीक राह इस बात पर निर्भर करती है कि वाहन विनिर्माता नए पावरट्रेन की जरूरत का मूल्यांकन किस तरह करते हैं। इसके लिए उन्हें परिचालन की स्थिति, प्रदर्शन की अपेक्षाएं, ड्यूटी साइकल, सामर्थ्य और खुदरा ईंधन के बुनियादी ढांचे जैसी अपनी विविध जरूरतों को देखना होगा। कमिंस में इंडिया रीजनल लीडर श्वेता आर्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी। कमिंस टाटा मोटर्स जैसे देश के प्रमुख मझोले और भारी वाणिज्यिक वाहन विनिर्माताओं के लिए भारी डीजल इंजन बनाती है।
सितंबर 2023 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि वाहन उद्योग को ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले डीजल वाहनों का उत्पादन कम करना चाहिए वरना सरकार अतिरिक्त 10 प्रतिशत वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लगाने पर विचार कर सकती है। इसकी प्रतिक्रिया में प्रमुख वाहनों के शेयर लुढ़क गए तो उन्होंने उसी दिन स्पष्ट किया कि ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है।
आर्य ने भारत मोबिलिटी ग्लोबल एक्सपो में बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा, ‘डीजल क्षेत्र में शोध 100 से ज्यादा वर्षों से चल रहा है। इसलिए ग्राहकों को इससे प्रदर्शन और दक्षता मिलती है। डीजल से आगे का रास्ता भी उतना स्पष्ट नहीं होने वाला है। यह वास्तव में अनुप्रयोगों पर निर्भर होने वाला है। यहां तक कि अगर आप राजमार्ग बाजार पर नजर डालें तो यह बात काफी अलग होगी कि लंबी दूरी के ट्रकों की क्या जरूरत है, बनाम खनन ट्रकों की क्या जरूरत है, बनाम आपके छोटी दूरी के वाहनों की क्या जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘हम इनमें से प्रत्येक श्रेणी के लिए पर्यावरण के प्रति और ज्यादा अनुकूल समाधानों की दिशा में बढ़ेंगे। लेकिन तब ग्राहक परिचालन की स्थितियों, प्रदर्शन की आवश्यकताओं, ड्यूटी साइकल, सामर्थ्य और नजर आ रहे (खुदरा ईंधन) बुनियादी ढांचे के आधार पर चयन करेंगे।’