आप चरक को नहीं जानते होंगे। दुबले-पतले शरीर और बिखरे बालों वाला यह इंसान आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में रहता है।
तीन साल पहले तक इसके पास काम के नाम पर कुछ नहीं था। लेकिन 2006 में एक दिन अचानक उसके पास प्लास्टिक की थैली में लिपटा हुआ एक जॉब कार्ड आया।
यह थी शुरुआत आंध्र प्रदेश ग्रामीण रोजगार गारंटी व्यवस्था की, जिसके लिए तकनीकी मदद दे रही थी देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस)। चरक के साथ-साथ उस दौरान राज्य भर के 13 जिलों के 18 हजार युवाओं को भी ऐसे ही जॉब कार्ड मिले थे। इसके साथ शुरू हो रहा था उनके लिए एक नया युग।
अब क्योंकि चरक को जॉब कार्ड मिल गया है इसलिए वह हर साल कम से कम 100 दिनों के लिए रोजगार गारंटी का हकदार होगा। उसका जॉब कार्ड यह सुनिश्चित करता है कि उसके लिए रोजगार की मांग करना और भुगतान प्राप्त करना दोनों ही बेहद आसान है। जॉब कार्ड के माध्यम से होने वाली अतिरिक्त कमाई का तात्पर्य है कि अब चरक खराब कृषि मौसम में भी अपनी पत्नी विनीता और बच्चों की आजीविका के लिए पर्याप्त कमाई कर सकता है।
आज से तीन साल पहले तक चरक माड़ वाली चावल, एक चुटकी नमक और मिर्च खा कर गुजारा किया करता था। लेकिन आज चरक का कहना है कि ‘जॉब कार्ड मिल जाने के बाद अब वह अपनी पत्नी और बच्चों के लिए ताजी सब्जियां और कभी-कभार मांसाहारी भोजन खिलाने में सक्षम है।’ जॉब कार्ड मिल जाने की वजह से अब चरक की पत्नी भी तनख्वाह लेने वाली मजदूर हो गई है।
विनीता को गांव में वाटरशेड विकास, जल निकायों की बहाली, वृक्षारोपण और उन क्षेत्रों में सड़क निर्माण जैसी पहल के साथ मदद करने के लिए हर हफ्ते भुगतान किया जाता है। चित्तूर ग्राम पंचायत के सदस्य घिजा ने बताया, ‘आवदेन प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर ही हर पंजीकृत व्यक्ति को काम मुहैया कराया जाता है।’
ऐसे तो ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम को देश के सभी राज्यों में लागू किया गया है लेकिन आंध्र प्रदेश में यह कार्यक्रम सबसे प्रभावी तरीके से कार्यान्वित किया गया है। ऐसा इसलिए भी संभव हो पाया है क्योंकि राज्य में इस कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए ई-प्रशासन के साथ गठजोड़ किया गया है। चरक और विनीता उन करोड़ों लोगों में से एक हैं जो कि देश भर में इस तरह के ई-प्रशासन कार्यक्रम से लाभान्वित हुए हैं।
अगर आप दिल्ली के भीखाजी कामा प्लेस स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के बाहर खड़ी भीड़ को देखें तो आपको सहज ही अंदाजा लग जाएगा कि पासपोर्ट बनवाने के लिए कितनी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है और कितने हफ्ते लगाने होते हैं। देश में पासपोर्ट की मांग तीव्र गति से बढ़ रही है।
हालांकि यह उम्मीद जताई जा रही है कि अगले साल से पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलेगा और लोगों को कई हफ्तों में नहीं बल्कि एक दिन में ही पासपोर्ट मिल जाया करेगा। वास्तव में, महत्त्वाकांक्षी 1000 करोड़ रुपये की निवेश वाली पासपोर्ट सेवा परियोजना से यह बदलाव आने की उम्मीद है। यह उम्मीद जताई जा रही है कि इस परियोजना के शुरू हो जाने के बाद (प्रोजेक्ट डायरेक्टर टी वी नागेंद्र प्रसाद के अनुसार) लोगों को पासपोर्ट संबंधी सभी सेवाएं सही समय, सुलभ पारदर्शी और विश्वसनीय ढंग से मुहैया कराई जाएगी।
