भारत का 200 अरब डॉलर का टेक्सटाइल और अपैरल उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है, क्योंकि अमेरिका, यूरोप व अन्य बड़े बाजारों में लोगों ने महंगाई बढ़ने के कारण कपड़े पर खर्च में कटौती कर दी है। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ी महंगाई के कारण स्थिति बदली है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से मजबूत है और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन अच्छा है, वहीं कपड़ा उद्योग अपवाद बनकर उभरा है।
मिल रहे ऑर्डरों से पता चलता है कि 2023 में भी गिरावट जारी रहेगी। इससे इस उद्योग में छंटनी का जोखिम बढ़ा है, जहां 4.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कुल निर्यात में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है। इसमें लगातार 5 महीने गिरावट आई है और नवंबर में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में निर्यात 15 प्रतिशत गिरकर 3.1 अरब डॉलर हो गया है।कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में मजबूत बढ़ोतरी के बावजूद घरेलू बाजार में बिक्री सुस्त है।
विनिर्माताओं का कहना है कि सस्ते आयातित परिधान और लागत में बढ़ोतरी के कारण ऐसा हुआ है। इस साल की शुरुआत में भारी बिक्री के बाद अब स्थानीय टेक्सटाइल फैक्टरियां उत्पादन में कटौती कर रही हैं और जुलाई-सितंबर के दौरान उत्पादन में 4.3 प्रतिशत की कमी आई है। इससे नीति निर्माताओं की चिंता बढ़ गई है। यह झटका ऐसे समय लग रहा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लाखों युवाओं के लिए रोजगार सृजन करने के लिए जूझ रही है।
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अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन नरेन गोयनका ने कहा, ‘हम कम से कम अगले 6 माह कठिन दौर देख सकते हैं क्योंकि यूरोपियन यूनियन और अमेरिका सहित बड़े बाजारों से मांग उल्लेखनीय रूप से कम हुई है।’ उन्होंने कहा कि महंगाई और वैश्विक व्यवधान घरेलू बाजार पर भी असर डाल रहा है। संकट को देखते हुए उद्योग ने कपास के शुल्क मुक्त आयात की मांग की है। साथ ही बैंक ऋण पर ब्याज सब्सिडी और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना में विस्तार की मांग की गई है, जिससे संकट से निपटा जा सके। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि सरकार जल्द ही इस मांग पर विचार कर सकती है और इस सिलसिले में फरवरी के बजट में घोषणा हो सकती है। अधिकारी ने नाम छापे जाने से मना किया क्योंकि वह मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत नहीं हैं।