सोया का प्रसंस्करण करने वालों की मांग है कि सोया की कीमत तय करने के लिए एक नई नीति हो क्योंकि सोया में प्रोटीन काफी अधिक होता है।
यही नहीं इन्होंने सोयाबीन की फसल को चारे से आहार में बदलने के लिए सरकारी अभियान की भी मांग की है। दिलचस्प बात है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशके डॉ. मंगला राय ने भी वर्तमान नीतियों की आलोचना की है।
इन नीतियों के कारण ही सोयाबीन का रकबा 1970 से अब तक महज 1,400 लाख हेक्टेयर तक सीमित रहा है।
उल्लेखनीय है कि देश में सोयाबीन की खेती 1970 से ही शुरू हुई है। भोपाल में आयोजित पांचवें अंतरराष्ट्रीय सोयाबीन प्रसंस्करण एवं प्रयोग सम्मेलन (आईएसपीयूसी) के उद्धाटन-भाषण में राय ने कहा, ‘सोयाबीन में 45 प्रतिशत प्रोटीन होता है जो 75 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध है।
हालांकि, भारत सरकार महंगी दालों जिनमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है, का आयात 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर करती है।’ उन्होंने कहा कि सोयाबीन प्रसंस्करण का कारोबार किस तरह सस्ती दरों पर ही चल रहा है, इसे समझने के लिए नीतियों को फिर से तैयार करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमें पश्चिमी देशों से सीख लेने की आवश्यकता है और उसी हिसाब से अपनी नीतियों को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम सोया प्रोटीन की खपत करने वाले देशों में क्यों नहीं हैं और क्यों हमारी सरकार हर साल महंगी दालों का आयात करती है।
इस अवसर पर सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के रमेश अग्रवाल ने कहा कि भारत में सोयाबीन की खपत तेल की जगह सोया प्रोटीन के रूप में करने की अवाश्यकता है।
कई अच्छे पोषक तत्वों के अतिरिक्त सोयाबीन फाइटोस्टेरॉयड्स, लेसिथिन इत्यादि जैसे प्रोटीन पाए जाते हैं जो कैंसर से सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ कोलेस्टेरॉल को कम करता है तथा अस्थि-क्षय में भी लाभ पहुंचाता है।
सोयाबीन प्रसंस्करण से जुड़े लोगों ने सोयाबीन को प्रोत्साहित करने के लिए एक अभियान शुरू करने की मांग की।
सोनिक बायोकेम के प्रबंध निदेशक गिरीश मातलानी ने कहा, ‘भारत सरकार ने पहले आयोडीनयुक्त नमक और अंडे को प्रोत्साहित करने का अभियान चलाया था तो फिर सोयाबीन के लिए इस प्रकार का अभियान क्यों नहीं चलाया जा सकता?’
हालांकि, कई सोयाबीन कंपनियां विभिन्न राज्यों जैसे मध्य प्रदेश में निवेश करने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्हें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को मिलने वाली सुविधाओं की पेशकश सरकार की ओर से नहीं हो रही है। अभी तक मध्य प्रदेश सरकार ने सोयाबीन को ‘नकारात्मक सूची’ से हटाए जाने की औपचारिक घोषणा नहीं की है।
इस सूची में शामिल होने के कारण इस उद्योग को छूट तथा विभिन्न लाभ नहीं मिल सकते हैं। कम उत्पादकता को लेकर डॉ राय ने कहा कि भारत में फॉस्फोरिक उर्वरकों तथा सूक्ष्मपोषकों का इस्तेमाल बढ़ाए जाने की जरूरत है, ताकि पैदावार बढ़ सके।