भारत में तेल की मांग 2040 के दशक के मध्य तक अपने चरम पर पहुंचेगी और फिर स्थिर हो जाएगी। बीपी के मुख्य अर्थशास्त्री स्पेंसर डेल ने बुधवार को यह जानकारी दी। वहीं, वैश्विक स्तर पर तेल की मांग 2035 तक स्थिर रहेगी, इसके बाद चीन की मांग में कमी के चलते इसमें गिरावट आने की उम्मीद है।
डेल ने पत्रकारों से कहा, “वर्तमान रुझान के अनुसार, 2035 में वैश्विक तेल की मांग आज के स्तर के बराबर होगी। अगले 10 सालों तक तेल की मांग स्थिर बनी रहेगी।” ये निष्कर्ष बीपी एनर्जी आउटलुक 2024 रिपोर्ट का हिस्सा हैं।
उभरते देशों में तेल की मांग
डेल ने यह भी बताया कि उभरते देशों, खासकर भारत में, तेल की मांग में तेजी देखी जा रही है। दूसरी ओर, विकसित क्षेत्रों जैसे OECD देशों में पिछले 15-20 सालों से तेल की मांग में गिरावट दर्ज की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन में इस दशक के अंत तक तेल की मांग में गिरावट आने की संभावना है।
IEA का अनुमान और बीपी की रिपोर्ट
जून में, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने भविष्यवाणी की कि कच्चे तेल की आपूर्ति में वृद्धि होगी, जिससे 2030 तक बाजार में अधिशेष बन सकता है। बीपी की रिपोर्ट में बताया गया है कि सड़क परिवहन क्षेत्र में तेल की मांग में सबसे अधिक गिरावट हो सकती है। यह गिरावट वाहनों की एफिसिएंसी में सुधार और इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती बिक्री के कारण होगी।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का विकास
डेल ने कहा कि भारत में इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहनों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन अब नेचुरल गैस से चलने वाले वाहनों को लेकर भी चर्चा हो रही है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि लोग पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों को छोड़कर नेचुरल गैस या इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाएंगे।
गैर-ओपेक देशों की सप्लाई
डेल ने यह भी बताया कि तेल की कीमतें और उत्पादन किस दिशा में जाएंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ओपेक के अलावा अन्य देश कितना तेल निकालते हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका, ब्राजील और गुयाना जैसे देश तेजी से तेल उत्पादन बढ़ा रहे हैं, जिससे ओपेक देशों के लिए अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने की जरूरत कम हो सकती है।
ओपेक और ओपेक-प्लस का प्रभाव
ओपेक एक ऐसा समूह है जिसमें प्रमुख तेल उत्पादक देश शामिल हैं, जैसे सऊदी अरब, ईरान, इराक और वेनेजुएला। ये देश मिलकर तेल की कीमतों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। 2023 तक, वैश्विक तेल उत्पादन का 37 प्रतिशत और दुनिया के कुल तेल भंडारों का 79.1 प्रतिशत ओपेक सदस्य देशों से आता है।
जून में, ओपेक-प्लस देशों ने अपने उत्पादन में स्वैच्छिक कटौती को बढ़ाने का निर्णय लिया। यह समूह वैश्विक तेल मांग का 5.7 प्रतिशत या 5.86 मिलियन बीपीडी (प्रति दिन बैरल) उत्पादन में कटौती करेगा, जिसमें 2025 के अंत तक एक साल के लिए 3.66 मिलियन बीपीडी की प्रमुख उत्पादन कटौती शामिल है। सऊदी अरब और रूस सहित 8 देशों ने भी सितंबर तक 2.2 मिलियन बीपीडी की उत्पादन कटौती को बढ़ाने का निर्णय लिया है।