रुइया समूह की प्रमुख कंपनी एस्सार शिपिंग लिमिटेड कच्चे तेल, लौह अयस्क और कोयले के कारोबार के लिए जहाजों में भारी निवेश करने जा रही है।
कंपनी अब तक कच्चे तेल की ढुलाई टैंकरों के जरिये करती थी, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके लिए वह 4 बड़े मालवाहक जहाज खरीदने जा रही है।
इसके अलावा वह समूह की दूसरी प्रमुख कंपनी एस्सार एनर्जी होल्डिंग लिमिटेड की ओर से मांग में इजाफा होने के कारण कच्चे तेल की ढुलाई के लिए बहुत बड़े जहाज (वीएलसीसी) की खरीद के बारे में भी सोच रही है।
इन सौदों पर कंपनी तकरीबन 2,200 करोड़ रुपये खर्च करेगी।
एस्सार शिपिंग में 36 फीसदी हिस्सेदारी वाली रुइया समूह की कंपनी एस्सार शिपिंग ऐंड लॉजिस्टिक्स पहले ही छह सुपरमैक्स मालवाहक और 6 छोटे मालवाहक जहाजों की खरीद के ऑर्डर दे चुकी है।
कंपनी इसमें 2,600 करोड़ रुपये से भी अधिक का निवेश करेगी।
उसी की तर्ज पर एस्सार शिपिंग भी जहाजों का पूरा बेड़ा खड़ा करने जा रही है।
कंपनी कुल 16 मालवाहक जहाज खरीदेगी। इनमें चार अगले वित्त वर्ष में और बाकी भविष्य में चरणबद्ध तरीके से खरीदे जाएंगे।
मालवाहक जहाजों के लिए भाड़े लगातार बढ़ रहे हैं।
एस्सार शिपिंग इसका पूरा फायदा उठाना चाहती है। जहाजों के भाड़े का सूचकांक बाल्टिक ड्राई इंडेक्स है। यह सूचकांक पिछले साल नवंबर में 10,561 अंक तक पहुंच गया था।
यह अब तक का रिकॉर्ड आंकड़ा है। जनवरी 2006 में यह सूचकांक महज 3000 पर था। इससे मालवाहक जहाजों की बढ़ती मांग के बारे में साफ पता चलता है।
जानकारों की मानें, तो चीन और भारत जैसे देशों से लौह अयस्क और कोयले के बढ़ते व्यापार के कारण ही मालवाहक जहाजों की मांग में बढ़ोतरी हुई है।
एस्सार शिपिंग की मौजूदा क्षमता लगभग 13.2 लाख डेडवेट टन है। इसमें से 5.8 लाख डेडवेट टन क्षमता कंपनी के 23 तटीय परिवहन के जहाज हैं। कंपनी के पास मात्र 7 लाख डेडवेट टन क्षमता के लंबी दूरी के दो वीएलसीसी और एक सुपर मैक्स जहाज है।
कंपनी ने 9.5 लाख डेडवेट टन क्षमता के 12 नए जहाजों की खरीद के आदेश दे दिए हैं। इसके बाद कंपनी की क्षमता लगभग 22.7 लाख डेडवेट टन होने की संभावना है।
दिसंबर 2009 से जनवरी 2012 के बीच इन जहाजों के कंपनी के बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है।
एस्सार शिपिंग के प्रबंध निदेशक संजय मेहता ने बताया कि कंपनी की योजना के मुताबिक नए और पुराने दोनों तरह के जहाज खरीदे जा सकते हैं।
यह भी हो सकता है कि दोनों तरह के जहाजों को मिलाकर एक जहाज बनाया जाए।
किसी भी नए जहाज को शिपयार्ड से निकलकर काम शुरू करने में लगभग एक साल का समय लगता है। लेकिन मालवाहक जहाजों की बढ़ती मांग ने इस वक्त को बढ़ाकर डेढ़ साल से दो साल तक कर दिया है।
इस वजह से पुराने जहाजों की कीमत में भी अच्छा खासा इजाफा हुआ है क्योंकि ये जहाज तुरंत ही काम में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
कंपनी की योजना के प आकार के दो बड़े मालवाहक जहाज खरीदने की है। इसके लिए कंपनी ने 1,040 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
इसी तरह कंपनी ने दो सुपर मैक्स जहाजों के लिए कंपनी ने 560 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। एक वीएलसीसी जहाज पर कंपनी 600 करोड़ रुपये खर्च करेगी।
भारत की अग्रणी निजी शिपिंग कंपनी ग्रेट ईस्टर्न (जीई) शिपिंग कंपनी लिमिटेड के पास 31.4 लाख डेड वेट टन की कुल क्षमता वाले 47 जहाजों का बेड़ा है।
जीई शिपिंग ने 12 नए जहाज खरीदने के आदेश भी दे दिए हैं। इसमें से 4 जहाज तेल उत्पादों के लिए और बाकी 8 जहाजों का इस्तेमाल आयतन के लिए किया जाएगा।
इन जहाजों का वितरण 2008-09 से 2011-12 के बीच में शुरू हो जाएगा। नए जहाजों के बेड़े में शामिल होने के बाद 2011-12 कंपनी की क्षमता 35 लाख डेडवेट टन हो जाएगी।