पिछले कुछ वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे संगठित होने का रुझान रहा है, मगर कोविड-19 के कारण इसमें अचानक बड़ी तेजी आई है। आभूषण, पेंट, बिस्कुट, पेय, खाद्य पदार्थ से लेकर रेस्टोरेंट जैसे क्षेत्रों की संगठित कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ रही है, जो वित्तीय रूप से कमजोर, छोटी और संगठित कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी छीन रही हैं। संगठित क्षेत्र का उत्पादन स्तर और बैलेंस शीट असंगठित क्षेत्र की तुलना में बेहतर होती है। असंगठित क्षेत्र को लॉकडाउन की तगड़ी मार झेलनी पड़ी है, जिसमें बहुत से कारोबार बंद हो गए हैं। वहीं सुरक्षा और स्वच्छता को लेकर चिंतित उपभोक्ताओं ने स्थापित ब्रांडों का रुख किया है।
क्रिसिल का अनुमान है कि तनिष्क जैसी संगठित क्षेत्र की आभूषण कंपनियों का कारोबार में हिस्सा 2021-22 तक बढ़कर 45 फीसदी से अधिक हो जाएगा, जो 2017-18 में 25 से 35 फीसदी था। टाइटन के सीईओ (ज्वैलरी डिविजन) अजय चावला ने कहा कि आभूषण कंपनियों को सोने की कीमतों में बढ़ोतरी, मांग में कमी और एनबीएफसी एवं बैंकों के ऋण देने में सख्ती के कारण दबाव झेलना पड़ा है। चावला ने कहा, ‘कोविड-19 के बाद यह दबाव और बढ़ा है। ऐसे में केवल उन्हीं कंपनियों के पास अधिक नकदी रहेगी, जिनकी बैलेंस शीट मजबूत है और वे बाजार में भरोसेमंद हैं।’
एक अंतरराष्ट्र्रीय सराफा अनुसंधान कंपनी मेटल फोकस में वरिष्ठ अनुसंधान सलाहकार (दक्षिण एशिया) चिराग सेठ ने कहा कि कोविड-19 के बाद आकार की बहुत अहम हो गया है। उन्होंने कहा, ‘ग्राहक छोटे स्टोरों में जाने से बचेंगे, जिनमें केवल तीन से चार ग्राहक ही आ सकते हैं क्योंकि शारीरिक दूरी बनाए रखना मुश्किल होगा।’
यहां तक कि पेंट कारोबार भी बदल रहा है। इस बाजार में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाला असंगठित क्षेत्र अत्यधिक बिखरा हुआ है, जिसमें 3,000 से अधिक पेंट विनिर्माता हैं। कंसाई नेरोलैक के एमडी एच एम भारुका ने कहा, ‘ये उद्यमी कोविड-19 के बाद की दुनिया में आसानी से कारोबार नहीं कर पाएंगे क्योंकि साफ-सफाई और सुरक्षा के मानदंडों में काफी बढ़ोतरी से लागत में इजाफा होगा।’ वह कहते हैं कि एक अन्य चुनौती यह है कि संगठित कंपनियां भारत में गहरी पैठ बना रही हैं। वे उन मझोले एवं छोटे शहरों और कस्बों तक को लक्षित कर रही हैं, जहां छोटे उद्यमी अपना परिचालन करते हैं। भारुका का अनुमान है कि कुछ साल में असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी घटकर 20 फीसदी के आसपास आ जाएगी।
इसी तरह देश में 57,000 करोड़ रुपये के बिस्कुट कारोबार में संगठित क्षेत्र का हिस्सा फिलहाल करीब 65 फीसदी है। पार्ले प्रॉडक्ट्स के वरिष्ठ श्रेणी प्रमुख मयंक शाह का अनुमान है कि संगठित बाजार बढ़ेगा क्योंकि पैकेटबंद और ब्रांडेड उत्पादों को खरीदने वाले उपभोक्ताओं की तादाद बढ़ रही है।
शाह ने कहा, ‘इससे उन्हें यह भरोसा मिलता है कि उत्पाद साफ-सफाई से बनाए हुए एवं सुरक्षित हैं। लॉकडाउन के दौरान बिस्कुटों की घरों में खपत बढ़ी है। संगठित बिस्कुट विनिर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया कि लॉकडाउन में चुनौतियों के बावजूद उत्पादन एवं वितरण जारी रहे।’
इसी तरह का रुझान 14,000 करोड़ रुपये के जूस बाजार में नजर आता है, जिसमें पेप्सिको और डाबर इंडिया जैसी बड़ी कंपनियों की मौजूदगी है। पचास फीसदी जूस की खपत घर से बाहर बाजार में होती है, जिसमें असंगठित क्षेत्र का दबदबा है। घरेलू खपत में संगठित क्षेत्र का दबदबा है। मगर कोरोना काल में 50 फीसदी असंगठित बाजार पूरी तरह ठप पड़ गया है। लॉकडाउन का वित्तीय असर ने बहुुत से छोटे रेस्टोरेंटों को अपना परिचालन बंद करने को मजबूर कर दिया है। रेस्टोरेंट खुलने के बाद लोग कम साफ-सफाई के डर से छोटे रेस्टोरेंटों से दूरी बनाने को तरजीह देंगे।
चीनी और खाद्य तेल जैसी दैनिक खाद्य वस्तुओं को लेकर भी उपभोक्ताओं की खरीद आदतों में बदलाव आया है, जो संगठित उद्यमियों के लिए फायदेमंद है। यह देखना होगा कि सभी उद्योगों में यह रुझान अच्छा है या नहीं। कंसोलिडेशन से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, जो उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है। मगर बड़ी तादाद में रोजगार मुहैया कराने वाले असंगठित क्षेत्र के सिकुडऩे से रोजगार के मौकों पर बुरा असर पड़ सकता है।