भारत में विलय और अधिग्रहण से जुड़ी गतिविधियों की रफ्तार वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में धीमी हो गई है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, इसके कारण ही विलय-अधिग्रहण से जुड़े करार एक साल पहले के 29.04 अरब डॉलर से कम होकर 26.26 अरब डॉलर पर सिमट गए हैं। विलय-अधिग्रहण से जुड़े करार की संख्या भी 840 (वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में) के मुकाबले 787 हो गई है, जो कॉरपोरेट जगत में करार की धीमी रफ्तार के संकेत दे रहा है।
विलय-अधिग्रहण सौदे के मूल्य में 9.57 प्रतिशत की यह गिरावट, पिछले साल हुई तेज वृद्धि के विपरीत है, जब भारत एशिया के सबसे सक्रिय विलय-अधिग्रहण बाजारों में से एक बनकर उभरा था। यह गिरावट ऐसे समय में दिख रही है जब वैश्विक निवेशक अमेरिका के आयात शुल्क (टैरिफ) के प्रभाव के डर, मूल्यांकन में अंतर और कर्ज वाले लेन-देन को लेकर बढ़ी जांच के बीच अधिक सतर्कता वाला रुख अपना रहे हैं।
फिर भी, वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में बड़े सौदे देखे गए। कैपजेमिनी द्वारा डब्ल्यूएनएस होल्डिंग्स का अधिग्रहण, टाटा मोटर्स द्वारा इवेको समूह की हिस्सेदारी खरीदना और विल्मर इंटरनैशनल द्वारा अदाणी एंटरप्राइजेज से एडब्ल्यूएल एग्री बिजनेस की खरीद जैसे सौदों ने आईटी सेवाओं, वाहन और प्रौद्योगिकी कंपनियों में बड़े पैमाने के सौदों के लिए लगातार बढ़ती दिलचस्पी पर जोर दिया है।
इसके अलावा रियल एस्टेट में भी दिचलस्पी देखी गई, जिसमें नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट ने कोलकाता में डायमंड प्लाजा मॉल का अधिग्रहण 68.1 करोड़ डॉलर में किया। विलय अधिग्रहण से जुड़े सौदों की संख्या के हिसाब से, सितंबर 2025 तिमाही में 787 सौदे हुए जो अब भी महामारी से पहले के वर्षों की तुलना में बेहतर गतिविधि के संकेत देते हैं।
हालांकि ये पिछले साल इसी तिमाही में हुए 840 सौदों से कम हैं। अधिकांश गतिविधि रणनीतिक खरीदारों की तरफ से देखी गई जबकि निजी इक्विटी लेन-देन की रफ्तार धीमी हो गई है क्योंकि फंड भारतीय कंपनियों के ऊंचे मूल्यांकन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
ईवाई में अधिकारी और नैशनल लीडर (प्राइवेट इक्विटी सर्विसेज), विवेक सोनी ने कहा, ‘प्राइवेट इक्विटी/वेंचर कैपिटल निवेशकों के बीच सतर्कता का माहौल अब भी बना हुआ है। भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं, बदलते व्यापार शुल्क और आप्रवासन नीतियों और रुपये के लगातार मूल्यह्रास जैसे वैश्विक हालात ने आत्मविश्वास को कम किया है।’सोनी ने कहा कि घरेलू संकेतक जैसे मजबूत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह, अग्रिम प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि, बेहतरीन आईपीओ की योजनाएं और लचीली खपत मांग, भारतीय अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित ताकत को दर्शाते हैं, जिससे विक्रेताओं की उम्मीदें ऊंची बनी हुई हैं।
सोनी ने कहा, ‘इसके अलावा, जीएसटी दरों में हालिया कटौती से घरेलू खर्च योग्य आय बढ़ने की उम्मीद है। इसके कारण खपत आधारित विकास चक्र को और समर्थन मिलेगा।’