बाजार नियामक सेबी ने अतिरिक्त आवेदन को बनाए रखने के विकल्प की इजाजत एलआईसी के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम को नहीं दी। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों ने कहा कि निवेश बैंकर ने 21,000 करोड़ रुपये (3.5 फीसदी विनिवेश) के इश्यू के मूल आकार की योजना सामने रखी और इसमें 9,000 करोड़ रुपये तक के अतिरिक्त आवेदन बनाए रखने का विकल्प भी रखा। मजबूत मांग की स्थिति में इससे सरकार को 30,000 करोड़ रुपये तक जुटाने का विकल्प मिलता।
हालांकि सेबी ने इससे संबंधित नियम न होने का हवाला देते हुए इसकी इजाजत नहीं दी। एक सूत्र ने कहा, इश्यू का आकार बढ़ाने की योजना को मंजूरी नहीं मिली क्योंंकि आईपीओ के मामले में इस तरह का प्रावधान नहीं है। इसकी अनुमति दिए जाने से एलआईसी गलत नजीर तय कर देती और अन्य कंपनियां भी इस तरह के विकल्प की मांग करती।
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी का नियमन ग्रीन शू ऑप्शन की इजाजत देता है, जो इश्यू का आकार बढ़ाने जैसा ही है, लेकिन थोड़ा अलग है।
सेबी के नियम के तहत आईपीओ के मामले में ग्रीन शू ऑप्शन का मतलब यह बनता है कि निर्गम में पेश शेयरों के मुकाबले ज्यादा शेयरों के आवंटन का विकल्प, जो सूचीबद्धता के बाद कीमत स्थिर रखने की व्यवस्था के तहत दिया जाता है। इस विकल्प का इस्तेमाल आईसीआईसीआई बैंक व टीसीएस जैसी फर्मों ने एक दशक से ज्यादा समय पहले किया था। कानूनी विशेषज्ञों ने कहा, हालांकि इस विकल्प के इस्तेमाल के लिए एक प्रक्रिया का पालन करना होता है। पहला, आईपीओ वाली कंपनी को डीआरएचपी में यह बताना होता है कि उसकी योजना ग्रीन शू ऑप्शन का इस्तेमाल करने की है, जैसा एलआईसी ने किया। साथ ही इस प्रक्रिया में कथित तौर पर स्टेबलाइजिंग एजेंट की नियुक्ति का मामला शामिल होता है, जो सामान्य तौर पर इन्वेस्टमेंट बैंक होता है और वह सूचीबद्धता के बाद शेयर कीमत में स्थिरता लाने के लिए द्वितीयक बाजार से शेयर खरीदने के लिए अधिकृत होता है।
ग्रीन शू ऑप्शन का इस्तेमाल ओएफएस या एनसीडी के सार्वजनिक निर्गम में होता है और यह आईपीओ से अलग होता है क्योंंकि इसमें ज्यादा आवेदन आने की स्थिति में इश्यू का आकार बढ़ाने की इजाजत मिलती है।
सेबी ने इश्यू का आकार बढ़ाने की इजाजत नहीं दी, पर उसने एलआईसी आईपीओ को अन्य तरह की रियायत दी है। इसमें कंपनी को सिर्फ 3.5 फीसदी शेयर बिक्री के साथ आईपीओ लाने की इजाजत देना शामिल है। सेबी के नियम के तहत 6 लाख करोड़ रुपये एमकैप वाली कंपनी को आईपीओ में कम से कम 5.8 फीसदी हिस्सेदारी बेचना अनिवार्य होता है। साथ ही सेबी ने एंकर निवेशकों के लिए 90 दिन की लॉक इन अवधि में छूट दी है। एलआईसी के मामले में एंकर निवेशकों की लॉक इन अवधि 30 दिनों की होगी। साथ ही एलआईसी को दोबारा डीआरएचपी जमा कराने को नहींं कहा गया।
फरवरी मेंं जब एलआईसी ने डीआरएचपी जमा कराया था तब सरकार का इरादा 316.25 मिलियन शेयर बेचने का था। अब यह संशोधित होकर 221.37 मिलियन शेयर रह गया है।
सेबी ने एलआईसी को भेजे संदेश में कहा है कि एक बार दी गई यह छूट राष्ट्रीय हित में दी गई है और इसे दृष्टांत के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए। सूत्रों ने यह जानकारी दी।