साल 2006 के मध्य में यह विचार किया गया था कि पासपोर्ट जारी करने की प्रणाली में व्यापक सुधार लाने के लिए टीसीएस से गठजोड़ किया जाएगा। एक सेवा प्रदाता के रूप में टीसीएस का चयन प्रतियोगी बोली के तहत किया गया था। यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस परियोजना का पहला चरण जनवरी तक पूरा कर लिया जाएगा। इस साल जून महीने तक देश के तीन शहरों-चंडीगढ़, बेंगलुरु और नई दिल्ली में चार पायलट पासपोर्ट सेवा केंद्रों (पीएसके) की स्थापना की जाएगी।
हालांकि टीसीएस को पूरे भारत भर में 77 पीएसके शुरू करने की जरूरत है। टीसीएस के इंडस्ट्री साल्यूशन यूनिट के अध्यक्ष तन्मय चक्रवर्ती ने बताया, ‘परियोजना शुरू हो जाने के बाद लोगों के लिए पासपोर्ट महज तीन कार्य-दिवस में ही जारी कर दिया जाएगा।’ जहां तक पुलिसिया जांच का सवाल है तो उसे भी काफी तेजी से निपटाया जाएगा।
लिहाजा, इसके लिए जिला पुलिस मुख्यालय को पासपोर्ट सेवा पोर्टल के साथ जोड़ दिया जाएगा ताकि जांच में तेजी लाई जा सके। देश भर में पासपोर्ट प्रोसेसिंग को सुचारू रूप से चलाने के लिए ऑल इंडिया डाटा केंद्र, आपदा प्रबंधन केंद्र, सभी पासपोर्ट कार्यालयों से जुड़ी नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक फाइल सिस्टम की भी व्यवस्था की जाएगी। चक्रवर्ती ने बताया, ‘एक आईटी साझेदार के रूप में हम आवेदकों के लिए सुरक्षित डाटा केंद्रों, आपदा प्रबंधन केंद्रों और कॉल सेंटर की स्थापना करेंगे।’
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में टीसीएस तीन बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है। टीसीएस के अलावा बड़ी आईटी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। लेकिन अगर यह पूछा जाए कि तीनों आईटी कंपनियों में कौन सबसे ज्यादा बाहरी कॉर्पोरेट ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करती है, तो पहला नाम टीसीएस का ही आएगा। टीसीएस के पास सक्रिय ई-प्रशासन कार्यक्रम है जोकि विस्तृत क्षेत्र में कम लागत पर आईटी कंपनियों की क्षमताओं और सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करती है।
इसके अलावा यह कंपनी कई विभिन्न तरीकों से करोड़ों लोगों के जीवन को सुगम बनाती है।एक पल के लिए यह कहा जा सकता है कि ई-प्रशासन के इस्तेमाल में आंध्र प्रदेश सबसे अग्रणी राज्य है। लेकिन आने वाले कुछ सालों में इसमें और भी कई राज्यों के नाम शामिल होने वाले हैं। साल 2012 तक करीब 26 ई-प्रशासन मिशन मोड परियोजनाओं (एमएमपी) को पूरे देश भर में शुरू किया जाएगा।
इस परियोजना को सार्वजनिक-निजी साझेदार मॉडल पर संचालित किया जाएगा। भारत में एक सुस्त शुरूआत के बावजूद, ई-प्रशासन परियोजनाएं आज आईटी कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो रही हैं। नेशनल इंस्टीटयूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट के महाप्रबंधक (क्षमता विस्तार एवं ज्ञान प्रबंधन) पीयूष गुप्ता ने बताया, ‘गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र आदि की राज्य सरकारें अपनी राज्य और निगम विभागों को उन्नयन बनाने के लिए बड़ा निवेश कर रही हैं।’
इसी के मद्देनजर आईटी उद्योग को भी ढेरों अवसर मिल रहे हैं। सरकार के साथ काम करने की चुनौतियों के बावजूद टीसीएस आज एक अनूठी फायदेमंद स्थिति में है। गार्टनर (इंडिया) में अनुसंधान उपाध्यक्ष पार्थ अयंगर ने संकेत दिए हैं कि अगले दो से तीन वर्ष बाद आईटी हार्डवेयर क्षेत्र में होने वाले खर्च में कमी आएगी और विकास की राह में सॉफ्टवेयर बाजार अहम भूमिका निभा सकता है, जिसकी वजह से ई-प्रशासन परियोजनाओं को चलन में लाने के लिए लाइसेंसों और आतंरिक आवेदनों की जरूरत और रफ्तार पकड़ लेगी।
