टाटा मोटर्स पैसेंजर वेहिकल्स के प्रबंध निदेशक शैलेश चंद्रा का मानना है कि केवल शून्य उत्सर्जन वाली कारें ही वायु प्रदूषण में कमी लाने, ईंधन आयात घटाने और शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकती हैं।
उद्योग के एक वर्ग द्वारा हाइब्रिड कारों पर लगाए गए करों में कटौती की मांग के बीच चंद्रा ने कहा कि ऐसे वाहन शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने, वायु गुणवत्ता के स्तर में सुधार और जीवाश्म ईंधन आयात को कम करने के प्रमुख राष्ट्रीय उद्देश्यों के साथ मेल नहीं खाते हैं।
उन्होंने कहा कि कारों में हाइब्रिड और सीएनजी प्रौद्योगिकियां ईंधन दक्षता में सुधार करने और उत्सर्जन-संबंधी नियामकीय अनुपालन को पूरा करने में मदद करती हैं, लेकिन इसकी तुलना शुद्ध बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों से नहीं की जा सकती।
चंद्रा ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘सरकार पहले से ही कम कराधान के जरिये हाइब्रिड वाहनों को समर्थन दे रही है और इन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों के समान लाने की कोई जरूरत नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि हाइब्रिड कारों की तुलना इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) से नहीं की जा सकती क्योंकि वे अनिवार्य रूप से प्रदूषण फैलाने वाले ‘जीवाश्म ईंधन’ पर चलती हैं।
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चंद्रा ने कहा कि ईवी की तुलना में हाइब्रिड को ‘अनावश्यक दर्जा’ देने पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार हालांकि ईवी को समर्थन देने के मामले में बहुत सहयोगी और दृढ़ रही है। देश में हाइब्रिड वाहनों पर कुल कर 43 प्रतिशत है, जिसमें माल एवं सेवा कर (जीएसटी) भी शामिल है। वहीं बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों पर लगभग पांच प्रतिशत कर लगता है।
टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी घरेलू वाहन कंपनियां बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जबकि टोयोटा, सुजुकी और होंडा जैसे जापानी वाहन विनिर्माता घरेलू बाजार में हाइब्रिड प्रौद्योगिकी पर दांव लगा रहे हैं। चंद्रा ने कहा, ‘‘हाइब्रिड वास्तव में एक जीवाश्म ईंधन वाहन है जिसे ईवी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है क्योंकि यह एक मोटर और एक छोटे बैटरी पैक का उपयोग करती है। मूलतः यह ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्म ईंधन का उपयोग करती है।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘जीवाश्म ईंधन आधारित प्रौद्योगिकी के लिए एक अलग व्यवहार क्यों होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने, ईंधन आयात घटाने और शुद्ध शून्य लक्ष्य को पाने में वाहन उद्योग सिर्फ शुद्ध शून्य-उत्सर्जन प्रौद्योगिकी के जरिये समर्थन दे सकता है। चंद्रा ने कहा, ‘‘हमें (ईवी निर्माताओं को) समर्थन की आवश्यकता है, जो प्रौद्योगिकी की बहुत ऊंची लागत की वजह से दिया जा रहा है।
इसके अलावा आपूर्ति के लिए पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और चार्जिंग ढांचे की कमी है। हमें लंबा रास्ता तय करने के लिए इनका विकास करने की जरूरत है।’’ चंद्रा ने कहा कि राजस्थान और गुजरात में उसके लगभग 45-50 प्रतिशत ईवी ग्राहक अपनी कारों को चार्ज करने के लिए छत पर सौर इकाइयों का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रकार वे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग कर रहे हैं।