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Milk prices: सप्लाई दुरुस्त होने के बावजूद दूध के दाम बढ़ रहे हैं, पर क्यों?

मदर डेरी और अमूल ने दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की

Last Updated- July 02, 2024 | 7:35 PM IST
India leads global milk production, dairy sector crosses ₹12 trillion market value

पिछले महीने, भारत के दो प्रमुख दूध ब्रांड, मदर डेरी और अमूल, ने अपने दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। यह वृद्धि 2024 के आम चुनावों के समाप्त होने के बाद हुई है और पिछले 15 महीनों में यह पहली बार है जब दूध की कीमतों में वृद्धि की गई है। कुछ दिनों बाद, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन, जो नंदिनी ब्रांड के नाम से दूध बेचती है, ने भी 2 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की घोषणा की।

हालांकि, प्राइवेट दूध कंपनियों ने पहले ही अपनी कीमतें बढ़ा दी थीं, लेकिन सहकारी संस्थाएं और राज्य समर्थित उद्यम स्थिर कीमतें बनाए रखने में सफल रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण भारत की कुछ डेयरियों ने अपने रिटेल दाम कम कर दिए हैं।

महाराष्ट्र में दूध उत्पादकों का विरोध

महाराष्ट्र में, दूध उत्पादकों ने विरोध प्रदर्शन किया और सब्सिडी की मांग की क्योंकि खरीद दर पिछले साल 30-32 रुपये प्रति लीटर से घटकर लगभग 28 रुपये प्रति लीटर हो गई थी। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, राज्य सरकार ने दूध उत्पादकों को 5 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी देने का ऐलान किया है। महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजित पवार के अनुसार, लगभग 300,000 किसानों को 224 करोड़ रुपये का वितरण किया गया है और शेष राशि जल्द ही कवर की जाएगी।

केंद्र सरकार का दखल

इस बीच, केंद्र सरकार ने भविष्य में कीमतों को स्थिर करने के लिए राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड द्वारा प्रबंधित टैरिफ-कोटा सिस्टम के तहत 10,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) के आयात की अनुमति दी है। पिछली बार अमूल और मदर डेरी ने फरवरी 2023 में दूध की कीमतें बढ़ाई थीं। उससे पहले, मदर डेरी ने मार्च और दिसंबर 2022 के बीच प्रति लीटर 10 रुपये की वृद्धि की थी, जबकि अमूल ने 2022 में तीन बार कीमतें बढ़ाई थीं।

दूध की सप्लाई और उत्पादन

दूध की कीमतों में यह हालिया बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है जब भारत में दूध की सप्लाई में कोई कमी नहीं है। पहले कोविड के कारण दूध उत्पादन कम हो गया था और चारे की कीमतें भी बढ़ी थीं। मार्च 2024 में समाप्त हुआ दूध उत्पादन का सीजन हाल के समय में सबसे अच्छा रहा है। अनुमान है कि भारत ने 2022-23 में लगभग 231 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया, जो पिछले वर्ष 221 मिलियन टन से अधिक है। 2023-24 के उत्पादन का अनुमान लगभग 241-242 मिलियन टन है, जो 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को दर्शाता है। पशुओं के चारे की कीमतें, जो उत्पादन लागत का मुख्य हिस्सा हैं, अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई हैं।

बाजार और उत्पादन लागत

विशेषज्ञ बताते हैं कि दूध की कीमतों में विभिन्न कंपनियों के बीच फर्क बाजार की चाल और कंपनियों के हिसाब से दूध उत्पादन की लागत के कारण है। डेयरियां या तो सीधे दूध बेचती हैं, या फिर घी, मक्खन जैसे दूध से बनने वाले उत्पादों का निर्माण करती हैं, या फिर बचे हुए दूध को भविष्य में बेचने के लिए स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) बना लेती हैं।

उत्तर भारत की डेयरियों के पास ज्यादा SMP का स्टॉक है, इसलिए वे दूध की कीमतें बढ़ाकर SMP बनाने में हुए घाटे की भरपाई कर रही हैं। वहीं, दक्षिण भारत की डेयरियां ज्यादा दूध को SMP बनाने से बचने के लिए दूध की कीमतें कम कर रही हैं।

महाराष्ट्र में, जहां डेयरियां ताजे दूध की बजाय SMP और अन्य उत्पादों पर ज्यादा ध्यान देती हैं, वहां राज्य सरकार सब्सिडी देकर दूध खरीदने की कीमत को सही स्तर पर बनाए रखने में मदद कर रही है। गौर करने वाली बात यह है कि एक किलो स्किम्ड मिल्क पाउडर बनाने के लिए लगभग 10 लीटर दूध की जरूरत होती है।

पिछले साल स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) की कीमत करीब 300 रुपये प्रति किलो थी, जो अब घटकर 210 रुपये प्रति किलो के आसपास हो गई है। जिन कंपनियों ने ज्यादा दाम (260-270 रुपये प्रति किलो) पर SMP बनाया था, उन्हें अब घाटा हो रहा है, जिसकी वजह से दूध खरीदने की कीमतें भी कम हो गई हैं।

