घरेलू मांग और अंतरराष्ट्रीय दामों में इजाफा होने से इस्पात कंपनियां दाम बढ़ा सकती हैं। हालांकि जून में दाम बढ़ाए गए थे, लेकिन अगले महीने दाम वृद्धि के एक और दौर के आसार हैं। कंपनियों को उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय और प्रचलित घरेलू दामों के बीच का सात से आठ प्रतिशत का यह अंतर खत्म हो सकता हैं।
जिंदल स्टील ऐंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने कहा कि बाजार निचले स्तर तक जा चुका है। उन्होंने कहा कि इस महीने की शुरुआत में दामों में प्रति टन 500 रुपये तक बढ़ोतरी की गई थी तथा तीन दिन पहले प्रति टन 750 रुपये और बढ़ाए गए थे। अगले महीने दामों में प्रति टन 750 से 1,000 रुपये तक का इजाफा हो सकता है। इस महीने के इजाफे के बावजूद इस्पात की चादरों के दाम मार्च के अंत वाले स्तर से प्रति टन करीब 2,000 रुपये कम हैं। शर्मा का कहना है कि बाजार में मांग की वापसी हो चुकी है। श्रमिक भी वापस आ रहे हैं, इसलिए विनिर्माण गतिविधि बढ़ रही है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्यिक एवं विपणन) जयंत आचार्य ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट की तर्ज पर पिछले दो महीने के दौरान घरेलू बाजार में भी कीमतों में गिरावट आई थी। पिछले कुछ सप्ताह के दौरान बेहतर मांग और लौह अयस्क के बढ़े हुए दामों की वजह से अंतरराष्ट्रीय कीमतों में प्रति टन 60 से 70 डॉलर तक की वृद्धि हुई है। घरेलू दाम अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले सात से आठ प्रतिशत कम हैं जिनकी भरपाई आने वाले महीनों में की जा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम ज्यादातर चीन के नियंत्रण में चल रहे थे क्योंकि पहली तिमाही के दौरान नरम रहने के बाद जुलाई में दाम मजबूत होकर प्रति टन 475 डॉलर तक पहुंच चुके हैं। चीन में मजबूत मांग का प्रमुख कारण राजकोषी समर्थन से बुनियादी ढांचे की मांग है।
इस्पात विकास एवं संवृद्धि संस्थाान (आईएनएसडीएजी) के महानिदेशक सुशीम बनर्जी ने बताया कि चीन में बड़े स्तर पर दाम वृद्धि की गई है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ में कीमतें स्थिर हो चुकी है। वियतनाम में मांग स्थिर थी, जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया में मांग धीरे-धीरे बढ़ती रही है।
खबरों के अुनसार चीन के बुनियादी ढांचा निवेश में पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 10 प्रतिशत तक का इजाफा होने के आसार हैं, जबकि जनवरी से मई के दौरान इसमें 6.3 प्रतिशत की कमी आई थी। मांग ने उन भारतीय इस्पात उत्पादकों के लिए अच्छा संकेत दिया है जिन्हें घरेलू मांग में नरमी की वजह से निर्यात का सहारा लेना पड़ा था। अप्रैल से मई के दौरान भारतीय इस्पात मिलों के लिए चीन तकरीबन 48 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा है।
