हाल में ही अर्थशास्त्रियों ने नॉटिकल स्क्वैटिंग की बढ़ती संख्या और इससे इसके मेजबान देशों को जो परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके बारे में दिलचस्प बातें कही हैं।
चीन भी उन देशों में शामिल है जो इससे खासा प्रभावित हुआ है। यह मुसीबत अब यहां भी अपने पांव पसारने लगी है, हालांकि यह अभी भी उतनी विकट नहीं हुई है। अब लाख टके का सवाल यह पैदा होता है कि आखिर नॉटिकल स्क्वैटिंग है क्या?
नॉटिकल स्क्वैटिंग से तात्पर्य है कि परिवहन के लिए अधिक संख्या में कार्गों के उपलब्ध नहीं होने के कारण जहाज जिसमें अधिकांश कंटेनर हैं, विश्व के बड़े बंदरगाहों पर बेकार पड़े हैं। इस तरह का नजारा एशियाई देशों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। चीन जो इस मामले में पहले पायदान पर खडा है, वह काफी हद तक फ्लीट विस्तार के लिए जिम्मेदार रहा है।
इसकी वजह चीन की तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था है। लेकिन इस समय चीनी नॉटिकल स्क्वैटर्स की वजह से इसे सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड रहा है। पिछले साल जब विश्व में इस्पात उत्पादन की स्थिति दयनीय थी और इसमें 1.2 फीसदी की गिरावट आ चुकी थी, उस समय भी चीन ही एक मात्र देश था जो 50 करोड़ टन से अधिक इस्पात का उत्पादन करने में सफल रहा था।
जहां तक जहाजों के जरिए कारोबार की बात है तो चीन को अपने यहां खनिज उत्पादन की गतिविधियों को कम करने के लिए 41 करोड़ टन लोहे का आयात करना पडा था। भारत से किया जाने वाला सालाना 10 करोड़ टन के लौह-अयस्क का निर्यात ज्यादातर चीन को ही किया गया। अन्य कमोडिटी की तुलना में लौह-अयस्क का परिवहन ज्यादा मुश्किल होता है।
यह देखने में आया है कि पिछले साल सितंबर से इस्पात उद्योग ने उत्पादन में कटौती केहर संभव प्रयास किए हैं। चीन भी इसमें अपवाद नहीं रहा और पिछले कई सालों के बाद इसकी विकास दर घटकर इकाई अंकों में आ गई। इसकी पुष्टि इस बात से और ज्यादा हो जाती है कि इस साल के पहले दो महीनों में चीन के अयस्क का निर्यात 33.7 फीसदी गिरावट के साथ 79.474 मिलियन टन रह गया।
इससे ड्राय बल्क कार्गोज की ढुलाई करने वाले वेसेल्स और बाल्टिक एक्सचेंज ड्राय इंडेक्स (बीडीआई) पर क्या असर पड सकता है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। बीडीआई विश्व के 40 समुद्री रास्तों पर शिपिंग रेट मापता है। जहां तक कंटेनर शिप की बात है तो पूरे विश्व में करीब 453 बेकार पड़े हैं। इनकी हिस्सेदारी विश्व के 13.5 लाख टन ट्वेंटी-फूट इक्विवेलेंट यूनिट्स (टीईयू) में 10.7 फीसदी है।
इधर जबकि कारोबार में आई कमी से नॉटिकल स्क्वैटिंग की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, इन बेकार पड़े जहाजों से पर्यावरण के लिए भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं। चीन ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि हांग कांग बंदरगाह के आस पास पड़े बेकार जहाज को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। अगर इसके बाद भी ये जहाज यहां बने रहते हैं तो इसे दक्षिणी-पूर्वी एशियाई बंदरगाहों पर जाना पड़ सकता है।
हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अन्य देश इनका स्वागत गर्मजोशी से कर पांएगे। इस बाबत अर्थशास्त्रियों का कहना है ‘अभी से मात्र पांच साल पहले चीन से जबरस्त मांग के कारण इन जहाजों की काफी जरूरत महसूस की जा रही थी। इसकी शिपिंग रेट्स और उसके बाद आपूर्ति पर जबरदस्त असर पड़ता था। वर्ष 2006 के अंत और जुलाई 2008 के बीच विश्व में फ्लीट की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी के लिए शिपयार्ड को काफी कमीशन मिलता था।’
इस उद्योग से जुड़े एक अधिकारी इस बात पर आंसू बहा रहे हैं कि सभी कारोबारी क्षेत्र ड्राई बल्क, लिक्विड ऐंड बॉक्स काफी दबाव की स्थिति में हैं। शिपिंग सेक्टर को कितना नुकसान पहुंचा है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीडीआई में 90 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है और मई 2008 के स्तर से गिरकर यह 11,973 अंकों के स्तर तक आ चुका है।
अगर आप शिपिंग उद्योग के हाल के बारे में जानना चाहते हैं तो बीडीआई से बेहतर इस बारे में कोई नहीं बता सकता है। ब्लूमबर्ग के अनुमान के अनुसार मौजूदा तिमाही में बीडीआई औसतन 1,786 अंकों के स्तर पर रह सकता है। इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि इंडेक्स में किसी बदलाव की संभावना नहीं के बराबर नजर आ रही है। बल्क कार्गो पर सबसे ज्यादा असर लौह-अयस्क और कोयले के परिचालन से पड़ता है।
यहां पर गौर करने लायक बात है कि फरवरी से चीन में इस्पात की कीमतों में 13 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। गोल्डमैन सैक्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक लौह-अयस्क शिपमेंट में 70 मिलियन टन की गिरावट आने की संभावना है क्योंकि चीन को छोड़कर जितने आयात करने वाले बड़े देश हैं उनके यहां कच्चे इस्पात की कीमतों में दोहरे अंकों की गिरावट आ सकती है।
अगर सरकार द्वारा घोषित सहायता राशि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने में नाकामयाब रहती है तो ऐसी हालत में चीन के इस्ताप उद्योग को भी अपने उत्पादन में कटौती करने की जरूरत पड़ सकती है। इधर इस्पात के निर्यात की संभावनाएं औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट के कारण घटती जा रही है। कमजोर हालात के कारण जहाज के मालिक कम कीमतों पर कार्गो को बुक करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
यह किसे बताने की जरूरत है कि जब दरों में कमी होती है तो शिपिंग कैपेसिटी की आपूर्ति की क्षमता, मांग से कहीं अधिक हो जाती है, इसलिए नॉटिकल स्क्वैटिंग भी बढ़ जाता है। स्क्वैटर्स इतनी जल्दबाजी में गायब भी नहीं होने जा रहे हैं।