क्या पूरी तरह सरकार के स्वामित्व वाली दो सहायक कंपनियों के बीच की कोई संयुक्त उद्यम कंपनी खुद को निजी कंपनी कह सकती है? ऐसा लगता है कि इस सवाल ने सरकार को दुविधा में डाल दिया है। मैसूर की कंपनी – बैंक नोट पेपर मिल (बीएनपीएम) इंडिया प्राइवेट लिमिटेड सुरक्षा विशेषताओं से युक्त उच्च गुणवत्ता वाले करेंसी पेपर का उत्पादन करती है।
इस करेंसी पेपर की आपूर्ति नाशिक (महाराष्ट्र), देवास (मध्य प्रदेश), मैसूरु (कर्नाटक) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल) में स्थित करेंसी नोट छापने वाली चार प्रेसों को की जाती है।
बीएनपीएम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (बीआरबीएनएमपीएल) और वित्त मंत्रालय के तहत सरकारी उद्यम सिक्योरिटी प्रिंटिंग ऐंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) के बीच 50:50 की हिस्सेदारी वाला संयुक्त उद्यम है।
इस वर्ष फरवरी और मार्च में बीएनपीएम ने तीन निविदाएं आमंत्रित की थीं – करेंसी नोटों को नमी और क्षति से बचाने के लिए पैकेजिंग के वास्ते वार्निश कोट वाली मशीन-ग्लेज्ड क्राफ्ट शीट, परिवहन और भंडारण के दौरान उत्पादों की सुरक्षा के लिए एंगल बोर्ड और लंबी अवधि के लिए भारी दबाव के अनुप्रयोगों के लिए पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट स्ट्रैपिंग रोल की आपूर्ति के लिए।
करेंसी पैकेजिंग उत्पादों का निर्माण करने वाली दिल्ली की स्टार्टअप इंडोवेटिव प्रोडक्ट्स ने बोलियां जमा की थीं लेकिन ‘पिछले अनुभव’ की कमी के तकनीकी आधार पर इन्हें खारिज कर दिया गया।
इंडोवेटिव ने अप्रैल में यह मामला उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के सामने उठाया, जिसमें दावा किया गया था कि वर्ष 2017 में जारी सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) या पीपीपी-एमआईआई का आदेश केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा खरीद में योग्यता कारक के रूप में स्टार्टअप को पूर्व अनुभव से छूट प्रदान करता है।
डीपीआईआईटी ने अप्रैल में यह मामला बीएनपीएम को भेज दिया और बीएनपीएम ने मई में जवाब दिया कि इसे एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसलिए यह पीपीपी-एमआईआई के आदेश की परिभाषा के अनुसार खरीद करने वाली कंपनी की श्रेणी में नहीं आती है।
उद्योग विभाग ने इस जवाब को ‘असंतोषजनक’ पाया और वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) को बीएनपीएम द्वारा भेजे गए जवाब की समीक्षा करने का निर्देश दिया। हालांकि डीएफएस ने डीपीआईआईटी को जवाब देते हुए कहा कि यह मामला उससे संबंधित नहीं है और इसे वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) के सामने ले जाने की सलाह दी।
21 जुलाई को दिए गए सार्वजनिक खरीद के आदेश के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए स्थायी समिति की 15वीं बैठक में डीपीआईआईटी ने पाया कि खरीद करने वाली कंपनी (बीएनपीएम) भारत सरकार के उद्यमों की सहायक कंपनी होने के नाते वर्ष 2017 के पीपीपी-एमआईआई के आदेश के अनुरूप ‘खरीद करने वाली कंपनी’ की परिभाषा के अंतर्गत आती है। इसलिए बीएनपीएम का जवाब पीपीपी-एमआईआई के आदेश के विरुद्ध है और बीएनपीएम द्वारा इसका अक्षरश: अनुपालन किया जाना चाहिए।
डीपीआईआईटी ने प्रस्ताव दिया है कि स्थायी समिति बीएनपीएम को वर्ष 2017 के पीपीपी-एमआईआई आदेश के प्रावधानों के अनुरूप ‘प्रतिबंधात्मक मानदंड’ की समीक्षा करने का निर्देश दे सकती है, ताकि स्थानीय आपूर्तिकर्ता बोली प्रक्रिया में भाग ले सकें।
इंडोवेटिव प्रोडक्ट्स के संस्थापक वरुण कृष्ण ने कहा ‘ऐसा नहीं है कि हमारे पास जरा भी अनुभव नहीं था। हम इसी सामग्री की आपूर्ति होशंगाबाद की सिक्योरिटी पेपर मिल (एसपीएमसीआईएल की एक इकाई) को कर चुके हैं। हालांकि बीएनपीएम की जरूरत की तुलना में यह मात्रा कम थी। डीपीआईआईटी ने हमारे पक्ष में अपना फैसला दिया है। फिर भी बीएनपीएम ने आदेश का पालन नहीं किया है। क्या इस देश में तब तक कुछ भी नहीं निपटाया जा सकता, जब तक कोई अदालत न जाए?’
वित्त मंत्रालय को ईमेल पर भेजे गए सवाल का खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला।