चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इक्वलाइजेशन लेवी (डिजिटल लेनदेन पर लगने वाला शुल्क) का संग्रह अच्छा नहीं रहा। ई-कॉमर्स कंपनियों को भी ‘गूगल टैक्स’ की जद में लाने के सरकारी कदम के बाद भी इससे उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हुई।
इक्वलाइजेशन लेवी को आम बोलचाल में ‘गूगल टैक्स’ भी कहा जाता है। सूत्रों ने बताया कि इसकी पहली किस्त जमा करने की समयसीमा कल ही खत्म हो गई और पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले 29 फीसदी कम कर मिला। आरंभिक आकलन के मुताबिक मंगलवार तक 223 करोड़ रुपये आए, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 313 करोड़ रुपये का गूगल टैक्स आया था।
बेंगलूरु और हैदराबाद क्षेत्रों से 92-92 करोड़ रुपये का संग्रह हुआ, जबकि पिछले साल बेंगलूरु से 174 करोड़ रुपये और हैदराबाद से 89 करोड़ रुपये आए थे। मुंबई और दिल्ली से 7 जुलाई तक कुल 23 करोड़ रुपये आए, जबकि पिछले साल अप्रैल-जून में 35 करोड़ रुपये आए थे। हालांकि सूत्रों का कहना है कि विदेशी कंपनियों ने आखिरी क्षणों में भी रकम जमा की है, जिससे कुल संग्रह थोड़ा बढ़ सकता है। इक्वलाइजेशन लेवी के दायरे में एडोबी, उबर, यूडेमी, जूम डॉट यूएस, एक्सपीडिया, अलीबाबा, आइकिया, लिंक्डइन, स्पॉटिफाई और ईबे जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां आती हैं। सरकार ने निर्धारित समय सीमा से केवल 3 दिन पहले भुगतान फॉर्म में संशोधन किया था, इसलिए कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने तत्काल इसके पालन में असमर्थता जताई थी। भुगतान के लिए इस्तेमाल होने वाली विदेशी मुद्रा के विनियम शुल्क और पैन जैसे कई मसलों पर स्थिति स्पष्ट नहीं थी।
कंपनियों और सलाहकारों को अब भी उम्मीद है कि ब्याज या विलंब शुल्क माफ हो जाएगा। इस पूरे मामले पर एक सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘कुछ कंपनियों को समयसीमा के पालन में व्यावहारिक दिक्कतें जरूर हुई हैं मगर वित्त अधिनियम मार्च में ही अधिसूचित कर दिया गया था। वे अब तक स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर सकती थीं। पूछे जाने पर सब कुछ साफ कर दिया जाएगा।’ अधिकारी ने यह भी कहा कि पहली तिमाही में ज्यादातर समय तक आर्थिक गतिविधियां ठप रहीं, इसलिए कुल संग्रह कम रहा।
