देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज लिमिटेड के लिए सुर्खियां शायद अब आम हो गई हैं।
उसके प्रमोटरों की हिस्सेदारी जापानी दवा कंपनी दायची सांक्यो के हाथों बिकने की खबर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि अमेरिका से आए एक पैगाम ने वापस रैनबैक्सी के चर्चे आम कर दिए। अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन (यूएसएफडीए) ने कह दिया कि उसके देश के बाजार में दवाएं बेचने की मंजूरी हासिल करने के लिए भारतीय दिग्गज ने गलत और झूठे आंकड़े पेश किए थे।
यह खबर आते ही रैनबैक्सी के शेयरों की हालत भी पतली हो गई। दायची सांक्यो सौदे के बाद कंपनी के शेयरों में जो लड़खड़ाहट आई थी, वह बमुश्किल इस महीने दूर हुई थी। लेकिन यूएसएफडीए के बयान के बाद निवेशकों की कंपकंपी छूट गई। यही वजह थी कि 11 जुलाई को 531.45 रुपये के स्तर पर चल रहे शेयर एक झटके में 400 रुपये के करीब पहुंच गए।
शेयरों की कीमत में 25 फीसद से भी ज्यादा गिरावट की वजह से कंपनी की बाजार पूंजी में से तकरीबन 5,000 करोड़ रुपये गायब हो गए। हालांकि कंपनी ने अमेरिकी दावों को सिरे से खारिज कर दिया, लेकिन निवेशकों का भरोसा वह नहीं जीत सकी। रैनबैक्सी के शेयरों की गिरावट तभी थमी, जब कंपनी के मुख्य कार्यकारी मालविंदर मोहन सिंह ने खुद कमान संभाली। मालविंदर ने कहा कि अमेरिकी गणित के पीछे किसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी और एक भारतीय कंपनी का हाथ है।
उनके मुताबिक दोनों कंपनियां एक ही तीर से दो शिकार करना चाह रही हैं। सबसे पहले तो वे अमेरिका में रैनबैक्सी के बाजार को खत्म कर उसे आर्थिक धक्का पहुंचाना चाहती हैं और उसके साथ ही वे दायची के साथ उसके सौदे को भी पटरी से उतारना चाहती हैं। लेकिन मालविंदर ने कहा कि दायची के साथ उनके सौदे को अब कोई खत्म नहीं कर सकता। इसके बाद बाजार में रैनबैक्सी की हालत सुधरी, लेकिन सप्ताह के अंत में एक बार फिर वह गिरावट का शिकार हो गया।
शुक्रवार को कंपनी के शेयर 437.45 रुपये पर बंद हुए। इसकी वजह बाजार में फैली यह अफवाह है कि दायची कंपनी के अधिग्रहण के सौदे से बाहर आ सकती है या उसे कुछ समय के लिए टाल सकती है। अमेरिकी आरोपों का खंडन करने के बाद भी रैनबैक्सी के शेयर पहले जितने स्तर तक तो नहीं पहुंच सके, लेकिन उनमें अच्छा सुधार हुआ। लेकिन जानकारों के मुताबिक जब तक यह मामला ठंडा नहीं होता है, कंपनी के शेयरों में पैसा लगाना या निकालना माकूल नहीं है।
वैसे भी रुपये की कीमत कम होने के साथ ही कंपनी के बहीखाते पर प्रतिकूल असर पड़ने की बात भी कही जा रही है। जाहिर है, शेयरों की कीमत तो कम होगी ही। तकरीबन महीने भर पहले भी रैनबैक्सी चर्चा में थी, जब कंपनी में अपनी 34.8 फीसद हिस्सेदारी सिंह परिवार ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये में बेची। उस समय तो शेयरों में अच्छा खासा सुधार आ गया था।
रैनबैक्सी के बहीखाते में ऐसी बड़ी दिक्कत नहीं दिख रही थी। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में कंपनी को कुल 1034.22 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। हालांकि पिछले वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा 1152.77 करोड़ रुपये था, लेकिन वैश्विक मंदी और तमाम कारणों से कई बड़ी कंपनियों को मुनाफे पर चोट झेलनी पड़ी थी।