वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा केंद्र व राज्यों की ओर से पेट्रोल व डीजल पर करों में कटौती करने की बात पर राज्यों ने कहा है कि गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है। राजस्व की कमी का हवाला देते हुए प्रमुख राज्यों ने अपनी तरफ से ईंधन पर करों में कमी करने की संभावना से इनकार किया है।
राज्यों का तर्क है कि पेट्रोल व डीजल पर केंद्र के कर में 70 प्रतिशत हिस्सा उपकर का होता है, जिसे वह राज्यों के साथ साझा नहीं करता। ऐसे में केंद्र सरकार को निश्चित रूप से करों में कटौती करनी चाहिए, जिससे ग्राहकों पर बोझ कम किया जा सके।
पेट्रोल व डीजल के दाम 9 फरवरी से बढ़ रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय दाम बढऩे के साथ 14 बार बढ़ोतरी के बाद कीमतें देश में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं।
केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने कहा कि केंद्र सरकार ने उपकर लगाकर कर बढ़ाया है, ऐसे मनें उसे राज्यों से कर कटौती करने को कहने के बजाय खुद कर में कटौती करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार ही पिछले 5 साल से कर बढ़ा रही है। डीजल पर कर पांच गुना और पेट्रोलियम पर तीन गुना बढ़ा है। ऐसे में यह बहुत साफ है कि उन्हें कर घटाना चाहिए।’ आइजक ने कहा कि किसी राज्य ने कर नहीं बढ़ाया है।
कोविड के झटके के बार राज्यों पर राजस्व को लेकर दबाव है। सूचना के मुताबिक छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ने हाल ही में राज्य के वित्त विभाग की ओर से पेट्रोल व डीजल पर कर बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया है।
बंगाल में चुनाव होने वाले हैं, वहां राज्य ने डीजल व पेट्रोल के दाम में 1 रुपये लीटर कमी करने का फैसला किया है। वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा, ‘राज्यों से बात करने के बजाय केंद्र सरकार को कर घटाना चाहिए और विश्वसनीय बनना चाहिए। वे राज्यों की तुलना में पेट्रोल पर करीब दोगुना कमा रहे हैं और डीजल पर राज्यों से करीब तीनगुना कमा रहे हैं। उन्होंने बड़ी मात्रा पर डीजल व पेट्रोल पर उपकर लगाया है, जिसे वे राज्यों से साझा नहीं करते हैं। यह देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है।’ मित्रा ने पेट्रोल की लागत का ब्रेकअप देते हुए कहा कि बंगाल सरकार पेट्रोल पर 18.46 रुपये कर लेती है, जबकि केंद्र सरकार 32.9 रुपये कर लेती है, जिसमें से 20.5 रुपये उपकर है और इसमें राजें को हिस्सा नहीं दिया जाता। इसके अलावा डीजल पर राज्य 12.57 रुपये कर लेता है, जबकि केंद्र 31.8 रुपये प्रति लीटर कर लेता है, जिसमें से 22 रुपये लीटर उपकर है। उन्होंने कहा कि 1 रुपये लीटर की राहत सांकेतिक है।
उन्होंने कहा कि हम लोगों से सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि हम लोगों का ध्यान रखते हैं, राज्य ईंधन पर कर कटौती करने की स्थिति में नहीं है और केंद्र को ऐसा करना चाहिए। मित्रा ने कहा कि जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, उसके बाद से कर संग्रह में उपकर की मात्रा बढ़ी है। पहले यह 8 प्रतिशत से कम था, जो अब 14 प्रतिशत पहुंच गया है और रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि आगे यह 16 प्रतिशत हो जाएगा।
केंद्रीय बजट में पेट्रोल पर 2.5 रुपये लीटर और डीजल पर 4 रुपये लीटर कृषि बुनियादी ढांचा और विकास उपकर (एआईडीसी) लगाया है। पिछले साल मई में केंद्र ने पेट्रोल व डीजल पर 8 रुपये लीटर सड़क एवं बुनियादी ढांचा उपकर लगाया था और विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (एसएईडी) क्रमश: 2 रुपये लीटर और 5 रुपये लीटर बढ़ा दिया गया था। यह पूरी बढ़ोतरी केंद्र के खजाने मेंं जाती है, राज्यों को इसमें हिस्सा नहीं मिलता है।
पिछले सप्ताह सीतारमण ने कहा था कि वह राज्यों के साथ बातचीत करेंगी और यह संभावना तलाशेंगी कि ईंधन पर कर के मामले में क्या हो सकता है।
सीतारमण ने कहा था, ‘अगर अंतिम उपभोक्ता कम भुगतान करेंगे तो उन पर कम बोझ पड़ेगा। लेकिन मेरा यह मानना है कि इसमें कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए कि केंद्र पहले घटाए, उसके बाद राज्य कर घटाएंगे’
जीएसटी परिषद में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा कि राज्यों के पार कर घटाने का कोई अवसर नहीं है, लेकिन ईंधन पर देश भर में एकसमान कर की व्यवस्था पर चर्चा की जा सकती है।
अब तक 4 राज्यों, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, असम और मेघालय ने पेट्रोल व डीजल पर कर कम किए हैं।