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क्या भारत का निर्माण बाजार चीन के कब्जे में जा रहा है? एसीई की बड़ी चेतावनी

एसीई के कार्यकारी निदेशक ने कहा कि चीन की सब्सिडी, सस्ते कच्चे माल और आसान ऋण सुविधाओं से भारतीय बाजार में क्रॉलर एक्सकेवेटर और टावर क्रेन के आयात तेजी से बढ़ रहे हैं

Last Updated- December 01, 2025 | 8:59 AM IST
ACE's Sorab Agarwal

ऐक्शन कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट (एसीई) के कार्यकारी निदेशक सोराब अग्रवाल ने कहा कि भारत सरकार को क्रॉलर एक्सकेवेटर और टावर क्रेन जैसे दो निर्माण उपकरण खंडों के आयात पर सुरक्षा या डंपिंग-रोधी शुल्क लगाने पर तत्काल विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि चीनी कंपनियां कम कच्चे माल की लागत, पर्याप्त निर्यात सब्सिडी और विस्तारित ऋण योजनाओं से मूल्य निर्धारण के जरिये भारत के इस बाजार में तेजी से अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं।

बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘करीब 5-6 साल पहले भारत के क्रॉलर एक्सकेवेटर खंड में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी लगभग शून्य थी। आज यह 20 से 25 फीसदी हो गई है। यदि सुरक्षा या डंपिंग-रोधी शुल्क नहीं लगाए जाते हैं, तो अगले चार-पांच वर्षों में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 40 से 50 फीसदी तक हो जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, 4-5 साल पहले टावर क्रेन खंड में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी सिर्फ 5 से 10 फीसदी ही थी। आज, उनकी हिस्सेदारी 20 से 25 फीसदी हो गई है।’

अग्रवाल ने कहा कि इन क्षेत्रों में उनके हिस्सेदारी में इतनी बड़ी वृद्धि के कई कारण है। उन्होंने बताया, ‘उनके कच्चे माल की कीमतें हमसे 15 से 20 फीसदी कम हैं। चीन की सरकार 14 से 17 फीसदी की निर्यात सब्सिडी भी देती है। कुल मिलाकर, इससे उन्हें 29 से 37 फीसदी का सीधा लागत लाभ होता है। इसके अलावा, वे अंतिम खरीदारों को आस्थगित भुगतान योजनाएं और दीर्घकालिक ऋण प्रदान करते हैं, जिससे उनकी कीमतें 10 से 20 फीसदी तक आकर्षक हो जाती हैं।’ अग्रवाल के अनुसार, भारत में क्रॉलर एक्सकेवेटर और टावर क्रेन का सालाना बाजा 18,000 से 20,000 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है।

First Published - December 1, 2025 | 8:59 AM IST

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