भारत के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने और कारोबारी सुगमता में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी सेवा उद्योग इस बार के केंद्रीय बजट (वित्त वर्ष 2025) से बेहतर कराधान माहौल की चाहत रखता है।
200 अरब डॉलर वाले तकनीक उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग निकाय नैशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विस कंपनीज (नैसकॉम) ने अपनी बजट सिफारिश में सेफ हार्बर प्रावधानों के तहत पात्रता सीमा को अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में मौजूदा 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर कम से कम 2,000 करोड़ रुपये तक करने लिए कहा है।
नैसकॉम के उपाध्यक्ष और पब्लिक पॉलिसी प्रमुख आशिष अग्रवाल ने कहा, ‘अभी वही कंपनियां सेफ हार्बर मार्जिन के लिए आवेदन कर सकती हैं जिनका सालाना अंतरराष्ट्रीय लेनदेन 200 करोड़ रुपये तक होता है।
इसकी वजह से कई संस्थाएं छूट गई हैं और इनमें केवल वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) ही नहीं हैं बल्कि सामान्य आईटी अथवा बीपीएम कंपनियां भी शामिल हैं, जहां अपतटीय केंद्र के बीच लेनदेन, जो विदेश में सहायक कंपनी हो सकती है, आसानी से 200 करोड़ रुपये की सीमा को पार कर सकती है। इसका मतलब हुआ कि हमारे उद्योग में से शायद ही किसी कंपनी को सेफ हार्बर में हिस्सा लेने का मौका मिले।’
इसके अलावा अन्य महत्त्वपूर्ण सिफारिश वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप लागू मार्जिन दरों को सेफ हार्बर के तहत लाना है। उद्योग निकाय ने आईटीईएस कंपनियों और नॉलेज प्रॉसेस आउटसोर्सिंग (केपीओ) के लिए 10 फीसदी और अनुबंध आरऐंडडी सहित आईटी सेवाओं के लिए 12 फीसदी करने के लिए कहा है।
अग्रवाल ने कहा, ‘किसी अन्य देश ने अपने स्थानांतरण मूल्य निर्धारण कानूनों के तहत खासकर आईटी-आईटीईएस के लिए सेफ हार्बर मार्जिन तय नहीं किया गया है। वैश्विक स्तर पर देश सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट अथवा आईटीईएस को नियमित सेवाओं के तहत वर्गीकृत करते हैं, जिनकी ऐसी सेवाओं पर कम मार्कअप (अमूमन करीब 5 फीसदी) होता है।
यहां तक की आरऐंडडी सेवाओं के लिए भी ज्यादा से ज्यादा 12 फीसदी ही मार्जिन लगाया जा रहा है। हमने अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, पोलैंड, फिलिपींस, मलेशिया, इजरायल सहित कई देशों को देखा है। इसलिए हमें भारत में मार्जिन दर श्रेणियों को आसान बनाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर के बराबर मार्जिन प्रदान करने की जरूरत है।’