दुनिया के इस जूता विनिर्माता ने अपना सबसे बड़ा और सबसे भरोसेमंद बाजार नए प्रतिनिधि के लिए खोल दिया है। अक्टूबर के मध्य में जब एलेक्सिस नसर्ड ने लॉसेन स्थित मुख्यालय वाले बाटा शू ऑर्गनाइजेशन का बतौर मुख्य कार्याधिकारी पद छोड़ा था, तो इसके प्रतिस्थापन की पहचान करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लग गया। बाटा इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी संदीप कटारिया अब इस बहुराष्ट्रीय कंपनी के वैश्विक प्रमुख के रूप में उन 70 से ज्यादा बाजारों के लिए रणनीति तैयार करते हुए इसका मार्गदर्शन करेंगे जिनमें यह जूता विनिर्माता परिचालन करती है।
कटारिया को जानने वाले वी-मार्ट रिटेल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक ललित अग्रवाल ने कहा कि यह भारतीय खुदरा बाजार के लिए एक शानदार क्षण है। बैंकिंग, प्रौद्योगिकी और दैनिक उपभोग वाली वस्तुओं के क्षेत्र से ऐसे कई भारतीय अधिकारी रहे हैं जो संबंधित कंपनियों में वैश्विक पदों पर पहुंचे हैं। एक भारतीय कारोबारी अधिकारी को अपनी कंपनी में सीढ़ी के सबसे ऊपर पहुंचते हुए देखना अच्छा है।
अग्रवाल ने कहा कि मैंने पाया है कि संदीप तेज हैं और वह जानते हैं कि कारोबार की जटिल समस्याओं में कैसे मार्गदर्शन करना है। इसमें डिजिटल तकनीक को अपनाने, कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों का जवाब देने और युवाओं के लिए प्रासंगिक बने रहने का प्रयास करने जैसे विभिन्न विषय शामिल हैं। उनके साथ अपनी मुलाकातों के दौरान मैंने इनमें से कुछ सीख ली है।
साथियों का कहना है कि आईआईटी-एक्सएलआरआई के पूर्व छात्र 49 वर्षीय कटारिया ने कोविड-19 संकट के दौरान शीघ्रतापूर्वक कई पहल शुरू की थी। इनमें मोबाइल स्टोर, व्हाट्सएप मैसेजिंग, वीडियो कॉलिंग और होम डिलिवरी जैसी सीधे उपभोक्ता तक (डी-टु-सी) पहल की शुरुआत करना भी शामिल था। कटारिया ने यह बात भी शीघ्रता से पहचान ली थी कि घर में रहने वाले उपभोक्ता औपचारिक जूते-चप्पल के बजाय अनौपचारिक जूते-चप्पल खरीदने इच्छुक थे। इस प्रवृत्ति का फायदा उठाने के लिए जल्दी से नए क्लेक्शन लाए गए। सामाजिक दूरियों के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए धीरे-धीरे बाटा की दुकानें खोली गई थीं। दुकान के प्रबंधकों को यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी दी गई थी कि डी-टु-सी की पहल को किस तरह ऐसे बेहतर तरीके से लागू किया जाए ताकि उचित रूप से उनके दायरे वाले बाजारों की खूबियों तक पहुंचा जा सके।
विशेषज्ञों का कहना है कि यूनिलीवर, यम ब्रांड्स और वोडाफोन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कटारिया के संपर्क ने उनके दृष्टिकोण और पेशेवर जीवन को आकार देते हुए उन्हें अच्छी जगह पर पहुंचा दिया।टेक्नोपार्क के चेयरमैन अरविंद सिंघल ने कहा कि संदीप का वैश्विक कंपनियों के साथ बढिय़ा ट्रैक रिकॉर्ड है और कोविड जैसी कठिन परिस्थितियों को संभालने की प्रमाणिक क्षमता है।
एक ओर जहां वित्त वर्ष 21 की जून और सितंबर तिमाही के दौरान राजस्व 134 करोड़ रुपये से धीरे-धीरे बढ़ते हुए 367 करोड़ रुपये हो गया है, वहीं दूसरी ओर इसी अवधि के दौरान शुद्ध घाटा 101 करोड़ से कम होकर 44 करोड़ रह गया है। नवंबर 2017 में कार्यभार संभालने के बाद से कटारिया कंपनी की शुद्ध आय को दोगुना करने कामयाब रहे हैं। लागत-बचत के उपायों और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक व्यापार विस्तार के संयोजन का उपयोग करते हुए ऐसा संभव हुआ है। बाटा ने वित्त वर्ष 20 का समापन 329 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ और 3,056 करोड़ रुपये की शुद्ध बिक्री के साथ किया था। हालांकि वित्त वर्ष 21 की पहली छमाही कोविड-19 के कारण बेकार हो गई, लेकिन उम्मीद है कि कंपनी अगली छमाही में इन चुनौतियों से उबर जाएगी।
इस जूता विनिर्माता का भारत के साथ एक अनोखा रिश्ता है। हालांकि वर्ष 1894 में चेक गणराज्य के जलिन शहर में एक वैश्विक ब्रांड स्थापित किया गया था, लेकिन बहुत-से भारतीय बाटा को देश में विकसित ब्रांड के तौर पर मानते हैं। इसका श्रेय पूरी तरह से यहां स्थापित होने की क्षमता को जाता है। और दूसरी बात है देश में इसका लंबा इतिहास।
वर्ष 1931 में पश्चिम बंगाल के कोननगर में बाटा इंडिया की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य भारतीयों को सस्ते दामों पर जूते उपलब्ध कराना था। इसके संस्थापक टोमैस बाटा ने तात्कालिक औपनिवेशिक देश की यात्राओं के दौरान उन्हें नंगे पांव घूमते हुए देखा था। इसके तुरंत बाद कंपनी ने कोलकाता के दक्षिण भाग में एक संपत्ति खरीदी और बाटानगर नामक एक कारखाने और नगर की स्थापना की जो आज तक भी इसकी सबसे बड़ी और सबसे पुरानी विनिर्माण इकाइयों में से एक है।
भारत के पूर्व से देश के अन्य हिस्सों में तेजी से विस्तार हुआ। यह ब्रांड 1,600 से अधिक अपने स्वामित्व और फ्रेंचाइजी आउटलेट के साथ देश का सबसे बड़ा जूता विनिर्माता बना हुआ है। रिलैक्सो, पैरागॉन और लिबर्टी शूज जैसे स्थानीय प्रतिस्पर्धियों के साथ-साथ क्लाक्र्स, नाइकी, एडिडास और प्यूमा जैसे वैश्विक नामों के उभरने के बावजूद ऐसा है।
हालांकि तकरीबन 90 साल पुराना यह ब्रांड युवाओं को लुभाने के लिए कटारिया के नेतृत्व में अपनी छवि को आधुनिक बनाता रहा है, लेकिन इसकी छवि आम आदमी के जूते वाली बनी रही है। ज्यादातर भारतीय इसकी मजबूती और किफायती दामों की वजह से बाटा जूते, चप्पल और सैंडल पहनकर बड़े हुए हैं। यह वह रणनीति है जिसे पिछले कुछ सालों के दौरान बहुत-से अन्य भारतीय ब्रांडों द्वारा दोहराया गया है। कटारिया ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ हाल ही में हुई एक बातचीत में कहा था कि भारत में बड़े स्तर पर बिकने वाले फुटवियर के दाम 500 रुपये से कम रहते हैं। और अधिकांश भागीदार इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं।
