मौजूदा रबी सीजन में तिलहनों का रकबा 9 फीसदी बढ़ा है। सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओओआईटी) के मुताबिक, मानसून सीजन के अपेक्षाकृत लंबा खिंचने से इस बार तिलहन के रकबे में बढ़ोतरी हुई है।
12 दिसंबर तक तिलहन का रकबा एक साल पहले की तुलना में करीब 7 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। सीओओआईटी के मुताबिक, तिलहन का कुल रकबा पिछले साल के 76.97 लाख हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर 83.75 लाख हेक्टेयर हो गया है।
रकबा और उपज की बात करें तो सरसों और राई हमेशा ही रबी सीजन (नवंबर से फरवरी तक) में पैदा होने वाले तिलहनों में सबसे आगे रहते हैं।
इस बार राई और सरसों के रकबे में 11 फीसदी की जोरदार तेजी दर्ज की गई है। इस तरह इनका रकबा पिछले साल के 57.02 लाख हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर 63.28 लाख हेक्टेयर हो गया है।
रबी सीजन में तो सरसों और राई गेहूं के साथ ही बड़े पैमाने पर बोई जाती हैं। चूंकि सरसों गेहूं तैयार होने से पहले ही तैयार हो जाती है, इसलिए इसके चलते गेहूं के उत्पादन पर असर नहीं पड़ता। सूरजमुखी के रकबे में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले साल के 8.34 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 9.17 लाख हेक्टेयर हो गया।
वहीं मूंगफली के रकबे में थोड़ी बढ़ोतरी हुई और यह 3.45 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 3.53 लाख हेक्टेयर हो गया। बीते कुछ साल में बेहतर उपज की आस में कई तिलहन उत्पादक किसानों ने कुसुम और अलसी उपजाना छोड़ सरसों का रुख कर लिया। इस वजह से कुसुम और अलसी के रकबे में कमी हुई है।
इन दोनों का रकबा क्रमश: 2.64 और 3.66 लाख हेक्टेयर रह गया है जो पहले क्रमश: 2.86 और 4.03 लाख हेक्टेयर था। विशेषज्ञों का मानना है कि जुलाई में जब तिलहनों की कीमतें चढ़ रही थी, तभी किसानों ने इनकी खेती करने का मन बना लिया था।
सरकार की ओर से इनके समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी और बिक्री होने से बचे तिलहनों की पूरी खरीद का सरकारी आश्वासन मिलने से भी रकबे में बढ़ोतरी हुई है।