भारतीय निर्यात पर शुल्क बढ़ाकर कुल 50 प्रतिशत करने के अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कदम से भारत के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र पर सीधा असर नहीं पड़ेगा। मगर उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि शुल्क बढ़ने के बाद कमजोर वैश्विक आर्थिक हालात के बीच मांग सुधरने में और देरी हो सकती है।
विश्लेषकों ने वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के विस्तार में सुस्ती आने की चेतावनी भी दी है। जीसीसी भारत के तकनीकी ढांचे के विकास और निवेश में खासी अहमियत रखता है। वाहन, विनिर्माण और खुदरा जैसे क्षेत्र पहले ही शुल्कों की मार झेल रहे हैं। आईटी कंपनियां पिछले महीने इस बात बात का जिक्र भी कर चुकी हैं। उस समय उन्होंने कहा था कि अप्रैल की तुलना में वैश्विक माहौल और खराब नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि अनिश्चितता बढ़ने की आशंका जरूर थी मगर अमेरिका और अन्य देशों के बीच हुए व्यापार सौदों से उम्मीद जगी थी कि भारत के साथ भी मतभेद जल्द दूर हो जाएंगे। मगर कोई समझौता नहीं होने से दबाव और बढ़ गया है। नैसकॉम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘आईटी क्षेत्र पर शुल्कों का काई सीधा असर नहीं होगा। मगर परोक्ष असर सभी देशों पर होगा और भारत पर भी नजर आएगा। अमेरिकी ग्राहकों पर लागत का बोझ बढ़ने के साथ ही आईटी क्षेत्र में मांग सुधरने की गति धीमी होती जाएगी।’
जब उनसे पूछा गया कि इन हालात में क्या आईटी कंपनियां अमेरिका में वहीं के लोगों की ज्यादा भर्ती करेंगी तो अधिकारी ने कहा कि यह सिलसिला तो पिछले सात-आठ वर्षों से चल रहा है। उन्होंने कहा, ‘कंपनियां अधिक लोगों को काम पर रखना चाहेंगी लेकिन प्रतिभा मिल ही कहां रही है? अमेरिका में खास तौर पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), डेटा और साइबर सुरक्षा से जुड़ी प्रतिभाएं ही नहीं हैं। इसीलिए ये कंपनियां यहां अधिक लोगों को काम पर रखने के लिए विवश होती हैं।’
पारीख जैन कंसल्टिंग एवं ईआरआईआईटी के संस्थापक पारीख जैन ने कहा, ‘मुझे यह भी लगता है कि लगातार बढ़ रहे बड़े सौदों पर भी इसका असर हो सकता है। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उद्योग का कारोबार सुधरने में देर हो जाएगी। इसके अलावा अमेरिका के एक नए कार्यक्रम के तहत कुछ पर्यटकों और बिजनेस वीजा आवेदकों को 5,000 से 15,000 डॉलर के बॉन्ड भरने होंगे।