इस तरह का काम पहले भी किया जा चुका है तथा वैश्विक संकट के कारण टीसीएस मौजूदा समय में फायदेमंद स्थिति में है। अयंगर का कहना है, ‘आईबीएम, ह्यूलिट पैकर्डईडीएस और एक्सेंचर सरीखे दमदार अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले टीसीएस अपने दावे को लेकर अच्छी परिस्थिति में हो सकती है।’
आज चक्रवर्ती 1,800 लोगों के मजबूत दल का नेतृत्व कर रहे हैं और 32 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ वे सरकारी क्षेत्र में सबसे बड़े सेवा प्रदाता के रूप में अपनी दावेदारी बनाए हुए हैं। गार्टनर के मुताबिक इसके बाद उनकी सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी आईबीएम है, जिसकी बाजार हिस्सेदारी चक्रवर्ती से 6 फीसदी कम है। वर्ष 2007-08 में टीसीएस का कुल कारोबार 22,863 करोड़ रुपये का था और ई-प्रशासन से हासिल होने वाले 10 प्रतिशत कारोबार से कंपनी को 2,286 करोड़ रुपये की कमाई हो सकती है।
अयंगर का कहना है, ‘राज्य और केंद्र सरकारों के साथ हाथ मिलाकर कंपनी को कमाई का एक बड़ा हिस्सा यहां से मिल सकता है। साथ ही इससे कंपनी को भविष्य में होने वाले करार भी हासिल करने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने अपने ई-प्रशासन प्रयास के लिए टीसीएस के साथ एक संयुक्त दल बनाया है।’
काम की कहीं कोई कमी दिखाई नहीं दे रही। पिछले सितंबर माह में, गुजरात पुलिस ने टीसीएस को राज्य में 483 पुलिस स्टेशनों को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जोड़ने के लिए एक 18 करोड़ रुपये की परियोजना दी है। बिहार सरकार ने 6 ई-प्रशासन प्रयासों पर काम करने के विचार की घोषणा की है। इन परियोजनाओं के लिए सरकार का बजट 160 करोड़ रुपये है, जिसकी शुरुआत राज्य सरकार के दफ्तरों को कंप्यूटरीकृत करने से होगी।
बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि इनमें एक विस्तृत राजकोष प्रबंधन सूचना प्रणाली, एक मूल्य वर्धित कर प्रबंधन सूचना प्रणाली, एक नागरिक-केंद्रीय पोर्टल (बिहार ऑनलाइन), एकीकृत कार्यप्रवाह और दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली और बिहार स्वैन (स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क) शामिल है। राज्य सरकार ने स्वैन परियोजना पर 125 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और सरकार ने पहले ही 19 करोड़ रुपये खर्च कर डाटा केंद्र स्थापित किया है।
पटना में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हरि शिव पांडे नागरिक पोर्टल के आने के बाद होने वाले बदलावों को लेकर खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है, ‘बिहार ऑनलाइन पोर्टल ने जन्म, मृत्यु और जाति प्रमाणपत्रों को हासिल करने में लगने वाले वक्त को कम कर 4 से 5 दिन कर दिया है। पहले इसमें 3 से 5 सप्ताह का समय लगता था। इस दौरान विभागों के चक्कर काटने में लोगों को खासी परेशानी होती होगी।’
ई-प्रशासन सेगमेंट में टीसीएस पहले अग्रणी कंपनी थी। टीसीएस को ही देखते हुए दूसरी कंपनियों को भी उनकी रणनीतियों पर दोबारा विचार करने के लिए प्रेरणा मिली। इन्फोसिस ने भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए एक विशेष विभाग स्थापित किया और एचपी से अलग हुई तकनीकी सेवा कंपनी ईडीएस भारतीय बाजार पर पकड़ मजबूत करने के लिए मूल कंपनी की मदद कर सकती है। दूसरे बाजारों में मंदी के चलते कंपनियां सरकार से कारोबार हासिल करना चाहती हैं।
टीसीएस के प्रमुख एस. रामादुरई का कहना है, ‘इसमें भारत में वापसी भी शामिल है, जिसे अभी तक भारतीय आउटसोर्सिंग कंपनियां ठोकर मार रही थीं।’ उनका कहना है कि उनकी कंपनी तीन क्षेत्रों- इंट्रा-गवर्नमेंट एफिशियेंसी, सिटीजन सर्विस इन्ट्राफेस और राजकोष प्रबंधन राजस्व वृध्दि में ई-प्रशासन की परियोजनाओं पर ध्यान दे रही है। कंपनी के पास विदेशी सरकारों से मिली लगभग 60 परियोजनाएं हैं और आज कंपनी सरकारी क्षेत्र के लिए एशिया-प्रशांत बाजार में शीर्ष 10 सेवा प्रदाताओं में से एक है।
