प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारत के दस बड़े ट्रेड यूनियनों ने शुक्रवार को केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए चार नए लेबर कोड को “मजदूरों के साथ धोखा” बताया है। इन यूनियनों ने इन्हें तुरंत वापस लेने की मांग की है और आने वाले बुधवार को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। ये यूनियन ज्यादातर विपक्षी पार्टियों से जुड़ी हुई हैं और पिछले पांच साल से इन कानूनों का लगातार विरोध कर रही हैं।
ये चारों लेबर कोड पांच साल पहले संसद से पास हो चुकी थीं। सरकार का कहना है कि इनसे पुराने ब्रिटिश काल के जटिल कानूनों को आसान बनाया गया है और निवेश के लिए माहौल बेहतर होगा। साथ ही मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा और न्यूनतम वेतन का फायदा भी मिलेगा। लेकिन यूनियनों का कहना है कि इन कानूनों से कंपनियों को कर्मचारियों को आसानी से निकालने की छूट मिल गई है, जो मजदूरों के हक पर डाका है।
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इन बदलावों से कारोबारी जगत काफी खुश था क्योंकि वो लंबे समय से कहते आए हैं कि पुराने कानून मैन्युफैक्चरिंग को पीछे रखते हैं। देश की करीब 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा अभी 20 फीसदी से भी कम है।
लेकिन सब एक मत नहीं हैं। छोटे-मंझोले उद्यमियों का संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंटरप्रेन्योर्स’ ने भी चिंता जताई है कि नए नियमों से उनका खर्च बहुत बढ़ जाएगा और कई सेक्टर में कारोबार में रुकावट आएगी। उन्होंने सरकार से बदलाव के लिए ट्रांजिशन सपोर्ट और लचीला अमल मांगा है।
दक्षिणपंथी भारतीय मजदूर संघ (BMS) इन कानूनों का समर्थन कर रहा है। उसने राज्यों से कहा है कि कुछ मुद्दों पर बातचीत के बाद इन्हें जल्द लागू कर देना चाहिए।
श्रम मंत्रालय ने जून 2024 से अब तक यूनियनों से दर्जन भर से ज्यादा मीटिंग की हैं, लेकिन बात बनती नहीं दिख रही। मंत्रालय ने शनिवार को रॉयटर्स के सवालों का अभी कोई जवाब नहीं दिया है।
अब सारे राज्य अपने-अपने हिसाब से इन चार कोड — वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा — के हिसाब से नियम बनाएंगे।