दक्षिणी महाराष्ट्र स्थित उस्मानाबाद के प्याज किसान रोही दास सोनवणे पाटिल जब प्याज की फसल की बरबादी की दास्तान सुनाते हैं तो उनकी आवाज का दर्द फोन पर भी छलक आता है।
अक्सर सूखे की मार झेलने वाला उस्मानाबाद प्याज का बड़ा उत्पादक है। यहां इस वर्ष 1 से 25 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बारिश हुई जो बीते कई वर्षों में सर्वाधिक है। आमतौर पर यहां इस अवधि में 70 मिलीमीटर बारिश होती है।
सोनवणे कहते हैं, ‘मैंने कई बार भारी बारिश देखी है। परंतु इस बार तो बारिश अपने साथ मिट्टी भी बहा ले गई। मेरे खेत में अब केवल पत्थर के टुकड़े हैं।’ इस नुकसान को पचा पाना उनके लिए बहुत मुश्किल है।
मॉनसून के बाद के महीने में अचानक होने वाली तेज बारिश ने पाटिल की तरह हजारों और किसानों की प्याज की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाया है। जब बारिश आई, प्याज कटने को तैयार था। इसी का नतीजा है कि त्योहारी मौसम के बीचोबीच प्याज के दाम आसमान छू रहे हैं।
मुंबई, दिल्ली और कोलकाता के खुदरा बाजारों में प्याज का दाम 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुका है। देश में प्याज की फसल साल में तीन बार ली जाती है। यह फसल रबी (मार्च-मई), खरीफ (अक्टूबर-दिसंबर) और खरीफ की देर से होने वाली फसल के रूप में ली जाती है जो जनवरी-मार्च के दरमियान तैयार होती है।
खरीफ में आने वाला प्याज ही रबी और खरीफ की देरी से होने वाली फसल के बीच के समय में भरपाई करता है। मौसम के कारण इस फसल पर हमेशा अनिश्चितता के बादल मंडराते हैं। देश में सालाना उत्पादित होने वाले 2.1 से 2.4 करोड़ टन प्याज में खरीफ के प्याज की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी होती है लेकिन यह इसलिए अहम है क्योंकि इसकी उपज उस समय होती है जब प्याज कम रहता है। ऐसे में इसके उत्पादन में जरा भी कमी होने का असर खुदरा बाजार पर पड़ता है। इस वर्ष महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में ऐसा ही हुआ। प्याज की सबसे बड़ी फसल मार्च से मई के दौरान यानी रबी सत्र में होती है। इसका भंडारण अक्टूबर तक चलता है। भारत में आमतौर पर रबी सत्र के 50 से 55 लाख टन प्याज का भंडारण किया जाता है जो जून से अक्टूबर तक चलता है। देश में प्याज की मासिक खपत करीब 12 से 15 लाख टन है।
सितंबर के आखिर और अक्टूबर के आरंभ में खरीफ का प्याज बाजार में आने लगता है। लेकिन इस साल अप्रत्याशित बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया जिसका असर कीमतों में इजाफे के रूप में दिख रहा है क्योंकि कारोबारी इसका फायदा उठा रहे हैं।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष खरीफ में 37 लाख टन प्याज उत्पादन का अनुमान है जो पिछले साल इस सत्र में हुए उत्पादन से 14 फीसदी कम है। सरकारी संस्था नेफेड के पास करीब एक लाख टन प्याज का भंडार था जो उसने पिछले कुछ महीनों में खरीदा था। परंतु मार्च से अब तक वह 42,000 से 43,000 टन प्याज बेच चुका है। करीब एक चौथाई प्याज खराब हो चुका है जो कि आमतौर पर होता ही है।
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक प्याज को साढ़े तीन से चार महीने तक ही अच्छी स्थिति में भंडारित रखा जा सकता है। माना जा रहा है कि नेफेड का प्याज नवंबर की शुरुआत तक समाप्त हो जाएगा। बारिश ने प्याज की अगली फसल यानी खरीफ की देर से होने वाली प्याज की बुआई को भी प्रभावित किया है। कारोबारी इसका भी फायदा उठा रहे हैं। माना जा सकता है कि नई फसल आने के बाद कीमतों में कुछ कमी आ सकती है। परंतु फसल कम होने के कारण कीमतों में ज्यादा कमी की आशा नहीं है।
कारोबारियों को अधिक भंडारण करने से रोकने के लिए पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने खुदरा एवं थोक कारोबारियों के लिए सीमा तय कर दी। सरकार ने नए आवश्यक जिंस अधिनियम का हवाला देकर खुदरा एवं थोक कारोबारियों के लिए भंडारण की सीमा तय की है। हालांकि सूत्रों ने कहा कि इससे किसानों एवं कारोबारी दोनों ही प्रभावित हुए हैं। सूत्रों के अनुसार यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों से उन्होंने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है।
महाराष्ट्र के नासिक में लासालगांव प्याज के उत्पादन के लिए पूरे देश में मशहूर है। यह देश के दूसरे बाजारों से इस मायने में अलग है कि यहां कारोबारी खुले भंडारण को आधार बनाकर कारोबार करते हैं। हालांकि अब प्याज कारोबारियों को भंडारण 250 क्विंटल तक ही सीमित रखना होगा, जबकि पहले मौजूदा सत्र में प्रति दिन 1,500 से 2,000 क्विंटल तक प्याज उठाते थे।
प्याज कारोबारी अशोक बोरा कहते हैं, ‘अब हम किसानों से अधिक मात्रा में प्याज नहीं खरीद सकते हैं। मौजूदा भंडार निकालने के बाद ही हम दोबारा खरीदारी कर पाएंगे। हम बड़ी मात्रा में कारोगार करते हैं, लेकिन नई सीमा काफी कम है।’ नए प्रावधान से किसान भी अब सीमित मात्रा में भी प्याज की बिकवाली कर पाएंगे। सतना में प्याज उगाने वाले श्रीकांत केल्हे ने कहा, ‘मॉनसून और दीवाली के बीच की अवधि में प्याज की आवक बढ़ती है और इस दौरान किसानों को अच्छी कीमत भी मिल जाती है। अब कीमतें कम रह सकती हैं।’
प्याज के अलावा दहलन और सोयाबीन फसलों को हुए नुकसान से खाद्य आपूर्ति ढांचा प्रभावित हो सकता है, जिससे महंगाई अधिक समय तक ऊंचे स्तरों पर रह सकती है। खरीफ सत्र में काटी जाने वाली फसल उड़द की फसलों को कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भारी वर्षा से बहुत नुकसान पहुंचा है। ये राज्य उड़द के प्रमुख उत्पादक हैं। केंद्र सरकार के अनुसार 2020-21 में उड़द का उत्पादन करीब 21 लाख टन रह सकता है, लेकिन कारोबारियों के अनुसार उन्हें वारिश की वजह से पहले ही 10 प्रतिशत कम उतपादन का अंदेशा सता रहा है।
