जब वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से अधिकांश युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे समय में क्लीनिकल रिसर्च यानी नैदानिक अनुसंधान के क्षेत्र में रोजगार की अच्छी संभावनाएं नजर आ रही हैं।
नैदानिक अनुसंधान उस समय किसी ड्रग की विकास प्रक्रिया का एक बेहद अहम हिस्सा होता है, जब इसकी सुरक्षा और असर का पता लगाने के लिए इंसान पर इसका परीक्षण किया जाता है। इस उद्योग के अनुमानों के मुताबिक 2010 तक भारतीय उद्योग में नैदानिक अनुसंधान पेशेवरों की मांग 50,000 से अधिक हो जाने की संभावना है।
मौजूदा समय में 20,000 योग्य पेशेवरों की मांग है। मांग की तुलना में आपूर्ति काफी कम है। भारत के नैदानिक अनुसंधान संस्थानों से हर साल लगभग 800 छात्र स्नातक की डिग्री हासिल कर रहे हैं। तेजी से बढ़ रहे दवा, स्वास्थ्य और बायोमेडिकल उद्योगों में नैदानिक अनुसंधान पेशेवरों की आपूर्ति और मांग के बीच बड़ा अंतर है।
इंडियन क्लिनिकल रिसर्च इंस्टीटयूट (आईसीआरआई) के महानिदेशक एवं डीन एस. के. गुप्ता ने कहा, ‘पिछले तीन साल में नैदानिक अनुसंधान पेशेवरों के मानव संसाधन विकास में लगभग 300 फीसदी का इजाफा हुआ है। हमने देश में 3000 से अधिक नैदानिक अनुसंधान पेशेवर तैयार किए हैं जो भारत और विदेश में काम कर रहे हैं।’
आईसीआरआई क्लीनिकल रिसर्च, क्लीनिकल डाटा मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा, फार्माकोविगोलैंस, क्लीनिकल ट्रायल मैनेजमेंट और क्लीनिकल रिसर्च एवं क्वालिटी एश्योरेंस में एडवांस्ड पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा की पेशकश करता है।
अधिकारियों के मुताबिक फाइजर, रैनबैक्सी, क्विनटाइल्स, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरी, नोवार्तिस और आईगेट जैसी कंपनियां भर्ती के लिए यहां आईं और उन्होंने फ्रेशर्स के लिए 1.5-2 लाख रुपये के बीच सालाना वेतन पैकेज की पेशकश की। परिचालन प्रबंधक के तौर पर वेतन पैकेज लगभग 80 लाख रुपये है।
क्लीनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड मैनेजमेंट एकेडेमी (सीआरईएमए) भी इस क्षेत्र का प्रमुख संस्थान है। सीआरईएमए नैदानिक अनुसंधान, फार्माकोविगोलैंस और क्लीनिकल डाटा प्रबंधन में एक साल के अंशकालिक डिप्लोमा पाठयक्रमों की पेशकश करता है।
सीआरईएमए के चेयरमैन विजय मोजा कहते हैं, ‘क्लीनिकल रिसर्च मंदी के बावजूद बढ़ेगा। प्रशिक्षित नैदानिक अनुसंधान पेशेवरों की अधिक मांग के कारण इस पेशे में अच्छा वेतन है और विकास की असीम संभावनाएं मौजूद हैं।’
केपीएमजी इंडिया के कार्यकारी निदेशक हितेश गजारिया ने कहा, ‘हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि भारत का नैदानिक अनुसंधान बाजार मौजूदा मंदी से काफी हद तक अलग रहेगा। भारत में नैदानिक अनुसंधान पर आने वाली लागत पश्चिमी देशों में आने वाली लागत का लगभग 40-60 फीसदी है।’