डिक्सन टेक्नोलॉजीज (Dixon Technologies) के नेतृत्व में भारतीय स्मार्टफोन इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग सर्विसेज (EMS) कंपनियों ने वैश्विक दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए देश में स्मार्टफोन उत्पादन पर कब्जा कर लिया है। काउंटरपॉइंट रिसर्च के अनुसार, अप्रैल-जून 2025 तिमाही में घरेलू कंपनियों का कुल उत्पादन हिस्सेदारी 36% तक पहुंच गई, जो पिछले साल इसी अवधि में केवल 9% थी।
इस सफलता के साथ पहली बार डिक्सन भारत की सबसे बड़ी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी बन गई है, और उसने सैमसंग, फॉक्सकॉन और वीवो को पीछे छोड़ दिया। डिक्सन का मार्केट शेयर जून 2025 तिमाही में 22% पर पहुंचा, जो पिछले साल 8% था — यानी 196% की तेजी।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कंपनियों का उदय और तेज़ होगा। डिक्सन 70 मिलियन फोन सालाना बनाने की क्षमता वाले नए प्लांट बना रहा है, जबकि टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स का नया iPhone प्लांट भी पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन यूनिट खरीदने के बाद उत्पादन शुरू कर चुका है। आने वाले दो सालों में घरेलू कंपनियां भारत के 2.5 करोड़ यूनिट के स्मार्टफोन उत्पादन का 50% से अधिक हिस्सा अपने पास ले सकती हैं।
डिक्सन के अलावा, भगवती प्रोडक्ट्स, जो पहले माइक्रोमैक्स के लिए फोन बनाती थी, ने इस बार 1,000% की असाधारण वृद्धि दर्ज की और Q2 2025 में 8% बाजार हिस्सेदारी हासिल की, वीवो के लिए फोन उत्पादन करके।
विशेषज्ञों का कहना है कि डिक्सन की तेजी के तीन मुख्य कारण हैं:
लेनोवो-स्वामित्व वाली मोटोरोलाके लिए उत्पादन में तेजी और भारत से अमेरिका के लिए निर्यात में वृद्धि।
चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लॉन्गचियर के साथ जुलाई में शुरू की गई जॉइंट वेंचर, जो पहले ही डिक्सन से सोर्सिंग कर रही है।
शाओमी और ट्रांसियन होल्डिंग्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट उत्पादन में वृद्धि, विशेष रूप से डिक्सन द्वारा ट्रांसियन की फैक्ट्री अधिग्रहण के बाद।
वहीं, सैमसंग, जो पिछले साल 21% शेयर के साथ शीर्ष पर था, इस बार 17% पर गिर गया। विश्लेषकों का कहना है कि इसका कारण सैमसंग की पांच साल की PLI योजना की समाप्ति है, जिससे उसने निर्यात ऑर्डर कम कर दिए।
फॉक्सकॉन हों है, जो iPhone बनाता है, का हिस्सा 13% से बढ़कर 19% हो गया, मुख्यतः अमेरिका के लिए iPhone निर्यात में वृद्धि के कारण। वहीं, वीवो का शेयर 14% से घटकर 10% रह गया। विशेषज्ञ इसे अस्थायी गिरावट मान रहे हैं क्योंकि वीवो डिक्सन के साथ अपनी JV के लिए नियामक मंजूरी का इंतजार कर रही है, जिसके बाद उसका अधिकांश उत्पादन भारतीय कंपनियों के जरिए होगा।