उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों और तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र ने रबी विपणन सत्र 2024-25 के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को आज 7.06 फीसदी यानी 150 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 2,275 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। विपणन सत्र 2024-25 की शुरुआत अगले साल अप्रैल से होगी। यह 2014 में सत्ता हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा की गई सर्वाधिक वृद्धि है।
गेहूं मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की एक प्रमुख रबी फसल है जहां अगले कुछ सप्ताह में चुनाव होने हैं। इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।
गेहूं के MSP में की गई उल्लेखनीय वृद्धि से यह भी संकेत मिलता है कि केंद्र अगले फसल सीजन में गेहूं में अपने घटते भंडार को आक्रामक तरीके से भरना चाहता है ताकि आम चुनाव चुनाव वाले साल के दौरान कीमत में किसी भी वृद्धि को रोका जा सके।
सरकारी खरीद प्रणाली के बाहर किसानों को बेहतर कीमत मिलने और फसल उत्पादन में गिरावट के कारण केंद्र की वार्षिक गेहूं खरीद पिछले दो सत्रों से लक्ष्य के मुकाबले कम रही है।
इस बीच अन्य रबी फसलों के MSP में भी इजाफा किया गया है। मसूर के MSP को 425 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 6,425 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। इसके जरिये सरकार किसानों को इस दलहन की खेती बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है।
भारत मसूर का एक प्रमुख आयातक देश है। देश में सालाना करीब 22 से 24 लाख टन दलहन की खपत होती है जिसमें करीब 12 से 14 लाख टन दलहन की उपज देश में होती है। जबकि शेष का आयात किया जाता है। भारत 70 से 80 फीसदी मसूर का आयात कनाडा से करता है जिसके साथ कूटनीतिक संबंध में अब खटास आ चुका है। हालांकि हाल में भारतीय कारोबारियों ने ऑस्ट्रेलिया से भी गेहूं का आयात करना शुरू किया है, मगर कुल व्यापार में कनाडा का ही वर्चस्व है।
तीनों चुनावी राज्य- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़- गेहूं की ही तरह चना और सरसों के भी प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। विपणन वर्ष 2024-25 के लिए सरसों का MSP 3.67 फीसदी यानी 200 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 5,650 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। इसी प्रकार चने का MSP 1.97 फीसदी यानी 105 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 5,440 रुपये प्रति हो गया है।
दुबई की प्रमुख वैश्विक कृषि-व्यापार कंपनी सिल्करूट डॉट एजी के विशेषज्ञ (वैश्विक कमोडिटी अनुसंधान एवं व्यापार) तरुण सत्संगी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘रबी फसलों के लिए MSP में हुई वृद्धि से न केवल किसानों को उचित कीमत मिलेगी बल्कि फसलों में विविधीकरण को भी प्रोत्साहित करेगी। सीमित आपूर्ति के कारण गेहूं, दाल और चीनी जैसी वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। मगर यह ध्यान रखना जरूरी है कि MSP में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति में तेजी न आने पाए।’ उन्होंने कहा कि मांग और आपूर्ति में अंतर होने के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव दिखता है।
आईग्रेन इंडिया के कमोडिटी विश्लेषक राहुल चौहान ने कहा कि यह पहले से ही पता था कि मौजूदा ऊंची दरों के कारण किसान आने वाले रबी सीजन में अधिक गेहूं लगाएंगे लेकिन MSP में की गई इतनी बड़ी वृद्धि से वे गेहूं उगाने के लिए कहीं अधिक प्रेरित होंगे।
जहां तक सरसों का सवाल है तो पिछले साल (2023 रबी) किसानों को उनकी उपज के लिए पिछले सत्र के मुकाबले आकर्षक कीमत नहीं मिली। मसूर के मामले में भी लगभग यही स्थिति है।
चौहान ने कहा, ‘पिछले दो साल के दौरान मसूल के MSP में कुल करीब 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई है। इससे संकेत मिलता है कि सरकार आयात पर निर्भरता कम करना चाहती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में चने की बोआई अन्य फसलों के मुकाबले अधिक हो सकती है क्योंकि चने की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है।’