एफएमसीजी कंपनियों के लिए वॉल्यूम वृद्धि में सुधार चुनौतीपूर्ण बना हुआ है क्योंकि खाद्य महंगाई में लगातार हो रही बढ़ोतरी और महानगर व बड़े शहरों में नरमी से मांग का परिदृश्य सुस्त हो रहा है।
नेस्ले इंडिया के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक सुरेश नारायणन ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, बाजार सुस्त मांग का सामना कर रहा है क्योंकि एफऐंडबी सेक्टर में वृद्धि अब घटकर 1.5-2 फीसदी पर आ गई है, जो कुछ तिमाही पहले दो अंकों में हुआ करती थी। टियर-1 और कस्बों के अलावा ग्रामीण इलाकों में अपेक्षाकृत स्थिरता देखने को मिल रही है, लेकिन बड़े शहरों व महानगर में दबाव का केंद्र बन गया है।
वॉल्यूम वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने वाली कंपनी ने सितंबर में समाप्त तिमाही में वॉल्यूम में 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की है।
कंपनी के दूध व पोषक आहार वाले पोर्टफोलियो में सबसे ज्यादा नरमी देखने को मिल रही है, साथ ही चॉकलेट व कन्फेक्शनरी सेगमेंट भी प्रभावित है, जिसमें किटकैट में एक अंक की वृद्धि हुई जबकि मंच ब्रांड को क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिसका समाधान फंडामेंटल के हिसाब से किया जाएगा।
नारायणन ने बढ़ती खाद्य महंगाई को चिंता का कारण बताया और कहा कि अगर यह प्रबंधन योग्य नहीं रह जाएगा तो कीमतों में बढ़ोतरी होगी।
उन्होंने मुख्य रूप से कॉफी व कोकोआ जैसी जिंसों की लागत में बढ़ोतरी की बात कही, जो 10 साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई है। एक ओर जहां कॉफी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी बढ़ी है, वहीं कोकोआ की कीमतों में करीब 2.5 गुने का इजाफा हुआ है, जिससे उपभोक्ताओं के लि औसत बढ़ोतरी 15 से 30 फीसदी रही है।
उन्होंने कहा, हम छोटे पैक की कीमतें संरक्षित करने की कोशिश की है और बड़े पैक की कीमतें बढ़ाई है। इससे कॉफी में सुस्त लेकिन सकारात्मक वॉल्यूम वृद्धि हुई है।
नारायणन ने हालांकि कीमतों में तत्काल बढ़ोतरी की संभावना से इनकार किया और कहा कि कॉफी व कोकोआ के अलावा अन्य जिंसों में किफायत है और दूध, पैकिंग मैटीरियल व ईंधन में कुछ स्थिरता है।
एकीकृत आधार पर नेस्ले इंडिया का शुद्ध लाभ सितंबर तिमाही में 0.9 फीसदी घटकर 899 करोड़ रुपये रह गया, वहीं शुद्ध बिक्री में 1.3 फीसदी की मामूली वृद्धि हुई।