मंदी के बावजूद कारपोरेट क्षेत्र की दिग्गज जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) इंडिया को भारत में कंपनी के राजस्व में अच्छी बढ़ोतरी की उम्मीद है।
जीई इंडिया ने 2007 में करीब 13 हजार करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया था। कंपनी को उम्मीद है कि 2010 तक उसका राजस्व बढ़कर 40 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
परिवहन और नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं के जरिए कंपनी इस लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास कर रही है। कंपनी से जुड़े कई मामलों पर जनरल इलेक्ट्रिक इंडिया के उपाध्यक्ष जॉन जी. राइस ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत की।
आपके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य क्या है?
कुछ विशेष नहीं। यह एक सामान्य दौरा है। मैं सरकार, अपने ग्राहकों और कर्मचारियों से मुलाकात करने यहां आया हूं।
2009 में कंपनी की बड़ी परियोजनाएं कौन-कौन सी हैं?
कंपनी के पास कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं हैं। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स की साझीदारी में 10 सालों में हमें 1,000 रेल इंजनों की आपूर्ति करनी है।
इसके अलावा, नाभिकीय ऊर्जा, रक्षा, विमानन और हेल्थकेयर क्षेत्र में भी काफी मौके हैं। वैसे भारत हमारे प्राथमिकता के शीर्ष पांच बाजारों में शामिल है।
नाभिकीय संयंत्रों के अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने के कितनी करीब है आपकी कंपनी। इसके लिए कारोबारी बातचीत क्या शुरू हो चुकी है?
नहीं, अब तक नहीं। हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं पर अभी इससे दूर हैं। अभी भी तो साइटों की पहचान भी नहीं हो सकी है। इसके बाद ही कारोबारी बातचीत शुरू होगी।
वैश्विक वित्तीय हालात और आर्थिक मंदी ने क्या भारत में आपके राजस्व की वृद्धि को प्रभावित किया है?
पिछले कुछ सालों में हमारे कारोबार में काफी तरक्की हुई है। मंदी के बावजूद उम्मीद है कि हमारा कारोबार और बेहतर गति से विकास करेगा।
सरकार की ओर से कई आर्थिक उत्प्रेरक पैकेज घोषित होने के बाद क्या आप निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के राजस्व में किसी बदलाव की उम्मीद करते है?
सामान्य अवधि के लिए, बुनियादी ढांचे के विकास में सरकार का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। हालांकि इस दिशा में सरकार के किए गए प्रयासों का असर अगले 12 से 18 महीनों में दिखेगा। उसके बाद क्या होगा यह अब तक अस्पष्ट है।
राजस्व में कमी की बात करें तो निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को करीब 50-50 फीसदी का नुकसान होने का अंदाजा है। हालात हालांकि सरकार के पक्ष में झुके हैं, लेकिन कितना कहना बड़ा मुश्किल है।
वैश्विक स्तर की बात करें तो क्या आपको लगता है कि बुनियादी ढांचे पर खर्च में बढ़ोतरी हो पाएगी? वह इसलिए भी कि अब तक की सारी घोषणाएं बेलआउट पैकेज के रूप में की गई है।
घोषणाएं अभी हो रही हैं लेकिन इसका क्रियान्वयन कितना जल्द हो पाता है, यह महत्वपूर्ण है। कितनी जल्दी ये घोषणाएं नौकरियां पैदा कर पाती हैं, इस पर भी अर्थव्यवस्था का विकास तय करेगा।
दाभोल परियोजना के बारे में आपकी क्या राय है?
हम इस मामले को ऊर्जा मंत्रालय और स्थानीय दल के साथ मिलकर देख रहे हैं। हम दाभोल परियोजना की रणनीतिक महत्ता को समझते हैं और इसे दोस्ताना तरीके से यथाशीघ्र सुलझाना चाहते हैं।
यदि इस मामले के लिए हम जिम्मेदार हैं, तो हमें आगे आना होगा। यदि उपकरणों की वजह से समस्या है तो हम इस परियोजना को अगले पांच सालों के लिए बंद कर देंगे।