हरियाणा की मेडन फार्मा उस समय विवाद में आई थी जब उसके सोनीपत संयंत्र में बने कफ सिरप को गाम्बिया में बच्चों की मौत से कथित तौर पर जोड़ा गया था। अब कंपनी अपने बंद पड़े संयंत्र को नियामक से अनुमति मिलने के बाद खोलने की संभावना तलाश रही है। भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने कहा कि मेडन के संयंत्र से लिए गए कफ सिरप के नमूनों में दूषित तत्व नहीं पाए गए।
हरियाणा एफडीए के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक मनमोहन तनेजा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वह पहले ही डीसीजीआई को पत्र लिख चुके हैं और सोनीपत संयंत्र का निरीक्षण करने के लिए केंद्रीय और राज्य अधिकारियों की संयुक्त समिति बनाने का आग्रह नियामक से कर चुके हैं।
तनेजा ने कहा, ‘हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने हमें इस मामले में डीसीजीआई को पत्र लिखने का निर्देश दिया था। हमने जीएमपी अनुपालन पर सवाल उठाए थे और मेडन फार्मा को नोटिस भेजा था। कंपनी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि उसने इस दिशा में कदम उठाए हैं।’ उन्होंने कहा कि अब यह सुनिश्चित करने के लिए निरीक्षण किए जाने की आवश्यकता है कि संयंत्र वास्तव में जीएमपी के अनुरूप है या नहीं।
डीसीजीआई ने हरियाणा के राज्य दवा नियंत्रक के साथ 12 अक्टूबर को उस समय मेडन के सोनीपत संयंत्र में उत्पादन बंद करने का आदेश दिया था, जब अफ्रीकी देश गाम्बिया में कथित तौर पर कंपनी के कफ सिरप लेने से बच्चों के मौत की खबर आई थी।
इन मौतों को कफ सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) के दूषित होने से जोड़ा गया था। रॉयटर्स ने मेडन फार्मा के नरेश कुमार गोयल के हवाले से खबर दी है कि वह अब प्राधिकरण से संयंत्र दोबारा खोलने का अनुरोध करेंगे। हालांकि उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं नहीं मालूम कि क्या होगा। हम अभी इंतजार कर रहे हैं।’
इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने संकेत दिया कि मेडन फार्मा को अपने संयंत्र खोलने की तत्काल अनुमति देने की योजना नहीं है। सरकार के जानकार एक सूत्र ने कहा, ‘केवल नमूने दूषित नहीं पाए गए हैं। संयंत्र को जीएमपी का अनुपालन नहीं करने की वजह से बंद किया गया था। दोनों अगल मामले हैं।’
हरियाणा के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने 12 अक्टूबर को मेडन फार्मा के इस संयंत्र में उत्पादन बंद करवा दिया था। राज्य एफडीए और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की संयुक्त जांच में सोनीपत संयंत्र में अच्छी विनिर्माण कार्यप्रणालियों में 12 उल्लंघन पाए गए थे।
इसके बाद 1 और 3 अक्टूबर को सोनीपत के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक अधिकारी राकेश दहिया और सीडीएससीओ जोनल कार्यालय (गाजियाबाद) के संदीप कुमार तथा देवेंद्र प्रताप सिंह की टीम ने मेडन फार्मा के संयंत्र की जांच की थी। जांच के दौरान अधिकारियों ने पाया था कि कफ सिरप में उपयोग होने वाले घटक प्रॉपलिन ग्लाइकॉल के इन्वॉयस पर बैच नंबर, एक्सपायरी और विनिर्माण की तिथि, विनिर्माता का नाम आदि नहीं था।
इस बीच कफ सिरप के दूषित नहीं होने का पता चलने पर डीसीजीआई ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के नियमन एवं पूर्व योग्यता निदेशक रोजेरियो गैस्पर को पत्र लिखकर कहा था कि मेडन फार्मा के संबंधित चार कफ सिरप को सरकारी प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था और उन्हें विनिर्देशों के अनुपालन वाला पाया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि डब्ल्यूएचओ को किसी कंपनी या देश का नाम जोड़ने के मामले में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। भारत के डीसीजीआई वीजी सोमानी ने डब्ल्यूएचओ को पत्र लिखकर कहा कि इस साल अक्टूबर में वैश्विक एजेंसी द्वारा जारी बयान ‘वैश्विक मीडिया द्वारा प्रसारित’ किया गया था, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में गलत धारणा बनी थी।
सोमानी ने 13 दिसंबर को सख्त लहजे में लिखे पत्र में कहा था, ‘डब्ल्यूएचओ और उसके सहयोगियों द्वारा जमीनी स्तर पर जांच किए बिना अनुमान लगाए जाने से दुनिया भर में भारत के फार्मा उत्पादों की साख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और फार्मा उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला के साथ-साथ राष्ट्रीय नियामक ढांचे की प्रतिष्ठा को भी अपूरणीय क्षति पहुंची है।’
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में माइक्रोबायोलॉजिस्ट और प्राध्यापक गनदीप कांग ने कहा, ‘निश्चित तौर पर कंपनियों और देशों का नाम लेने में सावधानी बरतना सही है लेकिन उत्पादक देशों की ओर से समय पर समीक्षा और जांच की भी सहमति होनी चाहिए।’
सार्वजनिक स्वास्थ और नीति विशेषज्ञ अनीश टीएस ने भी कहा, ‘यह सही नहीं है कि कोई बिना किसी साक्ष्य के इस तरह के झूठे आरोपों के लिए किसी देश या कंपनी को दोषी ठहराए।’ स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने अभी भारत के पत्र को कोई जवाब नहीं दिया है और न ही इस बारे में कोई सफाई दी है।
मेडन फार्मा के कफ सिरप को भारतीय नियामक द्वारा सही करार दिए जाने के बाद डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी जारी करने के अपने कदम को सही ठहराया है। बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा पूछे गए सवाल पर डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता ने कहा कि कई बच्चों की रहस्यमय बीमारी से मौत होने की त्रासदी में डब्ल्यूएचओ को तेजी से कार्रवाई करने की जरूरत थी।
अपने कदम को सही बताते हुए संगठन ने कहा कि घाना और स्विट्जरलैंड में एजेंसी की अनुबंधित प्रयोगशालाओं ने गाम्बिया के संदिग्ध कफ सिरप का परीक्षण किया और एथिलीन ग्लाइकॉल और डाईएथिलीन ग्लाइकॉल अधिक होने की पुष्टि की। ये दूषित सिरप खतरनाक हैं और किसी भी दवा में नहीं होने चाहिए। इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने उसके बारे में गाम्बिया और भारत को सूचित किया और संबंधित कंपनी को भी इसके बारे में बताया था।