सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से एंड्रायड उपकरणों से संबंधित मामले में गूगल को अंतरिम स्थगन से इनकार के एक दिन बाद भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने अदालत में आपत्ति पत्र जमा करा दिया ताकि किसी और मामले में तकनीकी दिग्गज को किसी तरह की राहत प्रतिस्पर्धा आयोग को सूचना दिए बिना न मिल पाए।
यह आपत्ति पत्र 25 अक्टूबर के दूसरे आदेश के मामले में जमा कराया गया है, जिसमें अपनी प्लेस्टोर नीतियों के जरिये वर्चस्व का बेजा फायदा उठाने के चलते गूगल पर 936.44 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इस आदेश के बाद गूगल ने एनसीएलएटी का दरवाजा खटखटाया था।
कैविएट यानी आपत्ति पत्र अदालत को भेजी गई एक तरह सूचना है कि नोटिस देने वाले को सूचित किए बिना कुछ निश्चित कदम न उठाए जाएं।
11 जनवरी को एनसीएलएटी ने सीसीआई के आदेश पर स्थगन से इनकार किया था और गूगल से कहा था कि प्लेस्टोर मामले में वह बेजा फायदा न उठाए।
न्यायमूर्ति राकेश कुमार और न्यायमूर्ति डॉ. आलोक श्रीवास्तव के पीठ ने सीसीआई के आदेश के खिलाफ गूगल की अपील पर एनसीएलएटी में कहा कि कहा था कि रजिस्ट्रार के पास चार हफ्ते के भीतर जुर्माने का 10 फीसदी जमा कराना होगा। इस मामले पर अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी और कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया गया।
अल्फाबेट (गूगल की मूल कंपनी) की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि सीसीआई के आदेश में इस तरह के कथित दुरुपयोग के ‘प्रतिस्पर्धा पर महत्त्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव’ (एएईसी) पर चर्चा किए बिना तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज द्वारा दुरुपयोग के विभिन्न उदाहरण मिलते हैं। उन्होंने कहा कि यह बात प्रतिस्पर्धा अधिनियम और मामले के कानूनों के खिलाफ जाती है।
उन्होंने कहा कि अगर गूगल सीसीआई के आदेश का पालन करती है, तो इससे गूगल की नीतियों (प्लेस्टोर और तृतीय पक्ष से संबंधित) में प्रणालीगत गहरे बदलाव पैदा होंगे और इससे गूगल मुश्किल स्थिति में आ जाएगी, जहां ऐसे निर्देशों के कार्यान्वयन के कारण उन्हें राजस्व का नुकसान होगा।
दूसरी ओर सीसीआई की तरफ से पैरवी करते हुए मनु चतुर्वेदी के साथ वकील समर बंसल ने कहा कि गूगल ने यह स्वीकार किया है कि वह यूरोप जैसे अन्य न्यायालयों में सीसीई के आदेश में निहित समान निर्देशों को लागू करने की प्रक्रिया में है।
उन्होंने कहा कि अलबत्ता, भारत में गूगल/अल्फाबेट ने अपील करने और ऐसे निर्देशों पर रोक लगाने के लिए दबाव डालने का विकल्प चुना है, जो भारत और अन्य न्यायालयों के बीच गूगल के भेदभावपूर्ण आचरण को दर्शाता है।