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भारत बायोटेक का अब तक का सफर

Last Updated- December 10, 2022 | 2:11 AM IST

जब भी जीवन रक्षक टीकों को विकसित करने की बात आती है, तो इसमें परोपकारिता की एक मजबूत भावना देखने को मिलती है। भारत बायोटेक इंटरनैशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) के संस्थापक अध्यक्ष कृष्णा एल्ला भी इससे अलग नहीं हैं। अपनी दो दशक की यात्रा में, हैदराबाद स्थित इनकी इस कंपनी ने अपने आप को किफायती मूल्यों पर अहम टीकों एवं जैव-चिकित्सीय उत्पाद बनाने के लिए तैयार किया है।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की को-वैक्सीन को कोरोना के खिलाफ भारत में प्रतिबंधित उपयोग की अनुमति मिल गई है। इस सफर में अग्रणी चल रही कंपनी भारत बायोटेक, आज के समय में अपने राजस्व का 80 प्रतिशत से अधिक शीर्ष दो या तीन टीकों से प्राप्त करती है।
भारत बायोटेक का पिछले दो दशक का सफर कई सफलताओं को संजोए रहा है।  
एल्ला का मानना था कि वह पहले एक वैज्ञानिक हैं और बाद में कारोबारी। इसी भाव के कारण एल्ला ने साल 1996 में अपने गृह देश लौटने के लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलाइना-चाल्र्सटन की अपनी नौकरी छोड़ दी। हालांकि यह कहा जाता है कि उनकी मां ने उन्हें वापस लौटने के लिए मना किया था। एल्ला विकासशील स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की चुनौतियों के लिए नवीन उपचारात्मक उपाय विकसित करने की दृष्टि से भारत वापस आए।
जेनोम वैली, हैदराबाद में भारत बायोटेक के लॉन्च होने के दो साल के भीतर, कृष्णा और सुचित्रा एल्ला की कंपनी ने दुनिया का पहला सीजयिम क्लोराइड मुक्त हेपेटाइटिस-बी का टीका ‘रीवैक-बी +’ विकसित किया, जिसे डॉ. ए पी जे. अब्दुल कलाम ने लॉन्च किया था। इसके कुछ दिन के बाद, भारत बायोटेक ने रीवैक-बी + की 10 करोड़ खुराक बनाने के लिए अपनी विनिर्माण क्षमता का विस्तार किया, जिससे यह दुनिया में हेपेटाइटिस-बी के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक बन गई। साल 2002 तक, एल्ला के वैज्ञानिक एवं व्यवसाय की कुशाग्र बुद्धि ने भारत बायोटेक के वैश्विक विस्तार में तेजी से वृद्धि की, जिसने बिल ऐंड मिलिंडा गेट फाउंडेशन का ध्यान इसकी तरफ खींचा। नतीजतन, भारत बायोटेक, मलेरिया और रोटावायरस के खिलाफ नए टीके विकसित करने के लिए इस फाउंडेशन से दो अनुदान प्राप्त करने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई। भारत बायोटेक ने 2005 में जापानी इंसेफेलाइटिस टीका विकसित करने के लिए एकम्बिस के साथ विनिर्माण और विपणन समझौते करके अपनी वैश्विक छवि को और ऊंचाई दी।
बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन और विभिन्न एजेंसियों के साथ साझेदारी करते हुए, डॉ. एल्ला ने यह सुनिश्चित किया कि भारत बायोटेक ने भारत के पहले नए रोटावायरस प्रेरित डायरिया संक्रमण एवं उससे होने वाली मौत में कमी लाई जाए और कंपनी ने उसके खिलाफ दुनिया का सबसे किफायती टीका रोटावैक विकसित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे साल 2015 में लॉन्च किया था।
डॉ. एल्ला के नेतृत्व में, कंपनी ने टाइपबार टीसीवी भी विकसित किया, जो दुनिया का पहला चिकित्सकीय परीक्षण पास करने वाला एवं डब्ल्यूएचओ प्री-क्वालिफाइड टाइफाइड कंजुगेट वैक्सीन (टीसीवी) है। इसे छह महीने के बच्चे को भी दिया जा सकता है। भारत बायोटेक की टीसीवी को भी 2018 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में चैलेंज स्टडी के लिए रखा गया था और इसने अपनी प्रभावशीलता साबित की है। चैलेंज स्टडी में मानव वॉलंटियर को जानबूझकर संक्रमित किया जाता है। आज उनकी फर्म ने टीकों की चार अरब से अधिक डोज दी हैं और इसके 140 से अधिक पेटेंट हैं। कंपनी के पास 16 से अधिक टीके और 4 जैव-चिकित्सा उत्पाद हैं। साथ ही यह 116 देशों में पंजीकृत हैं और इसका टीका डब्ल्यूएचओ के पोर्टफोलियो में पूर्व में योग्य टीका माना गया हैं। को-वैक्सीन के अलावा, भारत बायोटेक ने कोविड-19 से निपटने के लिए दो अन्य वैक्सीन में भी निवेश किया है। जिसमें पहला फ्लुगेन इंक और विस्कॉन्सिन-मेडिसन विश्वविद्यालय के सहयोग तैयार हो रहा कोरोफ्लू है और दूसरा जेफरसन वैक्सीन सेंटर, पेंसिल्वेनिया के निदेशक मैथिसिस एसचनिल के साथ विकसित हो रही कोरोनोवायरस प्रोटीन के लिए एक निष्क्रिय रेबीज वैक्सीन वाइकल है।

First Published - January 3, 2021 | 11:51 PM IST

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