भारती एयरटेल वैश्विक कनेक्टिविटी के बुनियादी ढांचे में संयुक्त रूप से निवेश करने के लिए फेसबुक की मूल कंपनी मेटा के साथ साझेदारी करेगी जो ‘2अफ्रीका पर्ल्स’ नामक समुद्री के नीचे वाली केबल प्रणाली का भारत में विस्तार करेगी। मेटा प्लेटफॉर्म इंक, जैसा कि कंपनी को औपचारिक रूप से जाना जाता है, ने पिछले साल साझेदारों के सहयोग से 2अफ्रीका पर्ल्स के एक नए खंड की घोषणा की थी।
जब वर्ष 2020 में इसे शुरू किया गया था, तब समुद्र के नीचे 37,000 किलोमीटर लंबे केबल ने 23 देशों को जोड़ा था। यह समुद्र के नीचे दुनिया की सबसे लंबी केबल प्रणालियों में शुमार हो चुकी है तथा इसका उद्देश्य अफ्रीका, यूरोप और एशिया को जोड़ते हुए लगभग तीन अरब लोगों को तेज गति वाला इंटरनेट प्रदान करना है।
एयरटेल, मेटा और सऊदी टेलीकम्युनिकेशन कंपनी मुंबई में एयरटेल के लैंडिंग स्टेशन तक 2अफ्रीका पर्ल्स का विस्तार करने के लिए मिलकर काम करेंगी। एयरटेल ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि 2अफ्रीका केबल भारत की केबल क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देगी और नए एकीकृत समाधान निर्माण तथा ग्राहकों को अधि गुणवत्ता वाला बाधा रहित अनुभव प्रदान करने के लिए वैश्विक हाइपर-स्केलर्स और कारोबारों को सशक्त बनाएगी।
अफ्रीका पर्ल की इस विस्तारित शाखा में ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन, कुवैत, इराक, पाकिस्तान, भारत और सऊदी अरब में लैंडिंग स्थल शामिल होंगे। मेटा की मोबाइल साझेदारी के उपाध्यक्ष फ्रांसिस्को वरेला ने कहा कि नेटवर्क क्षमता और ईंधन नवोन्मेष का समर्थन करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे में समुद्र के नीचे और खुले में केबल अलग-अलग नेटवर्क एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। हमें इस क्षेत्र के कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचे को और आगे बढ़ाने के लिए एयरटेल के साथ अपना सहयोग जारी रहने की उम्मीद है, जो पूरे भारत में लोगों और कारोबारों के लिए बेहतर नेटवर्क अनुभव प्रदान करेगा।
एयरटेल मेटा के व्हाट्सऐप को अपने कम्युनिकेशंस प्लेटफॉर्म एज ए सर्विस (सीपीएएस) प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत करेगा। कारोबार अब व्हाट्सऐप की सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकेंगे और उद्यमों को ग्राहकों से जुड़ने की सुविधा प्रदान कर पाएंगे।
भारती एयरटेल की मुख्य कार्याधिकारी (वैश्विक कारोबार) वाणी वेंकटेश ने कहा कि 2अफ्रीका केबल और ओपन आरएएन में अपने योगदान के साथ हम महत्त्वपूर्ण और प्रगतिशील कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहे हैं, जो भारत में तेज गति वाले डेटा की बढ़ती मांग का समर्थन करने के लिए आवश्यक है।