कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भले ही किसी अर्थव्यवस्था की राजकोषीय स्थिति पर दबाव डालती हो, लेकिन मांग/उपभोग में बढ़त के कारण तेल की कीमतों में होने वाला इजाफा इक्विटी बाजार के लिए सकारात्मक होता है। यह कहना है विश्लेषकों का। अपने हालिया नोट में जेफरीज के विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि ब्रेंट क्रूड की कीमतों होने वाली हर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी भारत के व्यापार घाटे में करीब 40-50 आधार अंकों का इजाफा करता है। हालांकि उनका मानना है कि हालिया तेजी को इक्विटी बाजार पचाने में सक्षम होगा।
जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदूरकर ने अभिनव सिन्हा के साथ एक नोट में कहा है, 70 डॉलर प्रति बैरल कच्चे तेल के भाव का चालू खाते के घाटे पर 100-120 आधार अंकों का असर डालेगा। निचले आधार पर देसी मांग में सुधार चालू खाते के घाटे को वित्त वर्ष 2021-22 में 1.5 फीसदी पर पहुंचा देगा, जो इस साल 0.7 फीसदी सरप्लस था। हालांकि हम अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि भुगतान संतुलन करीब 1.2 फीसदी सकारात्मक होगा क्योंकि पूंजी खाते (एफडीआई, ईसीबी और एनआरआई जमाएं) में 80 अरब डॉलर से ज्यादा का सरप्लस होगा।
जेफरीज ने कच्चे तेल में पिछले तीन बार हुई बढ़ोतरी (2007-08, 2010-11 और 2018-19) का विश्लेषण किया है। पहली दो बढ़ोतरी हालांकि मांग से प्रेरित थी, लेकिन तीसरी बार हुई बढ़ोतरी मोटे तौर पर आपूर्ति से जुड़ी थी।
नंदूरकर और सिन्हा ने कहा, पहले दो घटनाक्रम में भारत ने एसऐंडपी के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन (2 से 9 फीसदी) किया लेकिन उभरते बाजारों से उसका प्रदर्शन 12 से 17 फीसदी कमजोर रहा। पहले दो घटनाक्रम में डॉलर के मुकाबले रुपये में 2 से 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। तीसरा घटनाक्रम भारत के लिए काफी खराब था जब डॉलर के मुकाबले रुपया 14 फीसदी टूट गया और भारत ने एसऐंडपी के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 21 फीसदी कमजोर प्रदर्शन किया। कच्चे तेल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी हालांकि मांग के कारण हुई, लेकिन हमारा मानना है कि इसके परिणाम पिछले दो घटनाक्रम जैसे ही हो सकते हैं।
13 मार्च, 2020 को ब्रेंट क्रूड का भाव करीब 35 डॉलर प्रति बैरल था, जो अब 91 फीसदी उछलकर करीब 67 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। कीमतों में बढ़ोतरी नवंबर 2020 से शुरू हुई जब आर्थिक गतिविधियों में इस खबर पर बढ़ोतरी होने लगी कि कोविड का टीका प्रभावी है।
अपनी तरफ से ओपेक ने उत्पादन पर लगाम जारी रखा और सऊदी अरब ने एकपक्षीय फैसले के तहत ओपेक के अपने कोटे के अतिरिक्त 10 लाख बैरल रोजाना की कटौती कर रहा है। सऊदी के तेल बुनियादी ढांचे पर कुछ दिन पहले हुए हमले के बाद ब्रेंट 70 डॉलर पर पहुंच गया।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक व मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम भी जेफरीज से सहमत हैं। उनका कहना है कि तेल की काफी ज्यादा या काफी कम कीमतें अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर डाल सकती है। उनका मानना है कि भारत तब तक सहज स्थिति में बना रहेगा जब तक कि तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के पार न निकल जाए।
उन्होंने कहा, 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर महंगाई का दबाव आ सकता है, वहीं 40 डॉलर से नीचे का भाव अवस्फीति ला सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं है। तेल की कीमतों में हुई हालिया बढ़ोतरी आर्थिक गतिविधियों में तेजी व कार्टलाजेशन का नतीजा है। बाजार को तब तक चिंतित होने की दरकार नहीं है जब तक कि भाव 80 डॉलर प्रति बैरल के पार न निकल जाए।