जब कोई व्यक्ति AI पर सवाल टाइप करता है और एंटर दबाता है, तो वह सवाल एक बहुत बड़े डेटा सेंटर तक पहुंचता है। ये डेटा सेंटर फुटबॉल के मैदान जितने बड़े होते हैं। यहां हजारों ताकतवर कंप्यूटर चिप्स लगी होती हैं, जो कुछ ही सेकंड में जवाब तैयार करती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में बिजली और पानी की खपत होती है।
OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन के अनुसार, ChatGPT पर एक साधारण सवाल पूछने में बहुत कम बिजली और पानी लगता है। यह खर्च लगभग एक सेकंड के माइक्रोवेव जितना होता है और पानी की मात्रा एक छोटी बूंद से भी कम होती है। लेकिन जब यही काम रोज अरबों बार होता है, तो कुल खपत बहुत ज्यादा हो जाती है और यह किसी शहर जितनी बिजली और पानी के बराबर हो सकती है।
भारत ChatGPT इस्तेमाल करने वाले देशों में दूसरे नंबर पर है। यहां AI का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेजन जैसी बड़ी टेक कंपनियां भारत में अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं। इससे रोजगार और तकनीक को फायदा मिलेगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत के पास इतनी बिजली और पानी उपलब्ध है।
पहले डेटा सेंटर ईमेल, बैंकिंग और ऑनलाइन सेवाओं के लिए बनाए जाते थे। अब नए डेटा सेंटर खास तौर पर AI के लिए बनाए जा रहे हैं। इनमें बहुत ताकतवर GPU चिप्स लगती हैं, जो ज्यादा बिजली खर्च करती हैं और बहुत गर्मी पैदा करती हैं। भारत में फिलहाल डेटा सेंटरों की बिजली क्षमता करीब 1.5 गीगावॉट है, जो 2030 तक बढ़कर लगभग 9 गीगावॉट हो सकती है।
माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में 17.5 अरब डॉलर निवेश करने की घोषणा की है और हैदराबाद में बड़ा डेटा सेंटर बना रहा है। गूगल भी भारत में 15 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है, जिसमें आंध्र प्रदेश का AI डेटा सेंटर शामिल है। इसके अलावा कई बड़ी निवेश कंपनियां भी भारत में डेटा सेंटर प्रोजेक्ट्स पर पैसा लगा रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े डेटा सेंटरों से बिजली की मांग तेजी से बढ़ेगी। भारत में गर्मियों के दौरान पहले ही बिजली की कमी देखी जाती है। अगर बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन समय पर नहीं बढ़ा, तो भविष्य में बिजली कटौती की समस्या बढ़ सकती है। अभी भारत की आधी बिजली कोयले से बनती है, जिससे प्रदूषण भी बढ़ता है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस चुनौती से निपट सकता है। देश में सोलर और पवन ऊर्जा की क्षमता तेजी से बढ़ रही है और कई राज्य इस क्षेत्र में आगे हैं। अगर डेटा सेंटर साफ ऊर्जा से चलें, तो बिजली की समस्या कम हो सकती है और प्रदूषण भी घटेगा।
डेटा सेंटरों को ठंडा रखने के लिए बहुत पानी की जरूरत होती है। एक बड़ा डेटा सेंटर रोज लाखों लीटर पानी खर्च कर सकता है। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में डेटा सेंटरों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला पानी तेजी से बढ़ेगा। अगर ये सेंटर पानी की कमी वाले इलाकों में बने, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कम पानी खर्च करने वाली कूलिंग तकनीक, रीसाइकल पानी का इस्तेमाल और बेहतर योजना से इस समस्या को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही AI खुद ऐसी तकनीक विकसित करने में मदद कर सकता है, जो कम बिजली और पानी में काम करे।
AI भारत के लिए एक बड़ा मौका है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है। अगर डेटा सेंटर समझदारी से बनाए जाएं और साफ ऊर्जा का इस्तेमाल हो, तो भारत AI के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकता है।