टीसीएस की योजना पूर्वी यूरोप, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में उपग्रह विकास केंद्र स्थापित करने की है। इस तरह के कारोबार से वर्ष 2010 तक कंपनी के मुनाफे में 10 से 12 फीसदी का योगदान मिलने की उम्मीद है। एशिया-प्रशांत में सबसे पहले कंपनी ने अपने पहले कदम ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और कुछ सार्क देशों में रखे थे। रामादुरई का कहना है, ‘बिक्री में जो इजाफा हुआ है वह सरकार की वजह से है तकनीक की वजह से नहीं।’
अपने देश की तरफ उम्मीद भरी नजरें डालते हुए कुछ और आईटी कंपनियां भी मंदी के दौर में ई-प्रशासन को अच्छे दौर की चाबी मान रही हैं। कंपनी के बहीखाते में दिल्ली से कोच्चि और महाराष्ट्र से झारखंड तक कई परियोजनाएं अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। अब अपनी जिंदगी में इनके शामिल होने का इंतजार कीजिए।
कुछ और ई-प्रशासन परियोजनाएं
झारखंड सूचना प्रौद्योगिकी संवर्धन एजेंसी ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के साथ मिलकर रांची में ई-नागरिक सेवा को लॉन्च किया है। इस प्रणाली के तहत लोग जन्म, मृत्यु, आवासीय और आय प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने के दो-तीन दिनों के भीतर ही संबंधित व्यक्ति को प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाएगा।
हालांकि शुरुआती तौर पर 4 मार्च को करीब 106 केंद्रों का परिचालन शुरू किया जाएगा। इसके साथ ही सरकार की योजना है कि आने वाले दिनों में जल्द ही शहर के करीब 55 वार्डों में 300 ई-केंद्र शुरू किए जाएंगे। भारत के महा औषध नियंत्रक ने घोषणा की है कि नई दवा को मंजूरी के लिए एकल खिड़की सुविधाओं को अपनाया जाएगा।
बिहार में ई-शक्ति परियोजना को लॉन्च किया गया है। इस परियोजना के तहत पंजीकृत कामगारों के लिए एक संपर्कविहीन स्मार्ट-कार्ड की पेशकश की जाएगी। इसके तहत कामगारों को मजदूरी भुगतान, पहचान और अन्य सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी।
इस परियोजना के कार्यान्वयन और प्रबंधन के लिए राज्य सरकार ने गोल्डाइन टेक्नोसर्व की सहायक कंपनी स्मार्फटेक टेक्नोलॉजी के साथ गठजोड़ किया है। गोवा सरकार राज्य भर में ‘साइबर ट्रेजरी’ लॉन्च कर रही है। इस परियोजना के तहत उद्यमी वैट सहित वाणिज्यिक करों को ऑनलाइन जमा करवा सकते हैं।
युगांडा के लिए कर प्रणाली
एकीकृत कर प्रशासन प्रणाली की डिजाइन और स्थापना करने के लिए युगांडा राजस्व प्राधिकरण ने भारत की बड़ी आईटी कंपनियों में से एक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के साथ गठजोड़ किया है।
गुजरात
गुजरात सूचना लिमिटेड ने टीसीएस के साथ मिलकर कार्यालय प्रबंध प्रणाली का निर्माण किया है। इसके तहत सरकारी विभागों के लिए अंतर-विभागीय इंटरफेस, सुरक्षा प्रणाली का विकास, दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली और डाटाबेस प्रणाली आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। यह प्रणाली करीब 2500 कर्मचारियों के बीच सूचनाओं और दस्तावेजों के अदान-प्रदान पर निगरानी करेगी।
बिहार पंचायत
गांव वालों को बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने वसुधा केंद्र नामक एक पंचायत पोर्टल की स्थापना की है। इस पोर्टल के जरिए ग्रामीणों को बहुत ही सहजता से सरकार और सरकारी नीतियों के बारे में जानकारी मुहैया कराई जाएगी।