दिल्ली उच्च न्यायालय ने एयर इंडिया के उस निर्णय को खारिज करने से इनकार कर दिया है जिसके तहत विमानन कंपनी ने अपनी यात्री सेवा प्रणाली (पीएसएस) के लिए एमेंडस को अनुबंध आवंटित किया था। न्यायालय ने इस संबंध में प्रतिस्पर्धी कंपनी साबरे की याचिका को खारिज कर दिया।
दिल्ली उच्च न्यायालय के एक खंडपीठ ने बुधवार को अपने फैसले में कहा था, ‘हम याचिकाकर्ता (सेबर) को कोई राहत नहीं देना चाहते हैं। इसलिए उसकी याचिका को खारिज किया जाता है।’
यात्री सेवा प्रणाली के तहत विमानों के परिचालन की तमाम गतिविधियां आती हैं जिनमें उड़ान की समय-सारणी निर्धारित करना, टिकट आरक्षण व्यवस्था, ई-कॉमर्स, लॉयल्टी कार्यक्रम और प्रस्थान नियंत्रण शामिल हैं।
एयर इंडिया ने अपनी यात्री सेवा प्रणाली के संचालन के लिए सात साल के एक नए अनुबंध के लिए मार्च में बोली आमंत्रित की थी क्योंकि एसआईटीए के साथ उसका मौजूदा अनुबंध अगले साल खत्म होने जा रहा है।
एयर इंडिया द्वारा इस अनुबंध के लिए एमेंडस का चयन किए जाने के बाद सेबर ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था। उसने अपनी याचिका में सरकारी विमानन कंपनी पर चयन प्रक्रिया में पक्षपात करने का आरोप लगाया था। उसने कहा था कि एमेंडस का चयन करने के लिए चयन मानदंडों में फेरबदल किया गया। सेबर ने यह भी दावा किया था कि उसके उत्पाद को हासिल करने से एयर इंडिया को 900 करोड़ रुपये की बचत होगी।
हालांकि साबरे की वित्तीय बोली 1,039 करोड़ रुपये की थी जबकि एमेंडस ने 1,957 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। गुणवत्ता सह लागत आधारित चयन प्रक्रिया के तहत सेबर का कुल स्कोर एमेंडस के मुकाबले कम था और इसलिए इस अनुबंध के लिए उसका चयन नहीं किया गया।
उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करने के बाद पाया कि वाणिज्यिक लेनदेन में हस्तक्षेप करने के क्रम में अदालत को अवश्य संतुष्ट होना चाहिए कि उसमें कुछ सार्वजनिक हित निहित हैं।
खंडपीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की दलील कि यह ध्यान में रखते हुए कि विमानन कंपनी वित्तीय संकट से जूझ रही है और उसका विनिवेश किया जा रहा है, इस प्रकार की निविदा सार्वजनिक हित में नहीं है, को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यात्री सेवा प्रणाली की आवश्यकता एयर इंडिया के लिए समय की मांग है क्योंकि उसके मौजूदा सेवा प्रदाता की सेवाएं जून 2022 से खत्म होने जा रही हैं।’
पीठ ने कहा, ‘एयर इंडिया अपनी खुद की जरूरतों के लिए सबसे अच्छा निर्णय ले सकती है यानी एक ऐसी प्रणाली को चुनना जो उसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बढ़त दे सकती है। इससे अंतत: विमानन कंपनी के राजस्व में बढ़ोतरी होगी। परिणामस्वरूप, केवल इसलिए यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की वित्तीय बोली सबसे कम है, उसे स्वत: स्वीकार कर लिया जाएगा।’
एयर इंडिया और सेबर इस मुददे पर टिप्पणी के लिए भेजे गए ईमेल का तत्काल कोई जवाब नहीं दिया।
