भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) देश भर में 5जी सेवाओं के लिए अहम माने जाने वाले सैटेलाइट बैंड में स्पेक्ट्रम नीलामी पर परामर्श पत्र जारी कर सकता है। इसमें केए (उपग्रह से पृथ्वी 17.2 से 21.2 गीगाहर्ट्ज और 27.5 से 31 गीगाहर्ट्ज) और केयू (10.2 से 14.5 गीगाहर्ट्ज) के अलावा ई बैंड (71-76 से 81-86 गीगाहर्ट्ज) और वी बैंड (57 से 64 गीगाहर्ट्ज) शामिल हैं। हाल में दूरसंचार विभाग ने 5जी बैकहॉल के लिए ऑपरेटरों को एक प्रशासनिक मूल्य पर ई बैंड की पेशकश की थी। इसके आवंटन के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना अभी बाकी है।
यह पहल ऐसे समय में की गई है जब कुछ ही दिन पहले दूरसंचार विभाग ने ट्राई को यह मामला संदर्भित किया था। ट्राई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हां, हमें एक-दो दिन पहले दूरसंचार विभाग से चार मुद्दे प्राप्त हुए हैं और हम स संबंध में जल्द ही परामर्श पत्र जारी करेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘इसकी प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। हम अध्ययन करेंगे और आंकड़े जुटाएंगे। हम सभी संभावित विकल्पों, नई तकनीकी रुझानों, अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं आदि का आकलन करेंगे ताकि हम परामर्श के लिए उपयुक्त सवाल तैयार कर सकें।’
समझा जाता है कि दूरसंचार नियामक को संदर्भित मुद्दों में इन बैंडों (ई और वी) में कैप्टिव उपयोगिता के साथ-साथ केवल इनडोर उपयोग के लिए वी बैंड के लाइसेंस को समाप्त करने पर विचार भी शामिल है। यह पहल काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इन विवादित बैंडों में स्पेक्ट्रम आवंटन के तरीके के बारे में विभिन्न हितधारकों के बीच काफी मतभेद है। कुछ हितधारकों का मानना है कि इन बैंडों में स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के जरिये होना चाहिए जबकि कुछ अन्य प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में दलील दे रहे हैं।
दूरसंचार ऑपरेटरों की आम राय है कि इस महत्त्वपूर्ण बैंड (ई बैंड) में स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के जरिये होना चाहिए। हालांकि नीलामी के तरीके के बारे में ऑपरेटरों की अलग-अलग राय है। एयरटेल का सुझाव है कि इसे मझोले बैंड (3.5 गीगाहर्ट्ज) में खरीदे गए स्पेक्ट्रम की मात्रा के साथ अनिवार्य तौर पर जोड़ देना चाहिए। जबकि रिलायंस का कहना है कि इसकी अलग से नीलामी होनी चाहिए ताकि कंपनियां अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदारी कर सकें।
दूसरी ओर, गूगल और फेसबुक जैसी प्रमुचा प्रौद्योगिकी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले ब्रॉडबैंड इंडियन फोरम (बीआईएफ) ने यह कहते हुए नीलामी का विरोध किया था कि इसका आवंटन एक प्रशासनिक मूल्य पर होना चाहिए और इसका उपयोग हाई स्पीड वाईफाई के प्रसार के लिए होना चाहिए। उसने वी बैंड में स्पेक्ट्रम नीलामी का भी विरोध किया था।
सैटेलाइट बैंड के मामले में भी सुनील भारती मित्तल की कंपनी वन वेब और रिलायंस जियो के बीच तगड़ी लड़ाई दिख रही है। वन वेब प्रशासनिक आवंटन में पक्ष में दलील दे रही है जबकि रिलायंस जियो नीलामी के जरिये आवंटन के पक्ष में है। उदाहरण के लिए, वन वेब सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए मिलीमीटर बैंड अथवा केए बैंड में एक प्रशासनिक मूल्य पर 1 गीगाहर्ट्ज (27.5 से 28.5 गीगाहर्ट्ज के बीच) स्पेक्ट्रम आरक्षित करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। इससे उसे अपने उपग्रह नेटवर्क को लिंक करने में मदद मिलेगी।
रिलायंस जियो ने इसका जबरदस्त विरोध किया है। उसका कहना है कि मिलीमीटर बैंड को 5जी नीलामी का हिस्सा होना चाहिए ताकि सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित हो सके। दूसरा, 27.5 से 28.5 गीगाहर्ट्ज के बीच बैंड का उपयोग स्थलीय 5जी और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड दोनों के लिए किया जा सकता है। उसने इस बैंड में स्पेक्ट्रम पट्टे पर देने की अनुमति भी मांगी है ताकि सैटेलाइट ऑपरेटर के गेटवे परिचालन के लिए आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके।