इंडिया सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) ने प्रतिक्रिया भांपने के लिए 5,000 करोड़ रुपये के शुरुआती बजटीय आवंटन के साथ विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स के कलपुर्जों और सब-एसेंबली के लिए सरकार से उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) की स्थापना के लिए याचिका की है।
इसने अनुमान जताया है कि इन कलपुर्जों और सब-एसेंबली से अगले पांच वर्षों में निर्यात के लिए 100 अरब डॉलर का अवसर मिल सकता है। पिछले बजट में स्थानीयकरण (मेक इन इंडिया) को बढ़ावा देने और इसके परिणामस्वरूप सब-एसेंबली के लिए इनपुट तथा कलुपर्जों पर शुल्क लगाते हुए मूल्य संवर्धन में सरकार के प्रयासों को उतनी सफलता नहीं मिलने के बाद यह अनुरोध किया गया है।
आईसीईए ने कहा है कि स्थानीयकरण में इनपुट और कलपुर्जों पर शुल्क एक महत्त्वपूर्ण बाधा होती है और इसने बजट संबंधी अपनी रिपोर्ट में अधिकांश इनपुट पर शुल्क शून्य करने के लिए कहा है। आईसीईए द्वारा जताए गए अनुमानों के अनुसार पिछले बजट में सब-एसेंबली के इनपुटों पर शुल्क बढ़ोतरी से मोबाइल डिवाइस निर्माताओं की औसत उत्पादन लागत (सीओपी) में महज 1.76 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और अगर पिछले दो बजटों के लिहाज से देखा जाए, तो यह लगभग तीन से चार प्रतिशत होगा।
यही वजह है कि आईसीईए ने सरकार से गुजारिश की है कि 2.75 प्रतिशत से शुरू होने वाले कलपुर्जों पर छोटे ‘दिक्कतकारी शुल्क’ हटा दिए जाने चाहिए, जिनका कोई लाभकारी प्रभाव नहीं होता है और केवल वैध निर्माताओं के लिए बोझ ही पैदा करते हैं।
इनमें मोबाइल फोन के पुर्जों और घटकों पर शुल्कों की श्रृंखला शामिल है, जिसमें यांत्रिक हिस्सों, पीसीबीए, कैमरा मॉड्यूल और चार्जर की पूरी श्रृंखला के इनपुट शामिल हैं। आईसीईए चाहता है कि उन्हें शून्य स्तर पर लाया जाए।
सरकार के साथ अपनी बातचीत चर्चा और रिपोर्ट में आईसीईए ने इंगित किया है कि उसने मेकैनिकों (जिन्हें यांत्रिक हिस्सों के रूप में भी जाना जाता है) की चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम में आसान लक्ष्य के रूप में परिकल्पना की थी, जिन्हें इसमें वर्ष 2017 में शामिल किया गया था।