अगली पीढ़ी की मधुमेह और वजन घटाने की दवाओं की वैश्विक मांग बढ़ने के कारण, भारतीय फार्मा कंपनियां सेमाग्लूटाइड के जेनेरिक संस्करणों (जीएलपी-1) को बाजार में लाने की तैयारी कर रही है। सेमग्लूटाइड एक दवा है जो मधुमेह और मोटापे के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस दवा का पेटेंट मार्च 2026 में खत्म हो जाएगा, जिसके बाद भारतीय कंपनियां इसके जेनेरिक संस्करण को बाजार में ला पाएंगी। भारत में अभी सेमाग्लूटाइड गोली और इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध है जिसे डेनमार्क की कंपनी नोवो नॉर्डिस्क बनाती है।
दवा के जेनेरिक संस्करण का लॉन्च बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारतीय ग्राहकों के लिए कीमतें मौजूदा 17,000-26,000 रुपये (मासिक) से काफी कम होने की उम्मीद है जिससे अधिक मरीज इसका लाभ उठा पाएंगे। डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज (डीआरएल), सिप्ला, सन फार्मा, मैनकाइंड फार्मा और अन्य कंपनियां पहले दिन से ही लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। ये कंपनियां पेप्टाइड के उत्पादन को बढ़ा रही हैं और दूसरे जरूरी इंतजाम के लिए साझेदारी कर रही हैं और नियामकीय रणनीतियों के अनुरूप ढलने की कोशिश में हैं ताकि तेजी से बढ़ते जीएलपी-1 बाजार में अपनी हिस्सेदारी बना सकें। उम्मीद है कि दशक के अंत तक इस दवा का वैश्विक बाजार 150 अरब डॉलर से भी अधिक हो जाएगा।
हैदराबाद की कंपनी डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज (डीआरएल) की योजना, 2026 से 87 देशों में सेमाग्लूटाइड को वैश्विक स्तर पर लॉन्च करने की है जिसके तहत पेटेंट खत्म होते ही भारत और ब्राजील में इसे पहले ही दिन लॉन्च किया जाएगा। कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) इरेज इजरायली ने कहा है कि उनकी दवा की कीमत नोवो नॉर्डिस्क की दवा की प्रतिमाह 17,000 रुपये से कम होगी। कंपनी अगले दशक में चरणबद्ध लॉन्च के लिए 26 पेप्टाइड आधारित जीएलपी-1 दवाएं भी तैयार कर रही है जिसके लिए वित्त वर्ष 2026 में पेप्टाइड और बायोसिमिलर उत्पादन बढ़ाने के लिए 2,700 करोड़ रुपये का पूंजीगत खर्च किया जाएगा।
सिप्ला आंतरिक स्तर पर साझेदारी के जरिये पहले चरण के लॉन्च का लक्ष्य रख रही है। कंपनी के प्रबंध निदेशक (एमडी) और वैश्विक सीईओ उमंग वोहरा ने हाल में ही कहा, ‘पिछले पांच वर्षों में हमने जीएलपी-1 को थेरेपी के क्षेत्र में एक बड़े मौके के तौर पर देखा है।’ कंपनी आंतरिक स्तर पर जीएलपी-1 आपूर्ति श्रृंखला के कुछ हिस्से को तैयार कर रही है और बड़े पैमाने पर उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए साझेदारियों का भी लाभ उठा रही है।
सिप्ला भारत के कीमतों के लिहाज से संवेदनशील बाजार के लिए एक किफायती रणनीति भी बना रही है और इसका मानना है कि पेटेंट के बाद कीमतों में कमी की भरपाई बिक्री की मात्रा में बढ़ोतरी से हो जाएगी। मैनकाइंड फार्मा, सेमाग्लूटाइड के इंजेक्शन और गोली, दोनों तरह के जेनेरिक संस्करण लॉन्च करने की तैयारी में है। इसके साथ ही, कंपनी अपनी खुद की एक नई दवा एमकेपी10241 लॉन्च करने की भी तैयारी में है जिसके दूसरे चरण का परीक्षण ऑस्ट्रेलिया में चल रहा है।
सन फार्मा अपनी खुद की जीएलपी-1 दवा, यूट्रेग्लूटाइड पर काम कर रही है, जिसे लॉन्च होने में चार से पांच साल लग सकते हैं। कंपनी ने भारत में सेमाग्लूटाइड के तीसरे चरण के परीक्षण के लिए भी मंजूरी ले ली है। भारत में मोटापा कम करने वाली दवाओं का बाजार 628 करोड़ रुपये का है लेकिन इस समय भारतीय अदालतें और दवा नियामक इन दवाओं के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए निगरानी का दायरा बढ़ा रही हैं। सूत्रों के मुताबिक अदालत के आदेश के बाद, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की समिति मोटापे की दवाओं के दुष्प्रभावों और अनियंत्रित बिक्री से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर विशेषज्ञों की सलाह लेना शुरू करेगी।