भारत के FMCG (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) मार्केट में शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं की पसंद में साफ अंतर नजर आ रहा है। अंग्रेजी न्यूजपेपर टाइम्स ऑफ इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, जहां शहरों में लोग बिना ब्रांड वाले प्रोडक्ट्स और नए डिजिटल-फर्स्ट ब्रांड्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में नेस्ले, डाबर और हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) जैसे पुराने और लोकप्रिय ब्रांड्स के प्रति वफादारी बढ़ रही है।
हालांकि, ग्रामीण बाजारों में पहले बिना ब्रांड वाले सामान का बोलबाला था, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। बड़े ब्रांड्स अपनी मजबूत डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और ग्रामीण क्षेत्रों में गहरी पैठ के दम पर वहां अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। दूसरी ओर, डिजिटल-फर्स्ट ब्रांड्स को इस स्केल तक पहुंचने में अभी कई साल या शायद दशक लग सकते हैं।
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शहरी उपभोक्ता महंगाई के दबाव और ऑनलाइन प्रोडक्ट खोजने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते बिना ब्रांड वाले सामान की ओर ज्यादा झुक रहे हैं। Kantar की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025 में शहरों में बिना ब्रांड वाले प्रोडक्ट्स की वॉल्यूम ग्रोथ 8.4 फीसदी रही, जबकि ग्रामीण भारत में यह सिर्फ 2.3 फीसदी थी।
हालांकि, लिस्टेड FMCG कंपनियों की कुल वॉल्यूम ग्रोथ की बात करें तो ग्रामीण बाजारों ने शहरी बाजारों को पीछे छोड़ दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में इन ब्रांड्स की वॉल्यूम ग्रोथ 5.1 फीसदी रही, जबकि शहरों में यह केवल 2.1 फीसदी थी। NielsenIQ के डेटा के अनुसार, मार्च तिमाही तक लगातार पांच तिमाहियों से ग्रामीण भारत में FMCG की ग्रोथ शहरी क्षेत्रों से बेहतर रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले साल अच्छे मानसून, सरकार की सहायक नीतियों और ग्रामीण क्षेत्र में आय में सुधार ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है।
शहरों में महंगाई के कारण उपभोक्ता छोटे पैक और सस्ते विकल्पों की ओर बढ़े, जिससे शहरी डिमांड में कमी आई। हालांकि, FMCG कंपनियों का कहना है कि जून तिमाही में शहरी खपत में सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं।
शहरी उपभोक्ता डिजिटल-फर्स्ट ब्रांड्स जैसे स्लर्प फार्म की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं, जो ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के जरिए अपनी जगह बना रहे हैं। EY इंडिया के मयंक रस्तोगी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी भारत में उपभोक्ता अलग-अलग कैटेगरी में प्रीमियम प्रोडक्ट्स की ओर बढ़ रहे हैं और पुराने FMCG ब्रांड्स से दूरी बना रहे हैं। नए प्रोडक्ट्स की खोज ज्यादातर ऑनलाइन हो रही है, जहां कई पुराने ब्रांड्स की मौजूदगी कमजोर है।
डिजिटल ब्रांड्स की ताकत उनकी तेजी से बदलाव करने की क्षमता में है। रस्तोगी के मुताबिक, डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) ब्रांड्स जल्दी बदलाव करते हैं और प्रोडक्ट की पैकेजिंग या फॉर्मूलेशन में तेजी से सुधार कर लेते हैं।
इस बदलते माहौल में पारंपरिक FMCG कंपनियां भी अपनी रणनीतियों में बदलाव कर रही हैं। ब्रिटानिया शहरों में डिजिटल-फर्स्ट प्रोडक्ट्स लॉन्च कर रही है, साथ ही ग्रामीण डिस्ट्रीब्यूशन को और मजबूत कर रही है। ITC शहरी बाजारों में क्विक कॉमर्स का इस्तेमाल कर रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में नई पैकेजिंग और कीमतों के साथ प्रयोग कर रही है। डाबर भी ग्रामीण बाजारों पर ध्यान दे रही है और वहां सस्ते पैक लॉन्च कर रही है।