भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को भारतीय बैंकिंग उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए उन्हें भारतीय कंपनियों की तरफ से होने वाले अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति दे दी। इस कदम से देश में बैंकों के पूंजी बाजार ऋण का भी विस्तार होगा। आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, बैंकों द्वारा पूंजी बाजार ऋण के दायरे का विस्तार करने के लिए भारतीय बैंकों को देसी कंपनियों द्वारा अधिग्रहण के फंडिंग के लिए एक सक्षम ढांचा प्रदान करने का प्रस्ताव है।
बैंकों ने अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति देने की खातिर आरबीआई से अनुरोध किया था, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि उद्योग को ऋण देने में काफी कमी आई है तथा कंपनियां अपनी पूंजीगत व्यय के लिए वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
अगस्त में, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन सी. एस. शेट्टी ने कहा था कि भारतीय बैंक संघ औपचारिक रूप से भारतीय रिजर्व बैंक से अनुरोध करेगा कि वह घरेलू बैंकों को भारतीय कंपनियों के विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) की फंडिंग की अनुमति दे, जिसकी शुरुआत संभवतः सूचीबद्ध कंपनियों से की जाएगी, जहां अधिग्रहण अधिक पारदर्शी होते हैं और शेयरधारकों द्वारा मंजूरी वाले होते हैं।
भारतीय बैंकों को आम तौर पर विलय और अधिग्रहण के लिए ऋण देने से प्रतिबंधित किया जाता है, क्योंकि इस तरह के वित्तपोषण से अति-उधार, होल्डिंग कंपनी स्तर पर प्रमोटर-स्तरीय वित्तपोषण हो सकता है और यह सीधे तौर पर परिसंपत्ति निर्माण या वृद्धि में योगदान नहीं दे सकता है। परिणामस्वरूप कंपनियां अक्सर इन सौदों के वित्तपोषण के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, निजी इक्विटी फर्मों या विदेशी ऋणदाताओं का रुख करती हैं।
शेट्टी ने कहा, भारतीय बैंकों द्वारा एमऐंडए वित्तपोषण की अनुमति देना वृद्धि को बढ़ावा देने वाला है और इससे बैंकों से कर्ज प्रवाह में वृद्धि होगी। अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति देना आरबीआई का एक बड़ा सकारात्मक कदम है, क्योंकि इस तरह का अधिकांश वित्तपोषण निजी ऋण बाजार में स्थानांतरित हो गया है, जहाँ उधार लेने की लागत काफी अधिक है। बैंक अब इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं और अधिग्रहण वित्तपोषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं। एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ बैंकर ने कहा, निकट भविष्य में बैंकों द्वारा एमएसएमई, कर्ज मुक्त कंपनियों और दवा क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किए गए छोटे अधिग्रहणों पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है।
एसबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, बैंकों द्वारा अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने से निश्चित रूप से व्यावसायिक अवसर खुलेंगे। उन्होंने कहा, हालांकि बैंक मजबूत क्रेडिट अंडरराइटिंग मानकों और एक अनुभवी टीम के साथ अवसरों के लिए सबसे उपयुक्त स्थिति में है, लेकिन विलय एवं अधिग्रहण के लिए एक अलग कौशल और दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। ऋणदाता विलय एवं अधिग्रहण के लिए प्रतिभा और पारिस्थितिकी तंत्र को निखारने और विकसित करने हेतु एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है।
एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2024 में विलय एवं अधिग्रहण सौदों का मूल्य 120 अरब डॉलर यानी 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। यह मानते हुए कि विलय एवं अधिग्रहण में ऋण का हिस्सा 40 फीसदी है और अगर इसका 30 फीसदी बैंकों द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा तो यह 1.2 लाख करोड़ रुपये की संभावित ऋण वृद्धि में तब्दील हो सकता है।
यह ऐसे समय में हो रहा है जब कॉरपोरेट ऋण वृद्धि सुस्त रही है क्योंकि कंपनियां अपने वित्तपोषण या पूंजीगत व्यय की जरूरतों के लिए इक्विटी पूंजी बाजार, ऋण पूंजी बाजार और विदेशी पूंजी बाजार की ओर बढ़ रही हैं। इसके अतिरिक्त, अपनी बैलेंस शीट को कर्जमुक्त करके उन्होंने जो भारी मात्रा में नकदी जमा की है, वह भी उनकी तत्काल पूंजीगत व्यय आवश्यकताओं को पूरा करने में उनकी मदद कर रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, उद्योग को ऋण में अगस्त माह में 6.5 फीसदी की सालाना वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 9.7 फीसदी की सालाना वृद्धि दर्ज की गई थी।