अंदाजा लगाया जाता है कि इस वक्त भारत में करीब 200,000 टन SMP का स्टॉक है, जबकि आदर्श स्थिति में जून के अंत तक ये स्टॉक 80,000-90,000 टन के आसपास होना चाहिए। ज्यादा स्टॉक होने और निर्यात का कोई रास्ता न होने की वजह से दूध खरीदने की कीमतें कम हो रही हैं।

पराग मिल्क फूड्स के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर राहुल कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, “भारत में फिलहाल ज्यादा SMP का स्टॉक जमा हो गया है, जिसकी वजह से डेयरियों के पास पैसा नहीं है क्योंकि उन्होंने पहले ज्यादा दाम पर SMP बनाया था।” उन्होंने यह भी बताया कि इतना ज्यादा स्टॉक होने की वजह से कंपनियों को दूध खरीदने की कीमतें कम करनी पड़ रही हैं और साथ ही पैकेट वाले दूध की कीमतें भी बढ़ानी पड़ रही हैं ताकि भविष्य में होने वाले घाटे की भरपाई हो सके।

कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि इतना ज्यादा स्टॉक और मानसून के अच्छे रहने की संभावना से दूध उत्पादन बढ़ने से किसानों को मिलने वाली कीमतों में और कमी आ सकती है, जो उनके लिए नुकसानदेह होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार SMP के निर्यात पर सब्सिडी देकर स्टॉक कम करने में मदद करे ताकि किसानों को सही दाम मिल सके।

मानसून का असर

डेरी उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर बारिश ज्यादा तेज न हो तो जल्दी मानसून आने से दूध की सप्लाई बढ़ सकती है। दक्षिण भारत की एक प्राइवेट डेरी कंपनी गोदरेज जर्सी के सीईओ भूपेंद्र सूरी, जो क्रीमलाइन डेरी प्रोडक्ट्स बनाती है, का कहना है कि “बहुत ज्यादा बारिश दूध उत्पादन को नुकसान पहुंचा सकती है, वहीं हल्की फुहारें दूध उत्पादन के लिए अच्छी होती हैं।”

उन्होंने बताया कि मानसून के दौरान डेरी के जानवरों को वायरस, बैक्टीरिया और इंफेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है, जिससे उनकी चारे खाने की मात्रा कम हो जाती है। बारिश में चरने के लिए भी कम जगह बचती है और किसानों का ध्यान खेती की तरफ चला जाता है, जिस वजह से जानवरों की देखभाल में कमी रह जाती है।

सूरी का कहना है कि बारिश से पहले जानवरों का टीकाकरण, खासकर खुरपका और मुंहपका जैसी बीमारियों के लिए, और उनकी डीवॉर्मिंग बहुत जरूरी है।

दीर्घकालिक समाधान

विशेषज्ञ लंबे समय के समाधान के तौर पर भारत में सालाना दूध उत्पादन की दर को बढ़ाने की सलाह देते हैं जो हाल के दिनों में स्थिर हो गई है। पहले दूध उत्पादन के आंकड़े बताते थे कि साल 2028 तक भारत हर साल 7-8% की बढ़त के साथ 300 मिलियन टन दूध का उत्पादन करेगा। लेकिन हाल के दिनों में दूध उत्पादन की रफ्तार कम होकर 4-5% रह गई है। इसका कारण चारे की बढ़ती कीमतें और दूध निर्यात का रुक जाना है। ज्यादा दूध होने की वजह से दूध की कीमतें भी इधर-उधर हो रही हैं, जिससे किसानों की कमाई और मवेशियों पर होने वाला खर्च कम हो रहा है, नतीजतन दूध का उत्पादन और कम हो जाता है।

दुनियाभर में स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) की कीमतें अभी करीब 231 रुपये प्रति किलो हैं, जो भारत की कई डेयरियों की उत्पादन लागत (260-270 रुपये प्रति किलो) से भी कम हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय दूध कम प्रतिस्पर्धी हो जाता है।

लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में दूध की मांग कम हो जाएगी। आय बढ़ने और प्रति व्यक्ति दूध की खपत बढ़ने के साथ, नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर चीजें “आम तौर पर चलती रहीं” (अर्थव्यवस्था की 6.34% की मौजूदा विकास दर भविष्य में भी बनी रहती है) तो 2047-48 तक भारत में दूध की मांग 480 मिलियन टन के आसपास होगी। अगर ज्यादा दूध उत्पादन होता है, तो मांग 527-606 मिलियन टन तक पहुंच सकती है।

उपभोक्ताओं पर प्रभाव

पिछले एक साल से खाने के सामानों की ऊंची कीमतों का बोझ झेल रहे उपभोक्ताओं के लिए अब दूध की बढ़ती कीमतें भी एक और परेशानी बन गई हैं।

First Published - July 2, 2024 | 3:53 PM IST

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