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Air India CEO बोले: पट्टे पर लेने के लिए नहीं बचा कोई विमान, 2027 तक बेड़े में होंगे 400 विमान

एयर इंडिया के सीईओ कैम्पबेल विल्सन से खास बातचीत: बेड़े विस्तार, सप्लाई चेन संकट और पाकिस्तान हवाई क्षेत्र बंद होने के प्रभाव पर खुलकर बोले

Last Updated- June 01, 2025 | 10:43 PM IST
Air India CEO Campbell Wilson
एयर इंडिया के मुख्य कार्या​धिकारी एवं प्रबंध निदेशक कैम्पबेल विल्सन

प्रमुख विमानन कंपनी एयर इंडिया के मुख्य कार्या​धिकारी एवं प्रबंध निदेशक कैम्पबेल विल्सन ने दीपक पटेल से खास बातचीत में आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, विमान पट्टे, पाकिस्तान हवाई क्षेत्र बंद होने के प्रभाव, द्विपक्षीय अधिकार, बिजनेस क्लास यात्रियों पर उपयोगकर्ता शुल्क एवं अन्य मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:

पिछले साल आपने कहा था कि एयर इंडिया समूह 2027 तक अपने बेड़े का 400 विमानों तक विस्तार करेगा। क्या वह सही दिशा में अग्रसर है?

सामान्य तौर पर वह सही दिशा में अग्रसर है। जब एयर इंडिया का निजीकरण किया गया था तो वह करीब 70 विमानों का संचालन कर रही थी। एयर इंडिया एक्सप्रेस (एयर इंडिया की सस्ती विमानन सेवा) के पास करीब 25 विमान थे। इस प्रकार एयर इंडिया के पास कुल 100 से भी कम विमान थे। मगर आज एयर इंडिया समूह के पास करीब 305 विमान हैं। हमने जो 570 विमानों के लिए ऑर्डर दिए हैं, उनमें से काफी डिलिवरी होना अभी बाकी है। जहां तक 400 विमानों का सवाल है तो वह कमोबेश डिलिवरी की रफ्तार पर निर्भर करता है जो एयरबस और बोइंग के हाथ में है। मगर आंकड़ा उसके आसपास जरूर होगा।

क्या आपूर्ति-श्रृंखला संबंधी समस्याओं से निपटने का तात्कालिक समाधान पट्टे पर विमान लेना है?

हमने 11 बी777 और 25 ए320 विमान पट्टे पर लिए हैं। अगले सप्ताह हमारे 50वें बी737 व्हाइटटेल विमान की डिलिवरी होगी। हमने 6 व्हाइटटेल ए350 विमान लिए हैं। हमने पट्टे पर विमान की तत्काल उपलब्धता की लगभग पूरी क्षमता का लगभग उपयोग कर लिया है। अगर कोई क्षमता बची होती, तो हम और विमान लेते। उत्पादन में देरी होने के कारण हर विमानन कंपनी क्षमता के लिए संघर्ष कर रही है। पट्टे पर विमान लेना सैद्धांतिक तौर पर एक समाधान जरूर है। मगर व्यवहारिक तौर पर हासिल करने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं है।

आपने कुछ जगहों पर अधिक द्विपक्षीय अधिकार दिए जाने के खिलाफ बात की है। इस मामले में एयर इंडिया सरकार के रुख को किस प्रकार देखती है?

भारत ने उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देशों के साथ कई उदार और कुछ मामलों में खुले आसमान के समझौते किए हैं जो अवसर की समानता से प्रेरित हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। दोनों तरफ बड़ी आबादी और यातायात प्रवाह है। जहां ऐसा संतुलन नहीं है, वहां अलग रणनीति की जरूरत है।

तो क्या सरकार के लिए द्विपक्षीय अधिकारों को बढ़ाना उचित है?

बिल्कुल, मैं समझता हूं कि तमाम साक्ष्यों से यह बात साफ तौर पर स्पष्ट होती है।

आपने और इंडिगो ने विमानों के काफी ऑर्डर दिए हैं। क्या एयरबस या बोइंग के लिए यह भारत में असेंबली लाइन स्थापित करने का यह सही समय है?

हम निश्चित तौर पर भारत में मूल उपकरण विनिर्माताओं की अधिक मौजूदगी का स्वागत करेंगे। आयात की प्रक्रिया, कराधान आदि के कारण लागत बढ़ जाती है।

क्या नैरो-बॉडी विमानों के बेड़े का आधुनिकीकरण इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा?

हां, कमोबेश पूरा हो जाना चाहिए। अभी हम करीब 68 फीसदी काम पूरा कर चुके हैं। कुछ विमानों को छोड़कर अपग्रेडेशन का काम इस साल के अंत तक पूरा हो जाना चाहिए। मगर हमने बेड़े से बाहर होने वाले 13 नैरो-बॉडी विमानों के जीवन को बढ़ाने का निर्णय लिया है और उनका आधुनिकीकरण अगले साल तक चलेगा।

वाइड-बॉडी विमानों का आधुनिकीकरण 2027 तक पूरा होने वाला है। उसकी क्या स्थिति है?

फिलहाल हमारे वाइड-बॉडी बेड़े का लगभग 35 फीसदी हिस्सा आधुनिक है। हमारे ए350 विमान, बी777 विमान और कुछ बी777 विमान अपग्रेडेड हैं। बी777 का अपग्रेडेशन चल रहा है और पहला बी787 विमान अपग्रेडेशन के लिए जुलाई में जाएगा। हमें उम्मीद है कि वाइड-बॉडी विमानों का आधुनिकीकरण 2027 में पूरा हो जाएगा।

क्या आपको लगता है कि एयरबस या बोइंग को अब नए डिजाइन और नए विमान विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए अथवा उन्हें पहले आपूर्ति-श्रृंखला की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए?

निश्चित तौर पर उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जिन विमानों को बेचने के लिए प्रतिबद्ध हैं उनका उत्पादन उसी रफ्तार से हो। मगर उद्योग के तौर पर हमें स्थिरता, दक्षता, सुरक्षा आदि कई कारणों से हमेशा प्रौद्योगिकी में अगले कदम पर ध्यान देना चाहिए।

पाकिस्तान हवाई क्षेत्र बंद होने का परिचालन एवं वित्तीय प्रभाव क्या होगा?

परिचालन प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट है। इससे यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए उड़ान समय बढ़ जाएगा। जहां तक यूरोप का सवाल है तो उसमें थोड़ा कम लेकिन उत्तरी अमेरिका के मामले में उड़ान समय अधिक हो जाएगा। कुछ मामलों में इसका मतलब यह भी है कि हम बिना रुके उड़ान नहीं भर सकते हैं यानी हमें हमें रास्ते में ईंधन भरने के लिए रुकना पड़ेगा। मगर कुछ मामलों में इसका मतलब यह है कि हम कार्गो और यात्रियों का पूरा भार नहीं ले जा सकते हैं। इसलिए परिचालन के लिहाज से यह चुनौतीपूर्ण है और जाहिर तौर पर उसका वित्तीय निहितार्थ भी है। मगर हम सबकुछ झेलते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।

क्या सरकार को भारतीय विमानन कंपनियों के लिए कुछ राहत पर विचार करना चाहिए?

इस संबंध में मीडिया के जरिये चर्चा करना मेरे लिए उचित नहीं है। हम सभी मुद्दों पर सरकार के साथ संपर्क में रहे हैं। हम कई तरीके से सरकार का समर्थन करते हैं और सरकार हमारा समर्थन करती है। इसलिए हम सब एक ही टीम में शामिल हैं।

First Published - June 1, 2025 | 10:43 PM IST

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